मां के खून में मौजूद होता है खतरनाक रासायन, बच्चों में बढ़ जाता है ऑटिज्म का खतरा
शोधकर्ता एलन एस ब्राउन ने कहा, यह सोचना कि डीडीटी पर पूरी तरह काबू पा लिया गया है, गलत है। गर्भवती मां और उनके बच्चों के लिए यह बहुत नुकसानदेह हो सकता है।
नई दिल्ली [प्रेट्र]। गर्भवती महिलाओं के रक्त में कीटनाशक डीडीटी की मात्रा अधिक होने से बच्चों में ऑटिज्म का खतरा बढ़ जाता है। फिनलैंड की दस लाख से अधिक गर्भवती महिलाओं पर किए गए शोध में यह जानकारी सामने आई है। डीडीटी और पीसीबी जैसे रसायन को 30 साल पहले अमेरिका और फिनलैंड समेत कई देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन ये दोनों आज भी भोजन शृंखला में मौजूद हैं। इसी के चलते इन रसायनों और बच्चों पर उसके असर का पता लगाने के लिए शोध किया गया था।
अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 1987 से 2005 के बीच जन्मे बच्चों को अपने शोध में शामिल किया। इनमें से 778 में ऑटिज्म के लक्षण पाए गए थे। शोध के लिए गर्भावस्था के दौरान लिए गए महिलाओं के ब्लड सैंपल में डीडीटी और पीसीबी की मात्रा का पता लगाया गया।
वैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों में ऑटिज्म का खतरा रक्त में मौजूद डीडीटी की मात्रा से दो गुना तक बढ़ जाता है। हालांकि, पीसीबी और ऑटिज्म में कोई संबंध नहीं मिला। शोधकर्ता एलन एस ब्राउन ने कहा, यह सोचना कि डीडीटी पर पूरी तरह काबू पा लिया गया है, गलत है। गर्भवती मां और उनके बच्चों के लिए यह बहुत नुकसानदेह हो सकता है।
क्या है ऑटिज्म
ऑटिज्म यानी स्वलीनता मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है। हिंदी में इसे आत्मविमोह और स्वपरायणता भी कहते हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है। जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह सब बच्चे के तीन साल होने से पहले ही शुरू हो जाता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि एक हजार में छह लोग एएसडी से पीड़ित होते हैं।
ऑटिज्म से पीड़ित लोग झूठ नहीं पहचान पाते
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से पीड़ित लोग सच और झूठ में भेद नहीं कर पाते। इस वजह से लोग उनका फायदा उठाते हैं। इसके चलते जीवन में उन्हें कई जोखिम उठाने पड़ते हैं। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ केंट के डेविड विलियम्स के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक दल ने यह अध्ययन किया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि एएसडी से पीड़ित लोगों की झूठ को पहचानने की क्षमता उल्लेखनीय ढंग से कम हो जाती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसके चलते ऑटिज्म से पीड़ित लोगों को जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उन्हें धोखे खाने पड़ते हैं। ऑटिज्म से पीड़ित लोगों को प्रशिक्षण देकर सिखाया जा सकता है कि सच और झूठ में कैसे अंतर किया जाए। कुछ प्रयास के बाद वे इनमें अंतर करना सीख सकते हैं।