दिल्ली सरकार ने दायर की नए जीएनसीटीडी एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका, सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
दिल्ली सरकार ने नए संशोधित जीएनसीटीडी एक्ट (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम) के संशोधित प्रविधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा है कि नए कानून के प्रविधान तय संवैधानिक व्यवस्था और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। दिल्ली सरकार ने नए संशोधित जीएनसीटीडी एक्ट (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम) के संशोधित प्रविधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा है कि नए कानून के प्रविधान तय संवैधानिक व्यवस्था और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। दिल्ली सरकार ने जीएनसीटीडी कानून, 2021 की धारा 21, 24, 33 और 44 को असंवैधानिक घोषित कर रद किए जाने की मांग की है। इसके साथ ही दिल्ली सरकार ने जीएनसीटीडी के ट्रांसेक्सन रूल 2021 के नियम 3, 6ए, 10, 14, 15, 19, 22, 23, 25, 47ए, 49, 52 और 57 को भी रद करने की मांग की है।
नए कानून के प्रविधान संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ : दिल्ली सरकार
दिल्ली सरकार का कहना है कि जीएनसीटीडी अधिनियम के ये प्रविधान संविधान के तहत दिल्ली की चुनी हुई सरकार को मिली शक्तियों और कामकाज को कम व सीमित करते हैं। इसके अलावा कानून में किए गए इन संशोधनों से केंद्र और राज्यों के बीच का संतुलन भी गड़बड़ता है। दिल्ली सरकार की ओर से सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका का जिक्र करते हुए शीघ्र सुनवाई की मांग की गई थी, जिस पर प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की पीठ ने कहा था कि वह मामले को सुनवाई पर लगाएंगे।
दिल्ली सरकार की याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद-239एए एनसीटी दिल्ली के बारे में एक विशिष्ट प्रविधान है। जिसमें चुनी हुई विधायिका के साथ एक जिम्मेदार कार्यपालिका भी है और दोनों को ही अपने तय क्षेत्र में काम करना होता है। दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण अनुच्छेद-239एए में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर उपराज्यपाल होते हैं, जिनकी सीमित भूमिका होती है।
दिल्ली सरकार ने कहा है कि दिल्ली सरकार बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अनुच्छेद-239एए के प्रविधानों को स्पष्ट किया है। उपराज्यपाल की शक्तियों और कामकाज की व्याख्या संविधान में दी गई संघीय व्यवस्था के नजरिये से की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कुछ अपवाद के मामलों में उपराज्यपाल को निश्चित भूमिका निभाने की बात कही गई है।
याचिका में कहा गया है कि संशोधित कानून में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में तय किए गए नाजुक संवैधानिक संतुलन को पलट दिया गया है। संवैधानिक कानून में उपराज्यपाल को दिल्ली की चुनी हुई सरकार के ऊपर एक डिफाल्ट एडमिनिस्ट्रेटिव अथारिटी की तरह बना दिया गया है। एक तरह से उपराज्यपाल को ही सरकार बना दिया गया है। उपराज्यपाल को सरकार के रोजाना के प्रशासनिक कामकाज में दखल का हक दिया गया है।
नए कानूनी प्रविधानों में दिल्ली विधानसभा के विधायी कामकाज में भी अतिक्रमण किया गया है। नए कानूनी प्रविधान संविधान के अनुच्छेद-239एए और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करते हैं। संशोधन करके जोड़े गए नए प्रविधान संघीय व्यवस्था, शक्तियों का बंटवारा, प्रतिनिधित्व लोकतंत्र और रूल आफ ला के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं। इसलिए संशोधित कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है। इसके अलावा संशोधित नियमों में भी दिल्ली की चुनी हुई सरकार की कार्यकारी शक्तियों को कम किया गया है और उन शक्तियों को उपराज्यपाल व सरकार के सचिवों को स्थानांतरित कर दिया गया है।