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कपड़ा उद्योग से निकले दूषित जल के शोधन की नई तकनीक विकसित, शोधन की लागत 50 फीसद तक है कम

इस जरूरत को पूरा करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर के शोधार्थियों और मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी जयपुर और एमबीएम कालेज जोधपुर के शोधार्थियों ने मिलकर काम किया और एक उन्नत एओपी का निर्माण किया।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Sat, 18 Sep 2021 06:36 PM (IST)Updated: Sat, 18 Sep 2021 06:44 PM (IST)
कपड़ा उद्योग से निकले दूषित जल के शोधन की नई तकनीक विकसित, शोधन की लागत 50 फीसद तक है कम
मौजूदा तकनीक से अधिक प्रभावी है उन्नत एओपी

नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। कई उद्योग ऐसे हैं, जिनसे बड़ी मात्रा में दूषित जल निकलता है और उसके फिर से उपयोग की संभावनाएं तलाशने के प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय शोधकर्ताओं के एक दल ने कपड़ा उद्योग से डाई यानी रंगाई की प्रक्रिया में निकलने वाले दूषित जल के शोधन के लिए एक कारगर समाधान तलाशा है। इससे रंगाई के बाद शेष बचे दूषित जल से विषैले तत्वों को निकालकर उसे घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग के लायक बनाया जा सकेगा। इससे प्रदूषित जल की समस्या से निजात मिलने के साथ ही पानी की किल्लत दूर करने जैसे दोहरे लाभ हासिल हो सकेंगे।

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वर्तमान में कपड़ा क्षेत्र से प्रदूषित जल को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक- तीन स्तरों पर शोधित किया जाता है। फिर भी दूषित जल पूरी तरह शोधित नहीं हो पाता। इसमें प्रयुक्त स्टैंड-अलोन एडवांस्ड आक्सीडेशन प्रोसेस (एओपी) ट्रीटमेंट टेक्नीक शोधन के सरकारी मानकों के अनुरूप सक्षम नहीं साबित हुई है। रसायनों की निरंतर आपूर्ति जैसे पहलू को लेकर जल-शोधन की यह प्रक्रिया खर्चीली हो जाती है।

ऐसे में इस समूची प्रक्रिया को अपेक्षित स्तर पर पूरी किफायत के साथ संपन्न कराना एक बड़ी जरूरत समझी जा रही थी। नई पहल इस जरूरत को पूरा करने में सहायक होगी। केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (डीएसटी) विभाग ने बताया है कि मौजूदा तकनीक सिंथेटिक औद्योगिक रंगों और चमकीले रंग की गंध को दूर नहीं कर सकती है, जिसका पारिस्थितिक और विशेष रूप से जलीय जीवन पर कार्सिनोजेनिक (कैंसरकारक) और विषाक्त प्रभाव पड़ता है, जो लंबे समय तक कायम रहता है। ऐसे में, इस विषाक्तता को दूर करने के लिए उन्नत एओपी तकनीक समय की जरूरत है।

इस जरूरत को पूरा करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी), कानपुर के शोधार्थियों और मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, जयपुर और एमबीएम कालेज, जोधपुर के शोधार्थियों ने मिलकर काम किया और एक उन्नत एओपी का निर्माण किया। इस उन्नत एओपी शोधन में प्राथमिक चरण के शोधन के बाद सैंड फिल्ट्रेशन स्टेप और एक अन्य एओपी और उससे संबद्ध कार्बन फिल्ट्रेशन स्टेप जैसे पड़ाव शामिल हैं। यह न केवल प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक प्रक्रियाओं से मुक्ति दिलाता है, बल्कि रंगों से भी अधिकतम छुटकारा के साथ ही शोधित जल भी मानकों के अनुरूप प्राप्त होता है। इस तकनीक से जल शोधन की लागत 50 फीसद तक कम हुई है।

इसका ट्रायल लक्ष्मी टेक्सटाइल प्रिंट्स जयपुर में किया गया। अभी इस एओपी संयंत्र की क्षमता 10 किलोलीटर प्रतिदिन की है, जिसे बढ़ाकर 100 किलोलीटर प्रति दिन तक किए जाने की तैयारी है।


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