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समस्‍या के साथ समाधान भी: लौटते मजदूरों की जांच करनी होगी सुनिश्चित

लॉकडाउन की वजह से मजदूरों के घर वापसी की व्‍यवस्‍था सही न होने की वजह से संक्रमण का खतरा पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। आने वाले समय में ये बहुत तेजी से फैलने वाला है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 10:25 AM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 12:44 PM (IST)
समस्‍या के साथ समाधान भी: लौटते मजदूरों की जांच करनी होगी सुनिश्चित
समस्‍या के साथ समाधान भी: लौटते मजदूरों की जांच करनी होगी सुनिश्चित

डॉ चंद्रकांत पांडव। कोरोना से लड़ने और उससे बचने के लिए भारत ने मजबूत इच्छाशक्ति दिखाई। शुरुआत में इसके परिणाम भी बेहतर रहे। पहली बार मार्च में तीन सप्ताह के लॉकडाउन का फैसला बेहतर साबित हुआ, लेकिन लंबे लॉकडाउन से कामगारों का सब्र जवाब देने लगा। लाखों मजदूरों के वापस घर लौटने से कोरोना की महामारी रोकने की चुनौतियां बढ़ गई है। जिस तरह दिनोंदिन मामले बढ़ रहे हैं वह आने वाले दिनों की चुनौतियों को रेखांकित कर रहे हैं। बडे़ शहरों व दूसरे राज्यों से वापस लौटे कामकारों को बेहतर संस्थागत क्वारंटाइन और जांच की सुविधा उपलब्ध करानी होगी। इससे अब भी गांवों में संक्रमण फैलने से रोका जा सकता है। लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिनों में मामले बढेंगे।

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महामारी के बीच इतनी बड़ी संख्या में कामगारों व मजदूरों के वापस लौटने और इसके लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं किए जाने से बहुत गड़बड़ हो गया। क्योंकि इनमें से काफी संख्या में लोग संक्रमित हो सकते हैं। इसलिए उन सभी को 14 दिन के लिए क्वारंटाइन करना होगा। उनके रहने के लिए अच्छी जगह और खाने पीने की सुविधा उपलब्ध कराने की जरूरत है। साथ ही उन सबकी बेहतर देखभाल करने की जरूरत पडे़गी। जिनमें भी बुखार, खांसी व सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षण हों उन सबकी जांच करानी पडे़गी। गांवों में जांच की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए मोबाइल वैन की व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन यह सब तीन माह पहले होनी चाहिए थी। चिंता इस बात की है कि यदि जांच हो भी जाए तो पॉजिटिव आने वाले सभी लोगों को वहां रखेंगे कहां।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) व जिला अस्पतालों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। संक्रमित मरीजों को आइसोलेशन के तहत घर में रखना भी उचित नहीं होगा क्योंकि गांव के घरों में औसतन दो से तीन ही कमरे होते हैं। गांवों व कस्बों की आबादी शहरों की तुलना में बहुत कम है। लेकिन सिर्फ यही एक कारक प्रभावी शारीरिक दूरी के अनुपालन के लिए पर्याप्त नहीं होगा। देश भर में करीब 25 हजार 750 पीएचसी व 5600 से ज्यादा कम्युनिटी हेल्थ सेंटर (सीएचसी) हैं। सरकार ने आजादी के बाद से ही जन स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। बड़े अस्पताल बनाने पर ज्यादा ध्यान दिया गया।

बीमारियों की रोकथाम में अहम साबित होने वाले प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि अब डेढ़ लाख वेलनेस सेंटर बनाने की पहल की गई है। कोरोना से ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है। बल्कि जागरूक व सचेत रहने की जरूरत है। यह भी सच है कि कोरोना से जितने लोगों की मौत हुई है उससे ज्यादा दूसरी बीमारियों से लोगों की मौत होती है।

(लेखक एम्‍स नई दिल्ली के कम्युनिटी मेडिसिन के पूर्व विभागाध्यक्ष हैं)


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