असंवैधानिक नहीं है दादा, बुआ व चाचा की अभिरक्षा: हाईकोर्ट
पति की मौत के बाद पत्नी के दूसरी शादी व अन्य परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि पिता के परिवार के साथ बच्ची का रहना असंवैधानिक नहीं।
बिलासपुर (नई दुनिया)। हाईकोर्ट के अनुसार, पिता की मौत के बाद मासूम को सगे दादा, बुआ व चाचा की अभिरक्षा में रहने को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता। कोर्ट में मासूम ने सौतेले पिता व मां द्वारा मारपीट किए जाने की बात कहते हुए मां के साथ जाने से इनकार किया था। कोर्ट ने उसकी इच्छा को सर्वोपरि मानते हुए मां द्वारा पेश बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus) को खारिज कर दिया है।
पति की मौत के बाद दूसरी शादी
कोरबा निवासी ज्योति का 10 फरवरी 2007 को बिलासपुर निवासी जगदीश प्रसाद द्विवेदी के पुत्र संतोष द्विवेदी के साथ विवाह हुआ था। विवाह के बाद एक पुत्री का जन्म हुआ। एक दिसंबर 2012 को संतोष द्विवेदी की मौत हो गई। पति की मौत के बाद पत्नी ज्योति अपनी छह वर्ष की बच्ची को लेकर मायका कोरबा चली गई। ज्योति ने बनारस निवासी राजीव चतुर्वेदी से शादी की और बच्ची को लेकर बनारस में रहने लगी।
मासूम को लाया पिता का परिवार
दिसंबर 2015 में वह शीतकालीन अवकाश के दौरान अपने मायके कोरबा आई तब बच्ची के दादा जगदीश प्रसाद द्विवेदी व बच्ची की बुआ इंदिरा द्विवेदी उससे मिलने कोरबा गए व बच्ची को साथ लेकर आ गए। बच्ची को बिलासपुर लाने के बाद मां ज्योति चतुर्वेदी ने कोरबा एसडीएम कार्यालय में बच्ची को अपने पास रखने आवेदन दिया। आवेदन खारिज होने के बाद उसने हाईकोर्ट में बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की।
कोर्ट में बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका
बता दें कि बंदीप्रत्यक्षीकरण आज्ञापत्र अदालत द्वारा पुलिस या अन्य गिरफ्तार करने वाली राजकीय संस्था को यह आदेश जारी करता है कि बंदी को अदालत में पेश किया जाए और उसके विरुद्ध लगे हुए आरोपों को अदालत को बताया जाए। यह आज्ञापत्र गिरफ्तार व्यक्ति स्वयं या उसका कोई सहयोगी (जैसे कि उसका वकील) कोर्ट से याचना करके प्राप्त कर सकता है।
मां के पास नहीं जाना चाहती थी बच्ची
हाईकोर्ट ने पति की मौत के बाद मां द्वारा दूसरी शादी करने एवं अन्य परिस्थिति को देखते हुए मामले पर गंभीरता से विचार किया। मासूम बच्ची की इच्छा जानने उसे कोर्ट में बुलाया गया। कोर्ट में बच्ची ने कहा कि उसके सौतेले पिता व मां मारपीट करते हैं। मां के पास नहीं जाना चाहती है। बच्ची के इस कथन के बाद हाईकोर्ट ने उसकी इच्छा को सर्वोपरि माना है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि मासूम के पिता के परिवार जन पैतृक घर में सगे दादा, बुआ, चाचा की अभिरक्षा में रहने को असंवैधानिक नहीं माना जा सकता है। इस कारण मां द्वारा प्रस्तुत बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका प्रचलन योग्य नहीं है।
कोर्ट ने प्रस्तुत याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में जगदीश प्रसाद द्विवेदी, इंदिरा द्विवेदी की ओर से अविक्ता अनंत बाजपेयी, एसएस राजपूत व सतीश चंद्र वर्मा ने पैरवी की है।