Move to Jagran APP

भाजपा का पलड़ा भारी है

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मेरा कभी-कभार का आना-जाना और वहां के कुछ लोगों से बातचीत जरूर है, लेकिन न तो वहां के वोटर की मानसिकता मैं जानता हूं और न ही वोटरों के अपने बुनियादी मुद्दे, लेकिन दिल्ली में मैं ख़ुद करीब 7 साल रहा हूं। अभी भी दिल्ली से बहुत दूर नहीं हूं और इसीलिए वहां के

By Edited By: Published: Sat, 07 Dec 2013 11:35 PM (IST)Updated: Sat, 07 Dec 2013 11:40 PM (IST)
भाजपा का पलड़ा भारी है

इष्ट देव सांकृत्यायन, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मेरा कभी-कभार का आना-जाना और वहां के कुछ लोगों से बातचीत जरूर है, लेकिन न तो वहां के वोटर की मानसिकता मैं जानता हूं और न ही वोटरों के अपने बुनियादी मुद्दे, लेकिन दिल्ली में मैं ख़ुद करीब 7 साल रहा हूं। अभी भी दिल्ली से बहुत दूर नहीं हूं और इसीलिए वहां के वोटर की मानसिकता, राजनीति को देखने के उसके तरीके और उसके बुनियादी मुद्दों की थोड़ी समझ रखता हूं। बीच-बीच में दिल्ली के लोगों से बातचीत भी होती रही है और उस आधार पर मेरा यह अनुमान है कि यहां सबसे अच्छी स्थिति में भाजपा है।

loksabha election banner

काफी हद तक संभावना इस बात की है कि वह सरकार बनाने लायक स्पष्ट बहुमत हासिल कर ले। इसके कुछ बुनियादी कारण हैं और सबसे बड़ी वजह सत्ताविरोधी लहर है।

यह बात पहले ही स्पष्ट कर दूं कि मेरे इस आकलन आधार जातीय, धार्मिक या क्षेत्रीय समीकरण नहीं हैं और मैं यह भी जानता हूं कि पुलिस ने भारी मात्रा में शराब और नकद पकड़ा है। यह कहना गलत होगा कि इन चीजों का बंटवारा किसी एक पार्टी ने किया है, लेकिन यह कहना बिलकुल गलत होगा कि वोटर इनमें से किसी के भी प्रभावा में पूरी तरह बह गया है। फिर भी इनका कुछ तो असर होगा ही और वह किसके पक्ष में जाएगा, यह तय नहीं किया जा सकता।

मतदाताओं के लिए जो मुद्दे सतह पर हैं, उनमें स्त्रियों, बच्चों और बुजुर्गो की सुरक्षा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। भ्रष्टाचार को लेकर अन्ना और स्वामी रामदेव के आंदोलनों के अलावा वसंत कुंज सामूहिक दुष्कर्म कांड और उसके बाद स्त्रियों की सुरक्षा को ही लेकर हुए दो स्वत:स्फूर्त आंदोलन कभी भुलाए नहीं जा सकते। वसंत कुंज सामूहिक दुष्कर्म वाले मामले में एक आरोपी का नाबालिग मान लिया जाना जनता को आज तक पच नहीं सका है।

भ्रष्टाचार के मुद्दे का आलम यह रहा है कि सीडब्ल्यूजी को लेकर जितनी ख़बरें मीडिया में आईं, जनता के बीच चर्चा उससे कहीं बहुत ज्यादा रही है। टू जी और कोल गेट जैसे मामले भले केंद्र से संबंधित रहे हों, लेकिन आम जनता ने इन्हें देखा कांग्रेस की कारगुजारी के रूप में है और आम जन तर्क चाहे जो सुन ले, बहस वह भले ही बहुत अच्छी न कर सके, पर समझता अपने ढंग से है। बिलकुल यही बात महंगाई के मामले में भी है।

40 रुपये किलो आलू और 80 रुपये किलो प्याज और टमाटर का घाव अभी सभी विचारधाराओं को मानने वाले मध्यवर्गीयों के कलेजे पर हरा है। दाल, चावल, आटा और पेट्रोल का मामला तो है ही; हर ऑटो का मीटर पिछले 10 साल से फेल चलना भी बड़ा कारण बन रहा है। यह भी मध्यवर्ग पर ही भारी पड़ा है।

मध्यवर्ग को नए सिरे से लाइसेंस-परमिट राज का लौटना भी रास नहीं आया है। खाद्य सुरक्षा विधेयक तो कतई नहीं। अनिवार्य शिक्षा विधेयक भी वस्तुत: मध्यवर्ग की जेब पर भारी पड़ा है, जिसका अपेक्षित लाभ वंचित तबके को भी नहीं मिल सका है। नित नए कानूनों की इस आग में घी का काम सांप्रदायिक हिंसा निरोधक विधेयक ने किया है, जिसे मध्यवर्ग देश की पंथनिरपेक्षता के मूलभूत चरित्र और अवधारणा के ही खि़लाफ़ मान रहा है।

अन्ना आंदोलन के कुछ ही दिनों बाद आम आदमी पार्टी बनी थी। तब यह उम्मीद की जा रही थी कि सरकार से नाराज मतदाताओं का बड़ा हिस्सा आप के पाले में चला जाएगा, लेकिन इसके पहले कि नाराज मतदाता अपना पक्का मन बना पाता आप ने भी चुनाव जीतने के लिए उन्हीं टोटकों का प्रयोग शुरू कर दिया, जिनका प्रयोग कांग्रेस-भाजपा करती आ रही थीं। इसने लोगों को अपने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए मजबूर किया।

इसी बीच, भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपना प्रत्याशी बदल दिया। बेशक, इसे लेकर बड़े विवाद भी हुए, लेकिन इसका परिणाम भी भाजपा के पक्ष में गया है। लेकिन ध्यान रहे, यह कुल मिलाकर नाराजगी का वोट है और नाराज वोटर की अपेक्षाएं बहुत विकट किस्म की होती हैं। आने वाली सरकार इन अपेक्षाओं पर कितनी खरी उतरती है, उसका भविष्य अकेला यह फैक्टर ही तय करेगा।

(सहायक संपादक, जागरण सखी)

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.