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COVID-19: जब तक चल रहा वैक्सीन पर काम कोरोना का ऐसे करिए काम तमाम

COVID-19 एक अध्ययन में बताया गया है कि साबुन के इस्तेमाल माउथवाश गरारा करके जिंक और कापर के साथ भाप को मुंह के द्वारा अंदर लेकर हम इस घातक वायरस को शिकस्त दे सकते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 14 May 2020 09:24 AM (IST)Updated: Thu, 14 May 2020 02:00 PM (IST)
COVID-19: जब तक चल रहा वैक्सीन पर काम कोरोना का ऐसे करिए काम तमाम
COVID-19: जब तक चल रहा वैक्सीन पर काम कोरोना का ऐसे करिए काम तमाम

नई दिल्ली। COVID-19: कहते हैं कि अगर दुश्मन को शिकस्त देनी है तो उसकी खामियों के साथ खूबियों पर भी नजर रखनी होगी। उनके अनुसार ही अपनी रणनीति तैयार करनी होगी। इसी को ध्यान रखते हुए गोवा के वैज्ञानिक अशोक कुमार मारवाह और पद्म मारवाह के संयुक्त अध्ययन में वैक्सीन आने तक कोरोना से दो-दो हाथ करने के लिए प्रभावी उपाय सुझाए गए हैं।

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जर्नल ऑफ एप्लाइड एंड नेचुरल साइंस में प्रकाशित एक प्रोटोकाल फॉर प्रीवेंशन, ट्रीटमेंट एंड कंट्रोल अध्ययन में बताया गया है कि साबुन के इस्तेमाल, माउथवाश, गरारा करके, जिंक और कापर के साथ भाप को मुंह के द्वारा अंदर लेकर हम इस घातक वायरस को शिकस्त दे सकते हैं। धूप सेंकना, योग, प्राणायाम, जलनेति और हवन जैसे प्राचीन भारतीय तरीकों से भी कोविड महामारी पर व्यापक स्तर पर रोक लगाई जा सकती है।

मेजबान कोशिका में बनाते हैं अपनी खोल : कोरोना वायरस जैसे खोल वाले वायरस मेजबान कोशिका की झिल्ली से अपनी खोल तैयार करते हैं। इनमें फास्फोलिपिड की दोहरी परत कोलेस्ट्राल और प्रोटील अणुओं की बीच छिटकी होती है। ये वायरस लंबे समय तक बिना किसी मेजबान कोशिका के जीवित नहीं रह सकते हैं। अगर इनकी बाहरी क्षणभंगुर लिपिड परत को नष्ट कर दिया जाए तो ये निष्क्रिय हो जाते है।

अभेद्य वायरस : ’ व्यास- 50 से 200 नैनोमीटर ’ आएनए- एकल सूत्री ’ चार संरचनात्मक प्रोटीन- एस (स्पाइक, ग्लाइकोसिलेटेड), ई (एनवेलप), एम (मेंब्रेन) और एन (न्यूक्लियोकैप्सिड) ’ एन प्रोटीन में होता है आरएनए जीनोम ’ अन्य तीनों प्रोटीनों के साथ फास्फोलिपिड की दोहरी परत वायरस के खोल में होते हैं र्नििमत

जटिल संरचना की ढाल : वायरस का रेखीय वसीय लिपिड जैसे सोडियम स्टीयरेट में एक पोलर हाइड्रोफिलिक हेड और एक हाइड्रोफोबिक नान पोलर हाइड्रोकार्बन चेन होती है, जो कभी-कभी असंतृप्त होती है। कोरोना वायरस कोशिका के ये दोनों सिरे दोहरी लिपिड परत को तोड़ते हैं। बाहरी चीजों से सुरक्षित रखने के लिए कोरोना वायरस के पास लिपिड की झिल्ली होती है। रेखीय लिपिड का हाइड्रोफिलिक पोलर सिरा पानी के अणुओं के साथ हाइड्रोडन बांडिंग करता है और इसकी सांप सरीखी पूंछ फास्फोलिपिड झिल्ली के साथ मिलकर कोरोना वायरस कोशिका की खोल तैयार करती है।

साबुन और तापमान का असर : रेखीय लिपिड जैसे सोडियम स्टीयरेट के अणु (सामान्य साबुन के तत्व) इसकी इस संरचना में गंभीर परिवर्तन कर देते है, जिससे यह निष्क्रिय होकर खत्म हो जाता है। खोल की बाहरी सतह भी एक तरीके की वसा होती है इसलिए रेखीय लिपिड इसे भी खत्म कर देता है। लगातार तेज तापमान इस प्रक्रिया को और बढ़ा देते हैं। इसीलिए थोड़े-थोड़े अंतराल पर लगातार बीस सेकेंड तक साबुन से हाथ धोना इस वायरस से निजात पाने का बहुत प्रभावी तरीका माना जाता है।

अहम सुझाव : कोरोना जैसे छलिया वायरस पर व्यापक शोध के बाद इसके उपचार संबंधी निम्नलिखित प्रोटोकाल बताए गए हैं। एल्कोहल आधारित सैनिटाइजर से हाथों को रखें सुरक्षित पहले कदम के तहत हमें ऐसे एल्कोहल आधारित (70 फीसद से अधिक) सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें 0.05 से 0.1 फीसद सोडियम स्टीयरेट, एक फीसद सोडियम क्लोराइड और 0.0001 से 0.001 फीसद कापर सल्फेट हो। जब हथेली पर लगाने के बाद एल्कोहल वाष्पीकृत होता है तो सोडियम स्टीयरेट (साबुन) की पतली परत जबकि कापर सल्फेट की नैनो लेयर छोड़ जाता है। ये दोनों परतें हाथ की सुरक्षा करती है। अगर हाथ से कोरोना वायरस का संपर्क हुआ रहता है तो वह ज्यादा देर तक जीवित नहीं रहता। साधारण और अत्यधिक प्रभावी ये सैनिटाइजर तब तक काम करते हैं, जब तक कि आप दोबारा अपने हाथ नहीं धो लेते हैं। जरूरत के अनुसार इन्हें थोड़े अंतराल पर इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसी भी बातें आ रही हैं कि सैनिटाइजर का ज्यादा इस्तेमाल नुकसान कर सकता है, लेकिन इन रसायनों की उपयुक्त मात्रा से तैयार सैनिटाइजर पूरी तरह सुरक्षित है।

मुंह की सुरक्षा के लिए माउथवाश जरूरी : मुंह में मौजूद कोरोना वायरस के खात्मे के लिए ऐसे माउथवाश का इस्तेमाल करें जिसमें सोडियम स्टीयरेट (0.01 फीसद), सोडियम क्लोराइड (1 फीसद), मेथनाल, थाइमाल, मिथाइल सालीसाइलेट और यूकेलिप्टस तेल में से प्रत्येक 0.01 फीसद के साथ कापर सल्फेट (0.0001 फीसद) का घोल हो। सोडियम स्टीयरेट वायरल की खोल को खत्म कर देता है जिससे यह आम वायरस जैसा हो जाता है। आमतौर पर इसका दिन में दो बार इस्तेमाल श्रेयस्कर रहेगा। हाई रिस्क वाले लोग दिन में तीन बार इस्तेमाल कर सकते हैं। कोरोना संक्रमित लोग दिन में चार बार इस्तेमाल कर सकते हैं। गले में मौजूद कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए इस घोल को गुनगुना करके गरारा करें। इससे फेफड़ों में पहुंचने से पहले ही उस वायरस को गले में खत्म किया जा सकेगा। सामान्य लोग इसका इस्तेमाल दिन में एक बार करें जबकि हाई रिस्क वाले दिन में दो बार और कोरोना संक्रमित लोग दिन तीन या अधिक बार भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

गले और फेफड़े के संक्रमण से बचाएगी साबुन की भाप : नाक, गले और फेफड़ों में मौजूद कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए अध्ययन में बताया गया है कि साबुन की भाप लेना प्रभावकारी होगा। इसके 100 ग्राम जीरा पाउडर, 50 ग्राम अजवायन, 15 ग्राम सोडियम स्टीयरेट और 175 ग्राम सोडियम क्लोराइड के साथ 10 मिली नारियल तेल को एक मिली यूकेलिप्टस तेल के साथ मिला लें। इसे एक वायुरोधी कंटेनर में रखें। इस मिश्रण का 10 ग्राम स्टीम इंहेलर या एक लीटर उबले पानी के साथ मुंह और नाक से भाप को अंदर लें। ये मिश्रण गले और फेफड़े के लिए डिसइंफेक्टैंट का काम करेगा। सामान्य लोग इसे सप्ताह में दो बार, हाई रिस्क लोग दिन में एक बार और कोरोना संक्रमित लोग दिन में तीन या अधिक बार भी कर सकते हैं, लेकिन इसे वे चिकित्सकों की देखरेख में ही अंजाम दें।

जिंक का इस्तेमाल करेगा कमाल : अध्ययन में जिंक (जस्ता) सप्लीमेंट्स और जिंक होम्योपैथी से इलाज की सिफारिश भी की गई है। पुराने समय में हम पीतल के बर्तनों में भोजन पकाते थे जिसमें जस्ते की पतली परत होती थी। लिहाजा खांसी और सर्दी की शिकायत सामने नहीं आती थी। लिहाजा सामान्य सर्दी-जुकाम और सार्स जैसे वायरसों के लिए यह बहुत प्रभावकारी है।

योग, प्राणायाम और ध्यान से मजबूत होगी प्रतिरक्षा प्रणाली : योग और प्राणायाम से फेफड़ों के काम करने की क्षमता में वृद्धि होना साबित हो चुका है। इससे अस्थमा पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है। ये सनातन भारतीय पद्धतियां विशुद्ध वैज्ञानिक हैं। रोजाना योग, प्राणायाम और ध्यान से कोई भी अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को बहुत मजबूत कर सकता है।

कारगर है जलनेति : योग की प्रक्रिया जलनेति (नाक से गुनगुना लवणीय पानी अंदर लिया जाता है) कोरोना वायरस को फेफड़ों तक पहुंचने से रोकती है। उसको रास्ते में ही खत्म कर देती है।

शरीर की सुरक्षा के लिए सूर्य की किरणें अहम : सूर्य की रौशनी में मौजूद पराबैंगनी किरणें कोलेस्ट्राल को संश्लेषित करके विटामिन डी और इसके अवयव तैयार करती हैं। विटामिन डी शरीर की कोशिकाओं के प्रसार, वृद्धि और प्रतिरक्षा तंत्र के नियमन में अहम भूमिका निभाने के साथ हृदय व मस्तिष्क संबंधी रोगों से बचाता है। इसमें एंटी कैंसर और एंटी एजिंग तत्व भी होते हैं। लिहाजा हाई रिस्क और कोरोना संक्रमितों को रोजाना धूप जरूर सेंकनी चाहिए। सूर्य की रौशनी कोरोना पीड़ितों के लिए किसी वेंटिलेटर सरीखी है।

भारतीय हवन पद्धति से होगा कोरोना का सर्वनाश : प्राचीन भारतीय हवन पद्धति में जड़ी-बूटियों, औषधीय पादप और गाय के घी का इस्तेमाल किया जाता है। उलटे पिरामिड के आकार के गड्ढे में हवन किया जाता है। कई बार ये गड्ढा तांबे का बना होता है। इसी के साथ मंत्रोच्चार किया जाता है। नियंत्रित तरीके से जड़ी-बूटियों और औषधीय पादपों के जलने से जरूरी तेल निकलता है जिसके आक्सीकरण से निकले मीथाइल, एथाइल एल्कोहल, फार्मेल्डिहाइड और र्फािमक व एसीटिक एसिड वातावरण को शुद्ध बनाते हैं। एंटीमाइक्राबियल एजेंट के रूप में फार्मेल्डिहाइड को अच्छी तरह से जाना जाता है।


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