VIDEO: आंध्र प्रदेश के तटीय इलाके में 'फेथाई' ने मचाई तबाही, एक की मौत
तूफान का सबसे ज्यादा असर पूर्वी गोदावरी जिले में हुआ है, जहां तूफान दोपहर में कात्रेनिकोना में जमीन से टकराया।
अमरावती (आंध्र प्रदेश), प्रेट्र। आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों में चक्रवाती तूफान फेथाई ने सोमवार को भारी तबाही मचाई। तूफान के असर से भारी बारिश हुई और तेज हवाओं के कारण कई पेड़ तथा बिजली के खंभे उखड़ गए। एक व्यक्ति की मौत भी हो गई। ट्रेन और हवाई सेवाएं भी बाधित हुई हैं। ऐहतियात के तौर पर तटीय जिलों में शैक्षणिक संस्थान बंद रहे।
तूफान का सबसे ज्यादा असर पूर्वी गोदावरी जिले में हुआ है, जहां तूफान दोपहर में कात्रेनिकोना में जमीन से टकराया। करीब 20 हजार लोगों ने राहत शिविरों में शरण ली है। जिले में करीब 85-90 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलीं।
राज्य आपदा प्रबंधन अथॉरिटी के मुताबिक, विजयवाड़ा शहर में तूफानी हवाओं के कारण एक पहाड़ी से मिट्टी का मलबा नीचे आने के कारण 28 वर्षीय एक युवक की मौत हो गई, जिसकी पहचान आर. दुर्गा राव के रूप में हुई है। जिला प्रशासन ने पीडि़त परिवार को 50 हजार रुपये की मदद देने की घोषणा की है।
राज्य के उपमुख्यमंत्री (गृह) एन. चिना राजप्पा राहत और बचाव कार्यो पर नजर रखे हुए हैं। राज्य सचिवालय में स्थापित रियल टाइम गवर्नेस सेंटर (आरटीजीएस) ने बताया है कि तूफान फेथाई जमीन से टकराने के बाद कमजोर पड़ कर भारी बारिश के साथ काकीनाड़ा और बाद में विशाखापत्तनम की ओर बढ़ गया।
रेल व हवाई यातायात पर असर
दक्षिण मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी एम. उमा शंकर कुमार ने बताया कि तूफान के कारण 50 एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनें रद की गई हैं। कई के समय में भी बदलाव किया गया है। विशाखापत्तनम हवाई अड्डे पर विमान सेवाओं पर भी असर पड़ा। कुछ उड़ानों को रद किया गया जबकि कुछ को हैदराबाद भेज दिया गया। इंडिगो की नई दिल्ली से आने वाली उड़ान को हैदराबाद भेजा गया।
सरकार ने 300 राहत शिविर बनाए
अधिकारियों ने बताया कि नौ में से सात तटीय जिलों में रेड अलर्ट जारी कर लोगों को शरण देने के लिए 300 राहत शिविर बनाए गए हैं। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने प्रभावित जिलों के कलेक्टरों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात कर स्थिति की समीक्षा की तथा हालात को आपात स्थिति मानकर तैयार रहने को कहा।
कैसे पड़ते हैं तूफानों के नाम, कब हुई शुरुआत?
दुनिया भर में चक्रवातों के नाम रखने की शुरुआत 1953 से हुई। इसके पहले इस अवधारणा का विकास नहीं हुआ था। 1953 से वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (डब्लूएमओ) और मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर ने चक्रवातों के नाम रखने की परंपरा शुरू की। डब्लूएमओ जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी है। डब्लूएमओ उष्णकटिबंधीय (Tropical) क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों के नाम रखता आया है, लेकिन 2004 में डब्लूएमओ की अगुवाई वाली अंतरराष्ट्रीय पैनल को भंग कर दिया गया। इसके बाद सभी देशों से अपने-अपने क्षेत्र में आने वाले चक्रवात का नाम खुद रखने को कहा गया।
उत्तरी हिंद महासागर में बाद में शुरू हुई ये पहल
हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने भारत की पहल पर चक्रवातीय तूफानों को नाम देने की व्यवस्था 2004 में शुरू की। इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, श्रीलंका और थाईलैंड को मिलाकर कुल आठ देश शामिल हैं। इन देशों के मौसम वैज्ञानिकों ने 64 नामों की सूची बनाई है। हर देश की तरफ से आठ नाम इसमें शामिल किए गए हैं।
थाईलैंड ने दिया 'फैथाई' तूफान का नाम
इस बार बारी थाईलैंड की थी, इसलिए 'फेथाई' चक्रवाती तूफान का नाम थाईलैंड ने दिया है।
किस देश ने किस तूफान का नाम दिया
- भारी तबाही मचाने वाले तूफान ‘तितली’ का नामकरण पाकिस्तान ने किया था।
- 'तितली' के बाद आने वाले तूफान का नाम 'लोबान' रखा गया था, जो ओमान के मौसम वैज्ञानिकों ने प्रस्तावित किया।
- 'लुबान' के आसपास ही आए चक्रवाती तूफान का नाम 'दाए' था, जो म्यांमार के मौसम वैज्ञानिकों ने रखा था।
- श्रीलंका ने गज तूफान का नाम रखा।
- साल 2013 में श्रीलंका ने 'महासेन' तूफान का नाम रखा था, जिसपर विवाद खड़ा हो गया था। लोगों ने आपत्ति जताई कि राजा महासेन श्रीलंका में शांति और समृद्धि लाए थे, इसलिए आपदा का नाम उनके नाम पर रखना गलत है। इसके बाद इस तूफान का नाम बदलकर 'वियारु' कर दिया गया।