Indian Railways: यात्रियों को चूना लगाने वाले साइबर गिरोह का भंडाफोड़, 900 से ज्यादा दलाल हुए गिरफ्तार
Indian Railways अवैध सॉफ्टवेयर के सहारे लोगों को चूना लगाने वाले इन अपराधियों को पकड़ने के लिए आरपीएफ ने देशव्यापी अभियान चलाया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारतीय रेलवे के टिकट सिस्टम को धता बताकर रेल यात्रियों को करोड़ों का चूना लगाने वाले साइबर अपराधियों के एक बड़े गिरोह का रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ने भंडाफोड़ किया है। इस बारे में जानकारी देने आए रेलवे पुलिस बल के महानिदेशक अरुण कुमार ने बताया कि गिरोह के अवैध सॉफ्टवेयर में कई ऐसे प्रावधान हैं जो आईआरसीटीसी की टिकट प्रणाली को फेल कर रहे थे। लेकिन पता चलने पर अब उसे ठीक कर पुख्ता बना दिया गया है। महानिदेशक ने बताया कि रेलवे के सॉफ्टवेयर में टिकटों की बुकिंग के लिए अवैध आटोफिल सॉफ्टवेयर से बचाव का फिलहाल कोई उपाय नहीं है।
अवैध सॉफ्टवेयर के सहारे लोगों को चूना लगाने वाले इन अपराधियों को पकड़ने के लिए आरपीएफ ने देशव्यापी अभियान चलाया। मैंगो रीयल व मैंगो सर नामक सॉफ्टवेयर बेचने वाले 50 ठगों के साथ कोरोना काल के दौरान मजबूरशुदा लोगों को ट्रेन के टिकटों की कालाबाजारी करने वाले कुल 900 टिकट दलालों को गिरफ्तार किया गया है। इस बारे में जानकारी देते हुए अरुण कुमार ने बताया कि साइबर गिरोह का सरगना मैंगो सर व मैंगों रीयल को पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार किया गया है। गिरोह का पहला सूत्र उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से गिरफ्त में आया था। उसके सहारे कई प्रमुख शहरों की खाक छानने के बाद पश्चिम बंगाल में गिरोह का सरगना जांच दल के हाथ आया।
31 अगस्त तक आरपीएफ ने कुल 994 दलालों को पकड़ा
आईआरसीटीसी की वेबसाइट से ट्रेन टिकटों को पलक झपकते ही लपक लेना इन साइबर अपराधियों के लिए बाएं हाथ का खेल था। इसमें रेलवे के सारे साइबर सुरक्षा बंदोबस्त पूरी तरह फेल हो रहे थे। उनके लिए न कैप्चा भरने की जरूरत होती थी और न ही बैंकों के ओटीपी की। महानिदेशक अरुण कुमार ने बताया कि उन्होंने अपने सॉफ्टवेयर के मार्फत 9.92 करोड़ रूपए मूल्य के टिकट बुक कर लिए थे। इस दौरान 31 अगस्त तक आरपीएफ ने अपने जांच अभियान के दौरान कुल 994 दलालों को पकड़ा, जिसमें 239 रेलवे एजेंट भी शामिल थे। सॉफ्टवेयर का संचालन करने वाले गिरोह का पहला सुराग प्रतापगढ़ के पंकज प्रजापति से मिला, जहां से पश्चिम बंगाल के रेहान खान और सूरत के एक व्यक्ति का पता चला।
एक दूसरा नाम मटियार खान का सुराग यूट्यूब के सहारे हाथ आया, जिससे शमशेर अंसारी पकड़ में आया। गिरोह के दलाल सॉफ्टवेयर बेचते थे, लेकिन पुलिस की आंख में धूल झोंकने के लिए पैसे का लेनदेन क्रिप्टोकरेंसी में करते थे। इस तरह के अवैध कारोबार में संलिप्त अपराधियों ने हमेशा मोबाइल फोन अथवा अन्य कनेक्शन किसी दूसरे के नाम का रखते थे।