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फसल लहलहाई पर आंगन में खुशहाली नहीं आई

राज्यों के सामने लाचार साबित हो रहे केंद्र सरकार के कदम, गंभीर कोशिशों के बावजूद नहीं चमक पा रहे किसानों के चेहरे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 04 Jul 2018 02:41 PM (IST)Updated: Wed, 04 Jul 2018 02:41 PM (IST)
फसल लहलहाई पर आंगन में खुशहाली नहीं आई
फसल लहलहाई पर आंगन में खुशहाली नहीं आई

नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। यह सच है कि पहली बार किसी सरकार ने कृषि क्षेत्र को व्यापकता में देखने की कोशिश की और मूल समस्याओं को चिह्नित भी कर लिया, छोटे बड़े कदम भी उठे लेकिन वह राज्यों का पूरा साथ हासिल नहीं कर पाई। उत्पादन बढ़ाने की चुनौती और लागत घटाने की कोशिश तो रंग लाती दिखी लेकिन फायदा क्या अगर किसानों के चेहरे पर चमक ही न आए। उन्हें उपज की पूरी कीमत ही न मिले। यह भी सच है कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के हाथ बंधे हैं, फैसले की सफलता राज्यों की सक्रियता पर निर्भर है। लेकिन तब यह तर्कहीन लगता है जब केंद्र से लेकर लगभग डेढ़ दर्जन राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार हो। किसानों की आमदनी दोगुनी करने का नारा बुलंद है, मंशा भी स्पष्ट दिखती है, लेकिन भरोसा कैसे हो अगर निर्भरता राज्यों पर टिक जाए। यह कहा जा सकता कि मिट्टी से जुड़ी सोच दिखाई, सिंचाई भी की, लेकिन फल आना बाकी है।

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गिनाने को केंद्रीय कृषि मंत्रालय के खाते में बहुत कुछ है। बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने और उसका जाल बिछाने की दिशा में सरकार ने पहल की है। ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ के साथ हर खेत तक सिंचाई का पानी पहुंचाने का चुनावी वायदा केंद्र की राजग सरकार ने किया था। खेती की मौलिक जरूरतों में शुमार सिंचाई को आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस करने में काफी सफलता मिली है। सीमित प्राकृतिक संसाधनों के बीच उत्पादकता बढ़ाकर ही पैदावार बढ़ायी जा सकती है। इसी के तहत माइक्रो इरीगेशन पर सरकार ने जोर दिया है। सालाना 10 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने में सफलता मिली है। मनरेगा जैसी योजना का उपयोग जल संरक्षण और सिंचाई का ढांचा तैयार करने में किया जा रहा है। चालू साल में ही पांच लाख खेतों के बीच सिंचाई के लिए तालाब बनाने का निश्चय किया गया है। लंबित 99 सिंचाई परियोजनाओं को तत्काल चालू करने की दिशा में सरकार ने कारगर पहल की है, जिससे 50 परियोजनाएं चल पड़ी है।

खेतों की मिट्टी की घटती उर्वरता इस क्षेत्र के लिए गंभीर संकट बन चुकी थी, जिसे इस सरकार ने उच्च प्राथमिकता के तौर पर लिया। देश के कुल 13 करोड़ किसानों में से 11 करोड़ किसानों के हाथ में स्वायल हेल्थ कार्ड थमा दिया गया है। इससे जहां फर्टिलाइजर का बेहिसाब उपयोग घटा है, वहीं खेती की लागत में कमी आई है और पैदावार बढ़ी है। खेती के इनपुट में मिट्टी, फर्टिलाइजर व सिंचाई के बाद बीज सबसे अहम होता है। पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नतशील प्रजाति के बीजों की उपलब्धता पर पूरा जोर रहा है। लेकिन बीजों की अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का मामला सुप्रीम कोर्ट और संसद में लंबित है। तिलहन की भारी कमी के चलते सालाना लगभग एक लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात करना पड़ रहा है। इससे निपटने के उपाय करने में सरकार विफल रही है।

कृषि क्षेत्र में सुधार की दिशा में कानूनी अड़चनें सबसे ज्यादा हैं। कृषि राज्य का विषय होने के नाते सुधार में राज्यों की भूमिका अधिक है। फिलहाल आधा दर्जन से अधिक कानूनों में सुधार की सख्त जरूरत है। इनमें पट्टेदारी भूमि अधिनियम, मंडी कानून, कांट्रैक्ट खेती कानून, पेस्ट कंट्रोल अधिनियम, फर्टिलाइजर कंट्रोल एक्ट, सीड कंट्रोल एक्ट और एग्रो फॉरेस्ट्री कानून प्रमुख हैं। किसानों की आमदनी को बढ़ाकर दो गुना करने को लेकर सरकार ने कई कारगर पहल की है। बागवानी, डेयरी, पशुपालन, मत्स्य पालन और मधुमक्खी पालन को सरकार ने प्रोत्साहित किया है।

प्रमुख चुनौतियां

इन किसानों के लिए कृषि मशीनरी की कमी

- मिट्टी में असंतुलन, माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की कमी

- नकली बीज, खाद और कीटनाशकों का प्रयोग

- जीएम सीड जैसी प्रौद्योगिकी को लागू करने की चुनौती

- दो तिहाई खेती असिंचित क्लाइमेटिक जोन से खेती का न होना

- घटते संसाधनों के बीच खाद्य सुरक्षा की चुनौती

- बाजार तक पहुंचाने में नुकसान रोकने की चुनौती

- मंडियों का अभाव, बिचौलिये और आढ़तियों के बीच फंसे किसानों को उबारने की चुनौती

- बदलती खेती के अनुरूप मानव संसाधनों की कमी

- कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने की चुनौती

- कृषि से जुड़े अन्य क्षेत्रों के प्रति उदासीनता

- जीडीपी में कृषि क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना

- विश्व बाजार में कड़ी प्रतिस्पधा कृषि राज्य का विषय पर खेती को लेकर उदासीन

- राज्यों में एक्सटेंशन प्रणाली का अभाव

- जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव और तैयारियां

- अधिक लागत की वजह से विश्व बाजार में घरेलू जिंसों की मांग नहीं

- कृषि उपज की आयात-निर्यात नीति में सुधार की जरूरत

- बढ़ती पैदावार का विश्व बाजार में निर्यात

कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण उद्योग को आगे बढ़ाकर सरकार ने ग्रामीण रोजगार के साथ मूल्यवर्धन किया है। इसके लिए सरकार ने सबसे नाजुक प्याज, आलू और टमाटर के खेत से निकलने के बाद सड़ने से रोकने के लिए ऑपरेशन ग्रीन की शुरुआत की है। इसी तरह प्रधानमंत्री कृषि संपदा योजना चलाकर कृषि उत्पादों की ढुलाई, भंडारण, प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में निजी निवेश को प्रोत्साहित किया गया है। मंडियों में किसान की सीधी पहुंच बनाने की कोशिश हुई, लेकिन सफलता आधी अधूरी ही रही।

उपज का उचित मूल्य दिलाना पहले भी एक चुनौती थी और अब भी। इस दिशा में सरकार ने अपने कार्यकाल के उत्तरार्ध में कुछ ठोस पहल की है, जिसका नतीजा आना अभी बाकी है। इसके लिए राज्यों का हाथ थामना जरूरी होगा। ढेर सारे कानूनी रोड़े हैं, जिनसे निपटना इस सरकार के लिए बहुत कठिन नहीं होना चाहिए। क्योंकि देश के डेढ़ दर्जन से अधिक प्रमुख राज्यों में राजग अथवा इसके घटक दलों की सरकारें हैं, जहां कृषि क्षेत्र में सुधार करना सहज और आसान हो सकता है। चालू वित्त वर्ष के आम बजट में सरकार ने किसानों के खेतों तक मंडियों का जाल बिछाने का एलान किया है। देश की 22 हजार ग्रामीण हाटों को कृषि मंडी में तब्दील करने का फैसला लिया गया है। ई-मंडियां विकसित कर उन्हें सीधे किसानों से जोड़ने की योजना पर काम तेज से चल रहा है। 


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