कानून के मुताबिक हुई कानपुर और प्रयागराज में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई, उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा
जमीयत उलमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर उत्तर प्रदेश सरकार पर हिंसा के आरोपियों के घरों पर बुल्डोजर चलाने का आरोप लगाया है और बुल्डोजर की कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि कानपुर और प्रयागराज में अवैध निर्माण ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कानून के मुताबिक हुई है। संबंधित विकास प्राधिकरणों ने उत्तर प्रदेश अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट 1973 में तय कानूनी प्रक्रिया का कड़ाई से पालन करते हुए अवैध निर्माण करने वालों को नोटिस और जवाब का मौका देने के बाद ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की है। इस कार्रवाई का उत्तर प्रदेश में हुई हिंसा से कोई लेनादेना नहीं है।
प्रदेश सरकार ने जमीयत उलेमा ए हिंद की याचिका में समुदाय विशेष को लक्षित कर की गई दंडात्मक कार्रवाई के लगाए गए आरोपों पर कड़ा ऐतराज भी जताया है और ऐसे सभी आरोपों को नकारा है। प्रदेश सरकार ने कहा है कि हिंसा और उपद्रव करने वाले अभियुक्तों के खिलाफ राज्य सरकार अन्य कानूनों में जैसे आइपीसी व सीआरपीसी, यूपी गैंगेस्टर एक्ट, प्रिवेंशन आफ पब्लिक प्रापर्टी डैमेज एक्ट और उत्तर प्रदेश रिकवरी आफ डैमेज टु पब्लिक एंड प्राइवेट प्रापर्टी एक्ट व रूल्स के तहत कार्रवाई कर रही है। अवैध निर्माण के खिलाफ ध्वस्तीकरण की कार्रवाई विकास प्राधिकरण ने कानून के तहत स्वतंत्र रूप से की है। ये बातें प्रदेश सरकार ने जमीयत उलमा हिंद की याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किये गये हलफनामे में कही हैं।
बुल्डोजर की कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग: जमीयत उलमा ए हिंद
जमीयत उलमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर उत्तर प्रदेश सरकार पर हिंसा के आरोपियों के घरों पर बुल्डोजर चलाने का आरोप लगाया है और बुल्डोजर की कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस अर्जी पर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। दाखिल जवाब में प्रदेश सरकार ने कहा है कि विकास प्राधिकरण स्वायत्त विधायी संस्था है और कानून के मुताबिक अवैध निर्माण और अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई करने का उसे अधिकार है।
ध्वस्तीकरण की कार्रवाई का काफी पहले भेजा गया था नोटिस
साथ ही कहा है कि याचिकाकर्ता ने ध्वस्तीकरण कार्रवाई के चुनिंदा मामलों को उठाते हुए स्थानीय प्राधिकरणों पर दुर्भावना से कार्रवाई करने के आरोप लगाने की कोशिश की है जो कि पूरी तरह गलत और निराधार हैं। संबंधित प्राधिकरणों ने याचिका में उठाए गए दोनों मामलों में अवैध निर्माण के खिलाफ रुटीन कार्रवाई में कानून का पालन करते हुए ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की है। दोनों मामले कानपुर के इश्तिआक अहमद और रियाज अहमद तथा प्रयागराज में जावेद मोहम्मद के यहां अवैध निर्माण था उन्हें ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के काफी पहले नोटिस भेजा गया था। सुनवाई का मौका भी दिया गया था।
राज्य सरकार ने दोनों मामलों में भेजे गए नोटिस का तारीखवाद ब्योरा दिया
पूरी कानूनी प्रक्रिया का निर्वाह करते हुए ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई। राज्य सरकार ने दोनों मामलों में भेजे गए नोटिस आदि का तारीखवार ब्योरा दिया है। कहा है कि याचिकाकर्ता ने इन तथ्यों को सामने नहीं रखा और कुछ मीडिया रिपोर्टों के आधार पर राज्य के तंत्र और अधिकारियों पर निराधार आरोप लगाए। यह भी कहा कि इस मामले में ध्वस्तीकरण से प्रभावित पक्षकार कोर्ट नहीं आए हैं। और अगर प्रभावित पक्ष ध्वस्तीकरण की कार्रवाई को चुनौती भी देना चाहते हैं तो उन्हें हाई कोर्ट जाना चाहिए न कि सुप्रीम कोर्ट में आएं। राज्य सरकार ने याचिका में राज्य के उच्च संवैधानिक पद पर आसीन लोगों पर धर्म विशेष के समुदाय को निशाना बनाकर दंडात्मक कार्रवाई किये जाने के लगाए गए निराधार आरोपों पर कड़ा ऐतराज जताया है। राज्य सरकार ने याचिका को जुर्माने सहित खारिज करने की मांग की है।