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COVID-19: PMCARES फंड में योगदान को आगे आए सुप्रीम कोर्ट व ऊर्जा मंत्रालय

सुप्रीम कोर्ट व ऊर्जा मंत्रालय की ओर से भी पीएम केयर्स फंड में वित्‍तीय सहायता दी गई।

By Monika MinalEdited By: Published: Fri, 03 Apr 2020 04:45 PM (IST)Updated: Fri, 03 Apr 2020 04:45 PM (IST)
COVID-19:  PMCARES फंड में योगदान को आगे आए सुप्रीम कोर्ट व ऊर्जा मंत्रालय
COVID-19: PMCARES फंड में योगदान को आगे आए सुप्रीम कोर्ट व ऊर्जा मंत्रालय

नई दिल्‍ली, एएनआइ। कोरोना वायरस से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बनाए गए पीएम केयर्स फंड में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट व ऊर्जा मंत्रालय की ओर से योगदान दिया गया है। नए कोरोना वायरस महामारी से जारी जंग के बीच सरकार की ओर से लॉकडाउन समेत कई कदम उठाए गए हैं। इसके तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘पीएम केयर्स फंड’ की शुरुआत की है।

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शीर्ष कोर्ट के अधिकारियों की ओर से 1,00,61,989 रुपये से अधिक का योगदान दिया गया वहीं ऊर्जा मंत्रालय के सेंट्रल पब्‍लिक सेंटर एंटरप्राइजेज 925 करोड़ रुपये के सहयोग का ऐलान किया है। बता दें कि इस फंड में सबसे पहले प्रधानमंत्री की मां हीरा बेन ने योगदान दिया।

चीन के वुहान से शुरू हो कोविड-19 का मामला दुनिया भर के 205 देशों में फैल चुका है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार, संक्रमित मामलों का आंकड़ा 932,166 हो गया है वहीं इसके कारण मरने वालों की संख्‍या 46,764 हो गई है जो कि चिंताजनक है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष PMCARES फंड के नाम से बनाया और इसके लिए बैंक डिटेल भी बताए। PMCares फंड के लिए यूपीआई आईडी- pmcares@sbi है। इस फंड में भीम एप के जरिए भी योगदान दिया जा सकता है। इस ट्रस्‍ट के अध्‍यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इसके सदस्‍यों में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री एवं वित्त मंत्री हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए गत 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगााया था और फिर 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन लागू कर दिया है जो 14 अप्रैल तक चलेगा। इसके तहत देश भर में केवल मालगाड़ियों का संचालन हो रहा है जबकि ट्रेनों पर रोक लगा दी गई है। इस लॉकडाउन से लोग परेशान तो हैं लेकिन कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए इस आदेश का उल्‍लंघन नहीं कर रहे हैं। फैक्‍ट्रियों के बंद होने से परेशान मजदूर वर्ग के कामगार सबसे अधिक प्रभावित हैं। यातायात प्रतिबंधों के बावजूद परेशान और मजबूर मजदूर पैदल ही अपने गांवों की ओर पलायन कर गए।  


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