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देश में बड़ी समस्या है न्याय में देरी, विभिन्न अदालतों में लंबित पड़े हैं करोड़ों मामले

देश में न्याय पाना कितना मुश्किल है यह वही व्यक्ति जान सकता है जिसका कोई केस किसी अदालत में मौजूद है। अदालतों में कई बार पुलिस एवं वकील अलग-अलग बहाने बनाकर किसी मुकदमे में स्थगन ले लेते हैं।

By Manish PandeyEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 10:46 AM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 10:46 AM (IST)
देश में बड़ी समस्या है न्याय में देरी, विभिन्न अदालतों में लंबित पड़े हैं करोड़ों मामले
देश में अभी एडवर्सरीअल (विरोधात्मक) प्रणाली चल रही है।

नई दिल्ली, श्रीकांत। साल 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स के केस में केंद्र और राज्य सरकारों को बहुत सारे दिशानिर्देश दिए थे। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-भारत में अगले आने वाले पांच वर्षो यानी 2007 तक 50 न्यायाधीश प्रति 10 लाख लोगों पर करने की जिम्मेदारी सरकारों की है। सभी जिला न्यायालयों के जजों को रहने, आने-जाने, सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाए जाएं। सभी जिला न्यायालयों के भवन की मरम्मत करवाई जाए और अधिक संख्या में कोर्टरूम बनाए जाएं।

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आज 2021 आ चुका है, लेकिन उन निर्देशों का अब तक पूरी तरह पालन नहीं हुआ है। परिणामस्वरूप पड़े हैं। हालांकि इसकी दूसरी कई वजहें भी हैं। अपने देखा होगा कि अदालतों में कई बार पुलिस एवं वकील अलग-अलग बहाने बनाकर किसी मुकदमे में स्थगन ले लेते हैं। इससे पीड़ित और आरोपी दोनों को मानसिक चोट पहुंचती है। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 173(2) में पुलिस किसी भी अपराध के घटित होने के बाद अपनी रिपोर्ट (चार्जशीट) बनाकर संबंधित जज को भेजती है। उसके बाद ही न्यायालय की प्रक्रिया शुरू होती है। इस धारा में यह तय नहीं है कि पुलिस को कितने दिनों में चार्जशीट कोर्ट में भेजनी है। कुछ पुलिसकर्मी इसका दुरुपयोग करते हैं। और कई बार धीरे-धीरे जांच-पड़ताल करते हैं। इसी बीच आरोपियों को गवाहों और सुबूतों को नष्ट करने का समय मिल जाता है। यहां पुलिस की गैर जिम्मेदारी सुबूतों के आभाव की वजह बन जाती है और पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता है।

वास्तव में भारत में लंबित पड़े लगभग तीन करोड़ मामलों के जल्द निष्पादन करने के लिए यहां अधिक से अधिक जजों की नियुक्ति की जानी चाहिए। साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173(2) में संशोधन किया जाना चाहिए जिसमें हर तरह के अपराध में पुलिस रिपोर्ट को जज के पास भेजने के लिए समय तय होना चाहिए। अभी देश में एडवर्सरीअल (विरोधात्मक) प्रणाली चल रही है। इसके तहत देश में किसी मुकदमे में जांच-पड़ताल करने के लिए और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक ही पुलिस है। इससे भ्रष्टाचार पनप रहा है। इस वजह से कई बार मुख्य बात को पुलिस रिपोर्ट में नहीं लिखती है। इस कारण अपराधी अपराध करके बच निकलते हैं।

वहीं दूसरी तरफ फ्रांस और जर्मनी में इंक्विजिटोरीअल (जिज्ञासु) प्रणाली है। इसमें दो अलग-अलग पुलिस होती है। न्यायिक पुलिस का काम जांच-पड़ताल का होता है। दूसरी तरफ कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली पुलिस होती है। यही वजह है कि उन देशों में मुकदमों का निपटारा जल्दी से होता है और अपराधी भी बच नहीं पाते हैं। हमें भी इसी तरह की व्यवस्था अपनानी चाहिए।

(लेखक लॉ के छात्र हैं)


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