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संकट में काम आई जमा पूंजी, जुगाड़ की गाड़ी ने कुछ इस तरह बदली जीविका की राह

उन्होंने मोटर साइकिल के जरिए गाड़ी बनाई और सब्जी बेचना शुरू की। इसी के साथ बेपटरी हुई जिंदगी की गाड़ी को पटरी पर लाकर घर वापसी की राह छोड़कर मिसाल पेश की है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 01:18 AM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 01:18 AM (IST)
संकट में काम आई जमा पूंजी, जुगाड़ की गाड़ी ने कुछ इस तरह बदली जीविका की राह
संकट में काम आई जमा पूंजी, जुगाड़ की गाड़ी ने कुछ इस तरह बदली जीविका की राह

बालाघाट, जेएनएन। कोरोना संकट के दौरान लोगों ने आजीविका के लिए नए काम शुरू किए हैं। ऐसी ही कहानी मध्य प्रदेश के बालाघाट के किरनापुर में रहने वाले सचिन दास की है। पत्नी की जमा पूंजी से उन्होंने जुगाड़ कर गाड़ी बनाई और सब्जी बेचना शुरू किया है।

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सचिन दास बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान आजीविका का जरिया नहीं बचा और घर बैठे-बैठे जमा पूंजी भी घटने लगी तो पत्नी ने कुछ और काम करने की सलाह दी, लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। पत्नी ने खुद कमाकर जो पूंजी बुरे वक्त के लिए जुटाई थी, वह पति को देकर कहा कि लॉकडाउन में सब्जी का काम चल जाएगा, इसे शुरू कर दो। उन्होंने मोटर साइकिल के जरिए गाड़ी बनाई और सब्जी बेचना शुरू की। इसी के साथ बेपटरी हुई जिंदगी की गाड़ी को पटरी पर लाकर घर वापसी की राह छोड़कर मिसाल पेश की है।

लॉकडाउन से पहले कपड़े बेचने का करते थे काम

नैनपुरी (आगरा) निवासी 35 वर्षीय सचिन पिछले 8-10 साल से बालाघाट जिले के किरनापुर में रहकर जीवन यापन कर रहे हैं। लॉकडाउन के पहले वह कपड़े बेचने का काम करता था। यह काम पूरी तरह बंद हो गया। तीन बच्चों और पत्नी के साथ किराए के घर में रहकर जमा पूंजी खत्म हो रही थी। पत्नी ने हौसला बढ़ाया और घर वापसी को लेकर पीछे नहीं मुड़ने की सलाह दी।

जीवन साथी साथ हो तो किसी सहारे की जरूरत नहीं ..

सचिन दास ने बताया कि लॉकडाउन में काम बंद हो जाने के बाद ज्यादा दिन तक हाथ की पूंजी नहीं चली। घर बैठे हाथ का पैसा खर्च हो गया। घर में राशन नहीं बचा, भूखों मरने की नौबत आ गई। तब पत्नी ने सब्जी बेचने की सलाह दी और जमा पूंजी भी दी। इससे नए काम की शुरआत ने जरिया बदल दिया और संकटकाल में हालात भी बदल गए। तंग हाथों में दो पैसा रहने लगा है। जिसका जीवन साथी साथ में हो उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं।


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