सुप्रीम कोर्ट में दलित मुस्लिमों को एससी दर्जा देने की मांग, जमीयत का मामले में पक्षकार बनाए जाने का अनुरोध
जमीयत ने अर्जी में मतांतरित कर इस्लाम अपनाने वाले मुसलमानों को एससी दर्जा दिए जाने की मांग का समर्थन किया है। साथ ही कहा कि दलित मुसलमानों को एससी की लिस्ट में शामिल किए जाने से मुसलमान समुदाय की राजनीतिक शैक्षणिक और रोजगार सेक्टर में भागेदारी बढ़ेगी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कोर्ट से दलित मुस्लिमों और दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति (एससी) दर्जा से संबंधित मामले में पक्षकार बनाने और उसका पक्ष सुने जाने की मांग की है।
शैक्षणिक व रोजगार क्षेत्र में भागीदारी बढ़ने की दलील
जमीयत ने अर्जी में मतांतरित कर इस्लाम अपनाने वाले मुसलमानों को एससी दर्जा दिए जाने की मांग का समर्थन किया है। साथ ही कहा कि दलित मुसलमानों को एससी की लिस्ट में शामिल किए जाने से मुसलमान समुदाय की राजनीतिक, शैक्षणिक और रोजगार सेक्टर में भागेदारी बढ़ेगी। इसका मुसलमानों के वंचित वर्ग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
दलित मुसलमानों को एससी दर्जा दिए जाने की मांग
जमीयत ने अर्जी दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को एससी दर्जा दिए जाने की मांग वाली पहले से लंबित याचिकाओं में दाखिल की है और जमीयत को भी मामले में पक्षकार बनाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट में बहुत सी याचिकाएं लंबित हैं जिनमें दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को एससी दर्जा यानी अनुसूचित जाति को मिलने वाला आरक्षण देने और एससी की राष्ट्रपति द्वारा जारी सूची में शामिल किए जाने की मांग की गई है। कहा गया है कि मतांतरित होने के बावजूद दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों की स्थिति में बदलाव नहीं आया है, वे अभी भी उतने ही पिछड़े। याचिकाओं में संविधान के अनुसूचित जाति आदेश 1950 के पैराग्राफ तीन को चुनौती दी गई है।
सुनवाई के लिए 30 नवंबर की तारीख तय
मामले पर सुनवाई की 30 नवंबर की तारीख तय है। जमीयत ने अपनी अर्जी में लंबित याचिकाओं का समर्थन करते हुए कहा है कि संविधान धर्म, जाति, स्थान आदि के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है ऐसे में दलित मुसमलानों को धर्म के आधार पर एससी दर्जे से बाहर रखना भेदभाव पूर्ण है।
ईसाई और मुसलमान बनने वाले दलित एससी दर्जे के हकदार नहीं
अपनी मांग के समर्थन में जमीयत ने मुसलमानों की दशा पर सच्चर कमेटी कि रिपोर्ट और रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है। इस मामले में केंद्र सरकार ने भी गत 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दाखिल कर अपना रुख साफ किया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि मतांतरण कर ईसाई और मुसलमान बनने वाले दलित एससी दर्जे के हकदार नहीं हैं। अस्पृश्यता कानून सभी के लिए समान रूप से लागू है चाहें व्यक्ति किसी भी धर्म का क्यों न हो। इन्हें अभी ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को मिलने वाले लाभ मिलते हैं।
केंद्र सरकार ने याचिका का किया विरोध
केंद्र सरकार ने कहा था कि विभिन्न राज्य सरकारों ने याचिकाओं में इस वर्ग के पिछड़ेपन के उठाए गए मुद्दों को तर्कसंगत ढंग से वर्गीकृत करके इन्हें ओबीसी का लाभ दिया है। केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध किया है। इसके अलावा सरकार ने कोर्ट को यह बताया कि दलित ईसाइयों और दलित मुसमलानों को एससी दर्जा देने पर विचार करने के लिए सरकार ने एक आयोग गठित कर दिया है।
रिपोर्ट बनने से पहले मौजूदा वर्गीकरण को भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता
आयोग यह अध्ययन करेगा कि इनमें अभी भी पहले जैसा गंभीर पिछड़ापन और भेदभाव है कि नहीं। जब तक आयोग इस पर रिपोर्ट देता है तब तक मौजूदा वर्गीकरण को भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता। मालूम हो कि केंद्र सरकार ने भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया है जो दलित ईसाइयों और दलित मुसमलानों को एससी दर्जा दिए जाने पर अध्ययन करके सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा।
सरकार ने मामले में विरोधाभासी स्टैंड लिया
इस मामले में मंगलवार 29 नवंबर को याचिकाकर्ता सेंटर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की ओर से केंद्र सरकार के हलफनामे का प्रतिउत्तर दाखिल किया गया जिसमें कहा गया कि सरकार ने मामले में विरोधाभासी स्टैंड लिया है। एक तरफ तो सरकार कहती है कि ये एक जटिल सामाजिक मुद्दा है जिस पर सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श कर गहराई से विचार करने की जरूरत है और इसके लिए सरकार ने आयोग भी गठित किया है जो कि दो वर्ष में अपनी रिपोर्ट सौंपेगा।
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जबकि दूसरी ओर सरकार की ओर से दाखिल जवाबी हलफनामे में दलित ईसाइयों और दलित मुस्लिमों को एससी दर्जा दिए जाने और एससी सूची में शामिल करने का विरोध किया गया है। कहा है कि कल्याणकारी राज्य होने के नाते सरकार का कर्तव्य है कि वह जाति आधारित भेदभाव झेल रहे लोगों के साथ निष्पक्ष रुख रखे।
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