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क्षतिग्रस्त धर्मस्थल विशेष मुआवजे के हकदार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

साम्प्रदायिक दंगों या हिंसा के दौरान क्षतिग्रस्त हुए धर्म स्थल विशेष मुआवजे के हकदार नहीं हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 30 Aug 2017 05:27 AM (IST)Updated: Wed, 30 Aug 2017 05:27 AM (IST)
क्षतिग्रस्त धर्मस्थल विशेष मुआवजे के हकदार नहीं: सुप्रीम कोर्ट
क्षतिग्रस्त धर्मस्थल विशेष मुआवजे के हकदार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

 माला दीक्षित, नई दिल्ली। साम्प्रदायिक दंगों या हिंसा के दौरान क्षतिग्रस्त हुए धर्म स्थल विशेष मुआवजे के हकदार नहीं हैं। क्षतिग्रस्त धार्मिक स्थलों की मरम्मत और पुननिर्माण का सारा खर्च उठाने के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता। सरकार हिंसा में क्षतिग्रस्त मकानों, दुकानों आदि के समान ही धार्मिक स्थलों को भी नीति बनाकर आर्थिक मदद दे सकती है। इस दिशा में गुजरात सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मंगलवार को बड़ी जीत मिली। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में वर्ष 2002 के दंगों में क्षतिग्रस्त हुए धार्मिक स्थलों की मरम्मत कराने का हाईकोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने क्षतिग्रस्त मकानों दुकानों की तरह ही धार्मिक स्थलों के लिए 50 हजार रुपये तक की सहायता राशि दिये जाने की सरकार की नीति को तर्कसंगत और सही ठहराते हुए स्वीकृति दे दी है।

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गुजरात दंगों में क्षतिग्रस्त धार्मिक स्थलों की मरम्मत का आदेश निरस्त
- सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया गुजरात हाईकोर्ट का आदेश

- गुजरात सरकार की नीति को मंजूरीकोर्ट ने फैसले में कहापूर्व फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 27 का उद्देश्य धर्म निरपेक्षता को बनाए रखना है। इस अनुच्छेद का तब उल्लंघन होता है जब एकत्रित आयकर व अन्य करों का बड़ा हिस्सा किसी विशेष धर्म या धार्मिक संस्था को बढ़ावा देने या उसके रखरखाव पर खर्च किया जाए। हालांकि कोर्ट ने बड़े हिस्से और अपेक्षाकृत छोटे हिस्से में अंतर किया है।

हिंसा में क्षतिग्रस्त मकानों दुकानों की तरह ही धार्मिक स्थलों को नीति बनाकर आर्थिक मदद दे सकती है सरकार

गुजरात सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मंगलवार को बड़ी जीत मिली। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में वर्ष 2002 के दंगों में क्षतिग्रस्त हुए धार्मिक स्थलों की मरम्मत कराने का हाईकोर्ट का आदेश मंगलवार को निरस्त कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने क्षतिग्रस्त मकानों दुकानों की तरह ही धार्मिक स्थलों के लिए 50 हजार रुपये तक की सहायता राशि दिये जाने की नीति को तर्कसंगत और सही ठहराते हुए स्वीकृति दे दी है। इस मामले में विचार का अहम मुद्दा यही था कि क्या धर्मनिरपेक्ष सरकार को हाईकोर्ट धार्मिक इमारतों की मरम्मत पर पैसा खर्च करने का आदेश दे सकता है? इसके अलावा क्या कर दाताओं के पैसे को किसी धार्मिक इमारत की मरम्मत पर खर्च किया जा सकता है। पूरा मामला अनुच्छेद 27 की व्याख्या से भी जुड़ा था।

 मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति पीसी पंत की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल गुजरात सरकार की याचिका का निपटारा करते हुए अनुच्छेद 27 की व्याख्या और विभिन्न मामलों में मुआवजे का आदेश देने के पूर्व फैसलों को उद्धृत किया है। अनुच्छेद 27 की व्याख्या से जुड़े प्रफुल्ल गोरादिया और आर्कबिशप राफेल चीनाथ एसवीडी के फैसलों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि पहले वाले मामले में दो न्यायाधीशों की पीठ ने कहा है कि अनुच्छेद 27 का उद्देश्य धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखना है। इस अनुच्छेद का तब उल्लंघन होता है जबकि भारत में एकत्रित कुल आयकर का बड़ा हिस्सा या केन्द्रीय उत्पाद शुल्क, अथवा बिक्री कर का बड़ा हिस्सा किसी विशेष धर्म या धार्मिक संस्था को बढ़ावा देने अथवा उसके रखरखाव पर खर्च किया जाए। हालांकि कोर्ट से बड़े हिस्से की अपेक्षा छोटे हिस्से में अंतर किया है।

 पीठ ने कहा कि आर्कबिशप फैसले में कोर्ट ने विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्द बनाए रखने पर जोर दिया है और कहा है कि विभिन्न समूहों के बीच विमर्श करके शांति बनाए रखना और पीडि़तों को संभव सहायता देना सरकार का कर्तव्य है। उस फैसले में कोर्ट ने सरकार को धार्मिक स्थलों के बारे में नीति बनाने को कहा था। और इस मौजूदा मामले में भी कोर्ट ने सरकार को नीति बनाने के आदेश दिये थे। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने नीति तैयार की है। नीति का बारीकी से विश्लेषण करने के बाद उन्होंने पाया कि सरकार ने सहायता राशि की अधिकतम सीमा तय की है।

 जिलाधिकारी को जिले में स्थिति संबंधित धार्मिक स्थलों के मालिकाना या प्रबंधन अधिकार तय करने का हक दिया है। दावा पेश करने के लिए नियम और शर्ते तय हैं। कोर्ट ने कहा कि नीति में दी गई नियम शर्ते तर्कसंगत हैं। धार्मिक स्थलों को अधिकतम सहायता राशि की जो सीमा तय की है वह रिहायशी मकानों के बराबर है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की नीति स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि जो लोग तय नीति की शर्तो को पूरा करते हैं वे आठ सप्ताह के भीतर अथारिटी के समक्ष आवेदन करेंगे और अथारिटी दावा प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर उसका निपटारा कर देगी।

हाईकोर्ट ने सरकार को मरम्मत का पूरा खर्च देने का दिया था आदेश

गुजरात हाईकोर्ट ने 8 फरवरी 2012 को सरकार को आदेश दिया था कि वो दंगे के दौरान क्षतिग्रस्त हुए सभी धार्मिक स्थलों की मरम्मत और पुनर्निमाण का पूरा खर्च उठाएगी। हाईकोर्ट ने क्षति और मुआवजे के आंकलन के लिए गुजरात के 26 जिलों में जिला जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी।फैसले के मायनेसुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दूरगामी परिणाम वाला है।

 अब यह तय हो गया है कि हिंसा या उपद्रव में कोई धार्मिक स्थल या इमारत क्षतिग्रस्त होती है तो सरकार को उसके पुनर्निमाण और मरम्मत के लिए पूरा पैसा देने को बाध्य नहीं किया जा सकता। सरकार क्षतिग्रस्त मकानों, दुकानों की तरह ही धार्मिक स्थलों को हुए नुकसान को पूरा करने के लिए शर्तो के साथ तर्कसंगत नीति तय कर सकती है। यह भी तय हो गया है कि अनुच्छेद 27 के मुताबिक कर दाताओं की राशि का ज्यादा हिस्सा किसी विशेष धर्म या धार्मिक संस्था के उत्थान या रखरखाव पर नहीं खर्च किया जा सकता। हालांकि साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए सरकार पीडि़तों को कुछ मदद दे सकती है।

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