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छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ फिल्म बना रही पुलिस, मुख्य किरदार में एसपी

नक्सलियों की हकीकत को लेकर दंतेवाड़ा पुलिस एक शॉर्ट फिल्म बनाने जा रही है। इस फिल्म में पुलिस कोे 100 जवान और सरेंडर करने वाले नक्सली अभिनय करते नजर आएंगे।

By Neel RajputEdited By: Published: Thu, 11 Jul 2019 09:19 AM (IST)Updated: Thu, 11 Jul 2019 01:16 PM (IST)
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ फिल्म बना रही पुलिस, मुख्य किरदार में एसपी
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ फिल्म बना रही पुलिस, मुख्य किरदार में एसपी

दंतेवाड़ा, एएनआइ। करीब चार दशक से नक्सलवाद का दंश झेल रहे बस्तर को इससे मुक्त करने के अभियान में नित नए प्रयोग हो रहे हैं। दंतेवाड़ा में अब नक्सलियों की कारगुजारियां सिनेमा के जरिए लोगों तक पहुंचाई जाएंगी। इसके लिए डॉक्टर से आईपीएस बने एसपी अब अभिनेता बनने जा रहे हैं। दंतेवाड़ा के दो अफसर इस शार्ट फिल्म के जरिए नक्सलवाद की बुराइयां उजागर करेंगे। इसके लिए जिले में भिलाई के कलाकारों के साथ खुद पुलिस जवान और सरेंडर कैडर जुटे हैं। करीब 100 कलाकार जवान मिलकर अब सिनेमा के जरिए नक्सलियों के आतंक और दमनकारी नीति से लोगों को रू-ब-रू कराएंगे।

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बस्तर के बीहड़ों में नक्सली वर्षों से राज कर रहे हैं। आदिवासियों को बहला- फूसलाकर और आतंक का सहारा लेकर अपने साथ कर लिया है। अंदरूनी इलाकों में विकास कार्य होने नहीं दे रहे हैं और सरकार व प्रशासन के खिलाफ ग्रामीणों को उकसाते रहते हैं। आदिवासियों को सामने कर आतंक फैलाने में भी नक्सलियों की कोई सानी है। स्थानीय आदिवासी मारा जाता है और बड़े नक्सली आराम से जंगलों या अज्ञात शहरों में रहकर ऐश की जिंदगी जी रहे हैं। इन्हीं बातों को बताने एसपी डॉ अभिषेक पल्लव और एएसपी सूरज सिंह परिहार के नेतृत्व में एक शार्ट फिल्म तैयार की जा रही है। जिसमें स्थानीय जवानों के साथ भिलाई के कलाकार शामिल हैं। यह सिनेमा दंतेवाड़ा के जंगल और चिन्हित स्थलों पर शूट किया जा रहा है। बुधवार को स्थानीय बस स्टैंड स्थित एक दवा दुकान पर फिल्म का एक शॉट फिल्माया गया। इससे पहले दंतेवाड़ा के जंगलों में शूटिंग की गई है।

छोटी-छोटी कहानियों को जोड़कर बनाई बड़ी कहानी
नक्सल आधारित शार्ट फिल्म छोटी- छोटी कहानियों पर पांच- सात भागों में तैयार हो रही है। जिसमें नक्सलियों द्वारा सड़क- पेड काटना, पुल- पुलिया उड़ाना, विस्फोटक लगाना, जवानों पर हमला, गांव के प्रत्येक घर से एक बच्चा अपने साथ ले जाना। इसके अलावा ग्रामीणों को विकास कार्यो से दूर रखना, जनहित के कार्यों में जुटे लोगों की बेवजह हत्या करना जैसी घटनाओं को फिल्म में दिखाया जाएगा। इसके साथ ही सरेंडर के बाद नक्सलियों और उनके परिजनों की बदली जिंदगी पर भी कहानी आधारित होगी। पुलिस अधिकारियों के अनुसार फिल्म की कहानी पूरी तरह सच्चाई से प्रेरित है। इस कहानी में नक्सल संगठन की अंदरूनी सच्चाइयों ओर नसबंदी व गर्भपात जैसे संवेदनशील विषयों को भी दिखाया जाएगा।

अपनी बोली-भाषा में देखेंगे फिल्म
पुलिस अधिकारियों की मानें तो शार्ट फिल्म को हिंदी के अलावा हल्बी और गोंडी भाषा में भी डब किया जाएगा। बावजूद इस शार्ट मूवी में हिंदी, अंग्रेजी, तेलगू, छत्तीसगढ़ी, गोंडी और हल्बी बोली का उपयोग किया जा रहा है। ताकि फिल्म की मौलिकता बनी रहे और ग्रामीण व बच्चे आसानी से समझ सकें। हिन्दी भाषा में इसे डब करने के पीछे मकसद उन लोगों को नक्सलियों की सच्चाई बताना है जो उनके लिए सहानुभूति रखते हैं।

ऐसे आया फिल्म बनाने का विचार
एसपी डॉ अभिषेक पल्लव ने बताया कि दो माह पहले पांच लाख के एक इनामी नक्सली को पुलिस ने एक एनकाउंटर में मार गिराया था। उसके बाद कुआकोंडा में स्थित एक आश्रम के एक बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन देखा गया। उसके पास एक मोबाइल मिला, उसमें नक्सल समर्थित कई वीडियो और साहित्य थे। इस घटना ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया था। बस यहीं से फिल्म बनाने का आइडिया मिला। एसपी कहते हैं कि जब वे जंगल में रहकर फिल्म बनाकर, लोगों को बरगला सकते हैं तो उनके इस नकारात्मक विध्वंसक विचारों का जवाब सकारात्मक तरीके से हम क्यों नहीं दे सकते।


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