नुकसान झेलकर भी अपने कामगारों और कर्मचारियों का हौसला नहीं टूटने दे रहीं ये महिला उद्यमी
महिला की ममता का यही तो दृश्य है कि वह मसलों को भावनात्मक तरीके से मैनेज कर रही है और अन्य महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना कर रही हैं। यही तो हैं मुश्किलों की हमसफर ...
यशा माथुर। कितना खुशनुमा नजारा है कि महिला एंटरप्रेन्योर्स अपने काम में नुकसान झेल रही हैं लेकिन अपनी महिला कामगारों और कर्मचारियों का हौसला नहीं टूटने दे रहीं। उन्हें ऑनलाइन प्रशिक्षण मुहैया करवा कर उनकी स्किल बढ़ा रही हैं, उनसे घर पर मास्क जैसी चीजें बनवा रही हैं या फिर उनके घर पर रहने के बावजूद उनके मेहनताने में कोई कटौती नहीं कर रही हैं ताकि इस मुश्किल समय में उनके परिवार की कठिनाईयां न बढ़े। महिला की ममता का यही तो दृश्य है कि वह मसलों को भावनात्मक तरीके से मैनेज कर रही है और अन्य महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना कर रही हैं। यही तो हैं मुश्किलों की हमसफर ...
रिश्ते पालती हैं महिलाएं, इन्हें मजबूती देती हैं महिलाएं। तभी तो कोविड 19 की कठिनाईयों के समय इन्होंने अपनी महिला कर्मचारियों को भी परिवार की तरह संभाला है। इनके पास वह दिल है जो मुसीबत में साथी बन जाता है। इस कठिन समय में महिलाएं समाज के लिए बेहतर योगदान दे रही हैं। मायका, ससुराल , समुदाय, समाज और व्यापार सब मैनेज कर रही हैं।
हम कठोर निर्णय नहीं ले पाते : केआरवी फिजियोथेरेपी कंपनी के जरिए अपना काम करती हैं फिजियोथेरेपिस्ट डा. रिदवाना सनम। कंपनी की आय का बीस प्रतिशत वे अपने फाउंडेशन के जरिए जरूरतमंदों की मदद में खर्च करती हैं। उनके साथ करीब 90 प्रतिशत महिलाएं ही हैं। इस समय उनके गुड़गांव स्थित क्लिनिक पर काम ज्यादा नहीं है और उनके फिजियो कोरोना संक्रमण की संभावना के कारण घरों में भी नहीं जा रहे हैं। लेकिन वे मानती हैं कि एक महिला ही महिलाओं की परेशानियों को बेहतर तरीके से समझ सकती है।
वुमनइनोवेटर व इंफ्लुएंसर डा. रिदवाना कहती हैं, 'जहां तक आर्थिक सशक्तीकरण की बात है तो इस समय किसी के पास पैसा नहीं है लेकिन हम मिल बांटकर इस कठिन समय को पार कर सकते हैं और जिन महिलाओं ने हमारा साथ निभाया है उन्हें मानवीय आधार पर सपोर्ट कर सकते हैं। जिन संस्थानों की प्रमुख महिलाएं हैं उन संस्थानों में ऐसा ही चलता है। महिला उद्यमियों के मन में अपनी महिला कर्मचारियों के प्रति सहानुभूति और सद्भाव रहता ही है। हम कठोर निर्णय नहीं ले पाते। भावनात्मक नजरिए से सोचते हैं। महिलाओं को रब ने यह खासियत दी है।'
मास्क का मेहनताना : ऐसी बहुत सी महिला उद्यमी हैं जिन्होंने अपनी महिला कामगारों के काम को सलामत रखा है। इसका परिणाम यह है कि महिलाओं ने घरों की बागडोर संभाल ली है। यह महिलाओं द्वारा महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का शानदार प्रयास है। लखनऊ की अंजलि सिंह का जूट के सामान का कारोबार 'जूट फॉर लाइफ' से 'फूड फॉर लाइफ' में तब्दील हुआ तो जूट का सामान बनाने वाली कामगार महिलाएं जरूरतमंंदों के लिए खाना बनाने का काम मिला। मेहनताना मिला और अब वे फिर से वे मास्क व जूट से चीजें बनाने लगी हैं। कहती हैं अंजलि, '33 प्रतिशत महिलाएं तो हमारे लखनऊ स्थित सेंटर में आकर काम कर रही हैं और जो गांव-घर से करना चाहती हैं वे वहीं से कर रही हैं। इससे पहले हमने उन्हें फूड पैकेट्स बनाने का काम दे दिया था। मेरे पास हिसाब है कि फूड पैकेट्स के लिए सवा चार लाख रुपए हमने 18 परिवारों में बांटे। हमने 25 रूपए प्रति पैकेट उनको भुगतान किया। अब प्रवासी मजदूरों के बढ़ने के कारण खाने के पैकेट्स की संख्या बहुत बढ़ गई है तो हमने चार हलवाई बिठा लिए हैं और हमारी कामगार महिलाएं मास्क और जूट का सामान बनाने में जुट गई हैं।
सेनेटाइजर से आमदनी : स्वयं सहायता समूहों को इस समय मिल रहे काम ने भी महिलाओं की सूरत को सुधारा है। ललितपुर जनपद के 'भारत माता' स्वयं सहायता समूह की सचिव रसीका (42 वर्ष) के समूह की दस महिलाएं सिलाई का काम ठप होने से निराश थीं कि उन्हें प्रशासन द्वारा मास्क बनाने का काम मिल गया। अब कच्चा माल मिल जाता है और रसीका व समूह की अन्य महिलाएं मास्क सिल देती हैं। प्रशासन ही ही खरीद करता है। चार रूपया मास्क के हिसाब से वो खाते में पैसा आ जाता है। कोरोना से जंग में उतरी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने मास्क के साथ सेनेटाइजर बनाने का काम भी शुरू कर दिया है। बाराबंकी क्षेत्र के 'जागो री जागो' समूह की महिलाएं सेनेटाइजर की लागत निकालने के लिए कुछ हिस्सा बेचती हैं। बाकी बांट देती हैं। ये महिलाएं गांव वालों को हाथ धोने का सही तरीका भी बताती हैं। समूह अध्यक्ष सोमा कहती हैं कि महिलाओं को सेनेटाइजर बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है और अब 40 महिलाएं सेनेटाइजर बनाने का काम कर रही हैं।
भारी गहने बेच दूंगी : केआरवी फिजियोथेरेपी' की फिजियोथेरेपिस्ट डा. रिदवाना सनम ने बताया कि लॉकडाउन में काम तो बंद हुआ है लेकिन मेरे पास जो लड़कियां हैं वे ऐसी हैं जो अपने पैसे से पूरा घर चलाती हैं। मुझे तो उनका खयाल रखना ही है क्योंकि वे भी मेरा परिवार हैं। मैं उनको बाहर निकाल कर या आधी तनख्वाह देकर अपने मन को दुखी नहीं कर सकती थी इसलिए मैं खुद अपने पास से उन्हें तनख्वाह दे रही हूं। इसके लिए मैं अपने भारी गहने भी बेच दूंगी। हमने सरकार के मुताबिक सावधानी ओर सतर्कता बरतते हुए फिजियोथैरेपी का काम थोड़ा शुरू किया है लेकिन लोग अभी आने में डर रहे हैं।
हमारी महिला कर्मचारी नहीं भी आ पा रही हैं तो भी उन्हें मैं अगले तीन महीने तक तो उन्हें पूरी सैलरी दूंगी। फाउंडेशन की टीम घर पर है। मैंने विश्वकर्मा स्किल डेवलेपमेंट विश्विविद्यालय, हरियाणा की दो लाख खाने बांटने की पहल में भी अपना पूरा योगदान दिया है। कश्मीर से हूं तो वहां गांदरबल में मैंने राशन वितरित करवाया है। पहलगाम की कुछ विधवा बहनों को मैं हर महीने नकदी भिजवाती हूं। इस वादे को मैंने इन दिनों में भी पूरा किया है। निजामुद्दीन में हर साल जरूरतमंदों के लिए इफ्तार करती थी तो इस बार भी मैंने पुलिस से इजाजत लेकर मैंने उन तक राशन पहुंचाया।
एक-दूसरे को सपोर्ट कर रहे हैं : 'जूट फॉर लाइफ' की एंटरप्रन्योर अंजलि सिंह ने बताया कि हमारा जूट के थैले बनाने का काम है। अब हमने अपने इस काम को भी शुरू कर दिया है। जो ऑर्डर पहले से बचे थे उन्हें पूरा कर रहे हैं। इसके अलावा हमने अपनी महिलाओं को मास्क सिलने के काम पर लगाया है। इसका प्रोडक्शन काफी चल रहा है। हमारी डिजाइनर, सैंपलर सेंटर से ही कटिंग कर उन्हें मास्क सिलने के लिए देती हैं और महिलाएं अपने घर से इन्हें सिल कर भेज रही है।
हमने मशाीनें उनको घर पर ही दे दी हैं। शहर की करीब सौ महिलाएं इस समय हमसे जुड़ी हुई हैं। हमें हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स, नाबार्ड जैसे बैंक संस्थानों, ग्रामीण विकास संस्थानों और स्थानीय स्तर पर मास्क के ऑर्डर मिले हैं। हम ऑर्डर ले रहे हैं और उन्हें काम दे रहे हैं। दोनों एक-दूसरे को सपोर्ट कर रहे हैं। एक मास्क का पांच उन्हें रुपया मिल रह है। अगर एक दिन में 50 बना लिए तो उनके 250 रुपए हो गए।
प्रशिक्षण से स्किल बढ़ा रहे हैं : केजीएस एडवाइजर्स की सीईओ तृप्ति सिंघल सोमानी ने बताया कि हम फाइनेंस एडवाइजर हैं। हमारे साथ 50000 रुपए तक की तनख्वाह वाली महिलाएं काम कर रही हैं। इन्होंने हमारे साथ लॉकडाउन में भी काम किया है और हम इन्हें पूरी सैलरी दे रहे हैं। चाहे काम कम भी रहा लेकिन हमने उनके पैसे नहीं काटे बल्कि इनके समय का सदुपयोग करते हुए हम इन्हें प्रशिक्षित कर रहे हैं ताकि इनकी स्किल्स बढ़ जाए। इनको अगर काम का में सिर्फ ए आता था तो हमने उन्हें बी और सी भी सिखाया है ताकि वे हमारे क्लाइंट्स को ज्यादा अच्छी तरह से गाइड कर पाएं।
अभी बिजनेस कम है तो बाहर से जुड़ी महिलाओं को बिजनेस डेवलेपमेंट के लिए मार्केटिंग के लिए तैयार कर रहे हैं ताकि वे हमारा उत्पाद बेच सकें। महिलाएं दो तरीके से हमारे साथ हैं। एक तो वे जिन्हें हमने काम पर रखा है और दूसरी वे जो सहभागी के तौर पर हमारे लिए काम कर रही हैं। आज सभी को वित्तीय योजनाओं की जरूरत है। सरकार ने जो घोषणएं की है उनकी तैयारी की जरूरत है। इसके लिए हम उन्हें प्रशिक्षित कर रहे हैं। उनके लिए हमने वेबिनार करवाए और उनका प्रोत्साहन बनाए रखा है। उन्हें सकारात्मक रहने के लिए कहा है।