नई दिल्ली, जागरण प्राइम । डेंगू, चिकनगुनिया और जीका जैसी खतरनाक बीमारियों को फैलाने वाला मच्छर अब और घातक हो चुका है। जापान के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया है कि मच्छरों को मारने के लिए इस्तेमाल होने वाले घातक केमिकल टाइगर मच्छर पर बेअसर होने लगे हैं। मच्छरों को मारने के लिए छिड़की जाने वाली दवाओं ने ही इन्हें और मजबूत बना दिया है। एशिया के अलग अलग हिस्सों में टाइगर मच्छर पर किए गए शोध में पता लगा है कि इस मच्छर ने पर्मेथ्रिन जैसे घातक कीटनाशकों के प्रति 1000 गुना तक प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। इसको लेकर वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है। गौरतलब है कि हर साल दुनिया की लगभग आधी आबादी डेंगू के खतरे का सामना करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पिछले दो दशक में डेंगू के मामलों में 8 गुने से ज्यादा की वृद्धि देखी गई है। डब्लूएचओ ने डेंगू को दुनिया के 10 सबसे बड़े स्वास्थ्य खतरों की सूची में रखा है।

टोक्यो स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंफेक्शियस डिजीज के वैज्ञानिक शिंजी कसाई के मुताबिक उनकी टीम ने थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, घाना और ताइवान सहित कुछ अन्य एशियाई देशों से एडीज या टाइगर मच्छर के सैंपल एकत्र करके उन पर अध्ययन किया। रिपोर्ट के मुताबिक एशिया के कई देशों के साथ-साथ घाना के मच्छरों में आनुवांशिक बदलाव हुए हैं और उनमें कई कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास हुआ है। इसके चलते कुछ लोकप्रिय पाइरेथ्रॉइड-आधारित कीटनाशकों जैसे पर्मेथ्रिन का असर अब इन मच्छरों पर नहीं हो रहा है। कंबोडिया से लिए गए मच्छरों के सैंपल की जांच में पाया गया कि 90 फीसदी मच्छरों में कई अलग अलग तरह के म्यूटेशन हुए हैं। इसके चलते यहां के मच्छरों में काफी अधिक प्रतिरोधक क्षमता देखी गई। यहां के मच्छरों में देखा गया कि कीटनाशक की जितनी मात्रा से सामान्य तौर पर 100 फीसदी तक मच्छर मर जाने चाहिए उनती मात्रा में 7 फीसदी मच्छर भी नहीं मरे। वहीं कीटनाशक की 10 फीसदी तक मात्रा बढ़ाने पर भी 30 फीसदी मच्छर ही मरे। रिसर्च में पाया गया कि कंबोडिया, वियतनाम और घाना में मच्छरों में प्रतिरोधक क्षमता का स्तर अलग अलग है। मच्छरों में अनुवांशिक बदलाव कब हुआ और प्रतिरोधक क्षमता कब बढ़ी इसकी जांच के लिए वैज्ञानिकों की टीम कई अन्य एशियाई देशों में काम कर रही है।

आईसीएमआर के सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर क्लाइमेट चेंज एंड वेक्टर बॉर्न डिजीज के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर रहे डॉक्टर रमेश धीमान बताते हैं कि एडीज या टाइगर मच्छर मौसम में बदलावों के साथ भी तेजी से अनुकूलन कर लेता है। एशियन टाइगर मच्छर को सबसे खतरनाक मच्छर कहा जा सकता है। दरअसल इसके अंडे छह महीने तक पड़े रह सकते हैं। बारिश में या पानी मिलने पर इसमें से लारवा निकल आते हैं। इसे सबसे आक्रामक मच्छर भी माना जाता है। ये काफी तेज और एक साथ कई बार डंक मारने के लिए भी जाना जाता है। दरअसल ये मच्छर किसी इंसान से काफी मात्रा में खून लेकर किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर में वायरस पहुंचा सकता है। डेंगू, चिकनगुनिया, यलो फीवर, जीका वायरस और वेस्ट नाइल वायरस से होने वाली बीमारियां ज्यादातर ये मच्छर ही फैलाता है। ये मच्छर अंधेरे का इंतजार नहीं करता है। ये दिन में भी डंक मारता है। इस मच्छर को नियंत्रित करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है कि इसके लारवा को मारा जाए। ये मच्छर खास तौर पर शहरी क्षेत्रों में पाया जाता है। घरों में या आसापास पानी से स्रोत इसके प्रजनन की मुख्य जगहें होती हैं।

अध्ययन में एडीज इजिप्टाई के अलावा मच्छरों की अन्य किस्मों में भी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी हुई पाई गई लेकिन एडीज या टाइगर मच्छर की तुलना में ये कम थी। इसकी दो प्रमुख वजहें होने की संभावना जताई जा रही है पहली की टाइगर मच्छर अनुवांशिक तौर पर मजबूत होता है। वहीं ये इंसानों के करीब रहता है जिससे ये कीटनाशकों के ज्यादा संपर्क में आता है।

मच्छरों से फैलने वाले रोग बढ़े

जलवायु परिवर्तन के चलते संक्रामक रोग बढ़े हैं। पिछले 4 दशकों में संयुक्त वैश्विक प्रयासों से दुनिया में मलेरिया के मामले कम हुए हैं, लेकिन अन्य वेक्टर जनित बीमारियों, विशेष रूप से डेंगू से होने वाली मौतें बढ़ी हैं। जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य 2019 रिपोर्ट में द लैंसेट ने खुलासा किया था कि पिछले कुछ वर्षों में मच्छरों से होने वाले रोगों (मलेरिया और डेंगू) में वृद्धि हुई है। अध्ययनों से पता चलता है कि दक्षिण एशिया के ऊंचे पहाड़ों में ज्यादा बारिश और बढ़ते तापमान के चलते संक्रामक बीमारियां तेजी से फैली हैं। ज्यादा बारिश के चलते इन पहाड़ी इलाकों में मच्छरों को प्रजनन में मदद मिली है।

डॉक्टर रमेश धीमान बताते हैं कि जल जनित और वेक्टर जनित रोग पैदा करने वाले रोगजनक जलवायु के प्रति संवेदनशील होते हैं। मच्छरों, सैंड फ्लाई, खटमल जैसे बीमारी फैलाने वाले कीटों का विकास और अस्तित्व तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करता है। ये रोग वाहक मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी एन्सेफलाइटिस, कालाजार जैसी बीमारी बहुत तेजी से फैला सकते हैं। आने वाले समय में ये देखा जा सकता है कि कुछ इलाके जहां पर कोई विशेष संक्रामक बीमारी नहीं थी, जलवायु परिवर्तन के चलते अचानक से बीमारी फैलने लगे। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव एक समान नहीं होगा क्योंकि विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अलग-अलग विशेषताएं होती हैं।उदाहरण के लिए, भारत में हिमालयी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील है क्योंकि तापमान में वृद्धि के कारण ठंडे तापमान वाले क्षेत्र मलेरिया और डेंगू के लिए उपयुक्त हो गए हैं। देश का दक्षिणी भाग कम प्रभावित होने की संभावना है क्योंकि यह लगभग सभी 12 महीनों के लिए पहले से ही वेक्टर जनित रोगों के लिए जलवायु उपयुक्त है।

ये है समाधान

आईसीएमआर की संस्था नेशनल इंटीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के वैज्ञानिक हिम्मत सिंह कहते हैं कि अन्य मच्छरों की तुलना में टाइगर मच्छर में प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा बढ़ी है। ये मच्छर अन्य मच्छरों की तुलना में घातक भी है। सामान्य तौर पर किसी मच्छर को मारने के लिए 4 से 5 साल तक कोई एक केमिकल इस्तेमाल किया जाए तो वो इसके लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। ऐसे में हमें मच्छरों के लिए दो अलग अलग तकनीकों का इस्तेमाल करना चहित। पहली तकनीक जिसमें लम्बे समय तक एक केमिकल का छिड़काव नहीं किया जाता है। कुछ समय के अंतरराल पर मच्छर मारने के लिए कैमिकल बदल दिए जाते हैं। वहीं दूसरी तकनीक को मोजैक तकनीक कहते हैं जिसमें मच्छरों को मारने के लिए किसी एक कैमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि कई केमिकलों को मिला कर छिड़काव किया जाता है। इस तरह से मच्छरों पर नियंत्रण लगाया जा सकता है। व्यस्क एडीज या टाइगर मच्छर को नियंत्रित करना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में सबसे बेहतर होता है कि इस मच्छर के लारवा को ही खत्म कर दिया जाए।

मच्छरों से बचने के लिए करें ये उपाय

मच्छरों से बचने के लिए अपने घर के आसपास सफाई रखें। पानी न इकट्ठा होने दें। घर में अगर मच्छर दिखे तो इंसेक्टीसाइड का इस्तेमाल करें। मच्छर दानी में सोएं। कपड़ों से शरीर को ढक कर रखें। मॉस्किटो रिपेलेंट क्रीम का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

डॉक्टर नरेंद्र सैनी कहते हैं कि डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया तीनों का इलाज संभव है। अगर आपको तेज बुखार आता है, ठंडी लगे, सिर में दर्द हो, आंखों में दर्द हो, जोड़ों में दर्द हो, स्वाद का पता न चले, भूख न लगे, कमजोरी लगे, सीने पर या बदन पर दाने हो जाएं, चकत्ते हो जाएं, चक्कर आए, जी घबराए या उल्टी आए तो तुरंत डॉक्टर से मिलें।