अमेरिका के साथ रक्षा समझौता विनाशकारी: कांग्रेस
भारत और अमेरिका के बीच हुए द्विपक्षीय रक्षा समझौते पर कांग्रेस समेत वाम दलों ने घोर विरोध दर्ज किया है। कांग्रेस नेता व पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने केंद्र के फैसले को देश के लिए विनाशकारी बताते हुए इसे वापस लेने की सलाह दी है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच हुए द्विपक्षीय रक्षा समझौते पर कांग्रेस समेत वाम दलों ने घोर विरोध दर्ज किया है। कांग्रेस नेता व पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने केंद्र के फैसले को देश के लिए विनाशकारी बताते हुए इसे वापस लेने की सलाह दी है। साथ ही विदेश नीति और सामरिक स्वायत्तता की स्वतंत्रता पर खतरा होने का आसार भी जताया है। जबकि माकपा ने समझौते के खिलाफ सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होने की अपील की है।
एंटनी ने कहा कि समझौते पर हस्ताक्षर से दुनिया की नजर में भारत धीरे-धीरे अमेरिकी सैन्य गुट का हिस्सा बन जाएगा। उन्होंने कहा- 'भारत शायद ही कभी अपने सीमा से परे जाकर मिशन चलाता है। लिहाजा इसका फायदा भारतीय संसाधनों के उपयोग के रूप में अमेरिका को होने वाला है। समझौता इस लिहाज से भी खतरनाक है कि अमेरिका ने हाल ही में अपने 60 प्रतिशत मरीन्स की तौनाती एशिया प्रशांत क्षेत्र में करने की घोषणा की है। जिसका सीधा मतलब भारत का उनके प्रमुख फैसिलिटेटर में से एक बनना तय है। समझौते पर हस्ताक्षर से उनके सैन्य संघर्षों में भी हिस्सेदारी करने पड़ेगी। हमारी सरकार ने इस तरह के प्रस्तावों का हमेशा विरोध किया था। सोवियत संघ और अमेरिका के साथ भी अपने संबंधों में सुधार जरूर किए थे। लेकिन दबाव में किसी सैन्य गुट का हिस्सा बनने का विरोध किया है।
गौरतलब है कि अमेरिका और भारत के बीच लाजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम आफ एग्र्रीमेंट (लेमोआ) पर सहमति बनी हैै। हालांकि परिक्कर की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस समझौते के तहत भारतीय जमीन पर अमेरिकी सेना की तैनाती नहीं हो सकती है।
बहरहाल, वामदलों का आशंका है कि इस समझौते ने अमेरिका के लिए दरवाजा खोल दिया है। माकपा ने इसे देश की 'संप्रभुता के साथ समझौता और 'भारत विरोधी करार देते हुए कहा कि सरकार ने अमेरिका को भारतीय जमीन का इस्तेमाल करने की छूट दे दी है। इस तरह के समझौते अमेरिका फिलीपीन्स, दक्षिण कोरिया, जापान जैसे सामरिक दोस्तों के साथ करता रहा है। भाकपा के डी राजा ने भी इसका विरोध करते हुए कहा कि अमेरिका पहले भी भारत में रिफ्यूलिंग की इजाजत मांगता रहा है। अब सरकार वाशिंगटन को खुश करने के लिए अपनी ओर से स्वत: दरवाजा खोल रहा है। यह देश के सही नही हैै।
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