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रामनाथ कोविंद के पक्ष में जमकर हुई क्रास वोटिंग फिर भी नहीं तोड़ पाए रिकार्ड

केंद्र में भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली सरकार है और कई राज्यों में भी भाजपा की ही सत्ता है। फिर भाजपा प्रणब दा के रिकॉर्ड को तोड़ नहीं पाई।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Fri, 21 Jul 2017 10:41 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jul 2017 03:02 PM (IST)
रामनाथ कोविंद के पक्ष में जमकर हुई क्रास वोटिंग फिर भी नहीं तोड़ पाए रिकार्ड
रामनाथ कोविंद के पक्ष में जमकर हुई क्रास वोटिंग फिर भी नहीं तोड़ पाए रिकार्ड

नई दिल्ली(प्रेट्र)। राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद भले ही 66 फीसद वोट पाकर चुनाव जीत गए। लेकिन इस जीत के बावजूद भी भाजपा का एक ख्वाब जरूर अधूरा रह गया है जिसे पूरा करने के लिए पार्टी ने पूरी कोशिश की। दरअसल भाजपा चाहती थी कि इस चुनाव में वह राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को मिले वोटों के प्रतिशत का रिकॉर्ड दे। ऐसा हो भी सकता था क्योंकि में केंद्र में भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली सरकार है और कई राज्यों में भी भाजपा की ही सत्ता है। फिर भाजपा प्रणब दा के रिकॉर्ड को तोड़ नहीं पाई।

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बड़े पैमाने पर रामनाथ कोविंद के पक्ष में क्रॉस वोटिंग भी हुई है। गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और दिल्ली में कोविंद के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की खबर है। गुजरात की क्रॉस वोटिंग कांग्रेस के लिए बुरी खबर है क्योंकि अगले महीने ही राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव होने हैं। राज्य में इसी साल विधानसभा के भी चुनाव हैं। माना जा रहा है कि शंकर सिंह वाघेला के समर्थक विधायकों ने कोविंद के पक्ष में वोट डाला। गुजरात में कोविंद को 132 वोट मिले और मीरा कुमार को 49। जबकि राज्य में भाजपा के 121 विधायक हैं और कांग्रेस के 57। इस हिसाब से कम से कम 8 कांग्रेस विधायकों ने कोविंद के पक्ष में वोट दिया। जबकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कुछ विधायकों के भी कोविंद के पक्ष में वोट डालने की खबर है।

दिल्ली में कोविंद को 6 जबकि मीरा कुमार को 55 वोट मिले। जबकि भाजपा के चार ही विधायक हैं। इस हिसाब से आम आदमी पार्टी के दो विधायकों ने कोविंद को वोट दिया। जबकि 6 वोट वैध नहीं पाए गए। पश्चिम बंगाल में भी दिलचस्प तस्वीर उभर कर सामने आई। वहां कोविंद को 11 जबकि मीरा कुमार को 273 वोट मिले। भाजपा और उसके सहयोगी दल के 6 वोट हैं। इस हिसाब से कोविंद को कुछ दूसरी पार्टियों के वोट भी मिले।

त्रिपुरा में भी रामनाथ कोविंद को वोट मिले हैं। वहां से कोविंद को सात जबकि मीरा कुमार को 53 वोट मिले। जबकि वहां भाजपा का कोई विधायक नहीं है। तृणमूल कांग्रेस के बागी विधायकों ने कोविंद को वोट दिया।महाराष्ट्र में भी कोविंद के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की खबर है। वहां कोविंद को 208 जबकि मीरा कुमार को 77 वोट मिले। वहां भाजपा-शिवसेना के 185 विधायक हैं जबकि कांग्रेस एनसीपी के 83। इस हिसाब से कांग्रेस एनसीपी के कुछ वोट दूसरे खेमे में गए दिखते हैं।

गोवा में भाजपा की गठबंधन सरकार है। वहां कोविंद को 25 वोट मिले जबकि मीरा कुमार को 11 वोट मिले। वहां भाजपा और सहयोगी पार्टियों के 22 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के 16 विधायक है, यानी मीरा कुमार को उम्मीद से पांच वोट कम मिले।

इसी तरह असम में भी सत्तारूढ़ भाजपा को विपक्षी खेमें में सेंध लगाने में कामयाबी मिली है। वहां कोविंद को 91 वोट मिले जबकि मीरा कुमार को 35 वोट। लेकिन भाजपा और उसके सहयोगी दलों के पास 87 विधायक ही हैं।कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के पास 39 विधायक, यानी कोविंद को उम्मीद से चार वोट ज्यादा मिले हैं।

इस चुनाव में 21 सांसदों के वोट वैध नहीं पाए गए। जबकि कुछ विधायकों ने भी वोट डालने में गड़बड़ की। 56 विधायक अपने वोट ठीक से नहीं डाल पाए और उन्हें वैध नहीं माना गया। क्रॉस वोटिंग के कई सियासी मायने हैं। ये आने वाले वक्त में कई राज्यों में सियासी समीकरणों के बनने-बिगड़ने का इशारा कर रहे हैं। खासतौर से गुजरात में तस्वीर बेहद दिलचस्प हो सकती है क्योंकि शंकर सिंह वाघेला के बागी तेवर आने वाले दिनों में खुल कर सामने आ सकते हैं।

20 साल बाद फिर देश के सर्वोच्च पद की बागडोर दलित नेता के हाथ

उप्र के कानपुर देहात के पुरौंख गांव के मूल निवासी अत्यंत गरीबी में पले--प़़ढे दलित रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति चुने लिए गए हैं। उन्हें करीब 66 फीसदी वोटों के साथ देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद हासिल हुआ। उनके खिलाफ मैदान में उतरी 18 दलों की साझा प्रत्याशी व पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को 35.34 फीसदी वोट मिले। कोविंद देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति चुने गए हैं। पहले दलित राष्ट्रपति केआर नारायणन ने 1997 में 95 फीसदी वोटों के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी।

पहली बार किसी भाजपा नेता की ताजपोशी
जीत के बाद अपने पहले संदेश में कोविंद ने कहा, 'मेरा चयन देश के लोकतंत्र की महानता का प्रतीक है। सोचा नहीं था कि देश का राष्ट्रपति बनूंगा।' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत देश के तमाम नेताओं ने कोविंद को उनके घर जाकर बधाई दी। कोविंद के रूप में पहली बार किसी भाजपा नेता की राष्ट्रपति पद पर ताजपोशी हुई है।

निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से कम ही वोट मिले
लोकसभा महासचिव अनूप मिश्रा ने गुरवार सुबह 11 बजे से आठ राउंड में चली मतगणना के बाद शाम करीब पांच बजे कोविंद के राष्ट्रपति चुने जाने की विधिवत घोषषणा की। राजग को भीतरी व बाहरी सहयोगी दलों के दम पर उम्मीद थी कि कोविंद की रिकॉर्ड जीत होगी, लेकिन उन्हें निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से कम ही वोट मिले। मुखर्जी को 2012 में हुए चुनाव में 7,13,763 (69 फीसदी) वोट मिले थे, जबकि कोविंद को 7,02,044 (65.65 फीसदी) वोट मिले। 2012 में राजग विपक्ष में था और उसके प्रत्याशी पीए संगमा को 3.15 लाख यानी 31 फीसदी वोट ही मिले। संगमा के मुकाबले मौजूदा संप्रग नीत विपक्ष की मीरा कुमार को करीब 4 फीसदी ज्यादा वोट मिले।

कोविंद/ कुमार को मिले वोट व मूल्य

4896 कुल वोट
4120 विधायक
776 निर्वाचित सांसद
10,69,358 कुल वोट मूल्य
2930 वोट (मूल्य--7020,44) कोविंद को मिले
1844 वोट (मूल्य 3,67,314) मीरा कुमार को मिले
3,34,730 वोट मूल्य से पराजित हुई मीरा कुमार

17 को मतदान, 20 को नतीजे
राष्ट्रपति चुनाव के लिए 17 जुलाई को 99 फीसदी के करीब मतदान हुआ था। 20 जुलाई को आए नतीजे। कई राज्यों में कोविंद के समर्थन में दूसरे दलों के सांसद-विधायकों ने भी पार्टी लाइन से हटकर क्रॉस वोटिंग की।

विचारधारा की लड़ाई जारी रहेगी : मीरा कुमार
मीरा कुमार ने रामनाथ कोविंद को बधाई देते हुए कहा, मैं नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बधाई देती हूं। अब उन पर संविधान की रक्षा करने की जिम्मेदारी है। मैं वोट देने वाले हर व्यक्ति को शुक्रिया करती हूं। जिस विचारधारा की ल़़डाई ल़़डने के लिए मैंने चुनाव लड़ा वो आज 20 जुलाई 2017 को खत्म नहीं हुई है, ये ल़़डाई आगे भी जारी रहेगी।

1997 में विपक्ष के शेषन को मिले थे सिर्फ 5 फीसदी वोट
2012 : संप्रग के प्रणब मुखर्जी को 7,13,763 यानी करीब 69' वोट मिले थे, जबकि राजग के पीए संगमा को 3.15 लाख यानी करीब 31'।
2007 : प्रतिभा पाटिल को 6,38,116 यानी करीब 65' वोट मिले थे, वहीं, भैरोसिंह शेखावत को 3,31,306 यानी करीब 35'।
2002 : डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को 9,22, 884 यानी करीब 89' वोट मिले थे, जबकि लक्ष्मी सहगल को 1,07,366 यानी 11'।
1997 : केआर नारायणन को 9.56 लाख यानी करीब 95' वोट मिले थे, वहीं, टीएन शेषषन को करीब 50, 631 यानी सिर्फ 5'।
1992 : शंकर दयाल शर्मा को 6.75 लाख यानी 66' वोट मिले थे, जबकि जीजी स्वेल को 3.46 लाख, करीब 34'।


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