नक्सलियों से निपटने के खातिर जवान सीख रहे आदिवासियों की भाषा
कैप्सूल कोर्स के तहत झारखंड में तैनात सीआरपीएफ के 1200 जवानों को किया जा रहा प्रशिक्षित। स्थानीय भाषा व संस्कृति से हो रहे हैं अवगत।
नई दिल्ली, प्रेट्र। झारखंड के नक्सल प्रभावित इलाकों से सीआरपीएफ को जरूरी सूचनाएं मिल सकें, इसके लिए उसने एक नया प्रयोग शुरू किया है। इसके तहत वहां तैनात जवानों का स्थानीय भाषा व संस्कृति से परिचय कराया जा रहा है। उन्हें आदिवासी और स्थानीय लोगों के बोलने के तरीके और उनके रीति-रिवाज को समझने की ट्रेनिंग देने का काम शुरू किया गया है।
बता दें कि देश में नक्सल विरोधी गतिविधियों से निपटने में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की प्रमुख भूमिका है। झारखंड में ही इसकी 20 बटालियन (लगभग 20,000 जवान) तैनात हैं।
झारखंड में सीआरपीएफ के आइजी (ऑपरेशन) संजय ए लठकार ने बताया कि हमारी तैनाती सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में होती है, जहां पर जवानों और अधिकारियों को स्थानीय लोगों से नियमित बातचीत करनी होती है, लेकिन स्थानीय बोली-भाषा नहीं जानने से हमें नक्सलियों के खिलाफ सूचनाएं नहीं मिल पाती हैं। इतना ही नहीं आदिवासियों की भलाई के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों के संचालन में भी दिक्कत आती है।
उन्होंने कहा कि फिलहाल इस संबंध में एक कैप्सूल कोर्स की शुरुआत की गई है। जिसके तहत प्रत्येक बटालियन के 60 जवानों (1200) को इस काम के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। ये जवान आदिवासियों के रहने के तरीके को सीखने के साथ ही वहां आयोजित होने वाले साप्ताहिक मेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेंगे।
जवानों को स्थानीय बोलचाल की भाषा जैसे कि संथाली, नागपुरी, कुरुख, सदरी, भोजपुरी और कुछ अन्य भाषाओं सहित वहां के रीति-रिवाजों के विषय में भी प्रशिक्षित किया जाएगा। ऐसी योजना है कि इस तरह का प्रयोग बाद में अन्य राज्यों में तैनात केंद्रीय सुरक्षा बलों पर भी प्रयोग किया जाएगा।