COVID-19 Vaccine: समय पर न लगवा पाएं दूसरी डोज तो फिर शुरू करें टीकाकरण की पूरी प्रक्रिया
COVID-19 Vaccine आइसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट फार इंप्लीमेंटेशन रिसर्च इन नानक म्युनिकेबल डिजीज (एनआइआइआरएनसीडी) जयपुर के डायरेक्टर डा. अरुण कुमार शर्मा ने टीकाकरण और इससे जुड़े कई प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। कोरोना महामारी से चल रही जंग में इन बातों को समझना सबके लिए जरूरी है।
जयपुर, आइएएनएस। COVID-19 Vaccine कोरोना महामारी से बचाव की दिशा में टीकाकरण ही उपाय है। भारत में फिलहाल दो डोज वाली कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पुतनिक-वी वैक्सीन लगाई जा रही हैं। इस दौरान कई बार यह सवाल मन में आता है कि आखिरी टीके की दूसरी डोज कितनी जरूरी है? अगर किसी कारण से तय समयसीमा में दूसरी डोज न लग पाए, तो क्या करना चाहिए?
...इसलिए है जरूरी : कई शोध में यह सामने आ चुका है कि कोरोना वैक्सीन की पहली डोज भी संक्रमण से काफी हद तक बचाने में सक्षम है। पहली डोज के बाद शरीर में कुछ हद तक एंटीबाडी बन जाती है, लेकिन वह पूरी तरह से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन दो डोज वाले टीकों को व्यापक शोध के बाद विकसित किया गया है। अध्ययन बताते हैं कि पहली डोज से 40 फीसद एंटीबाडी का निर्माण हो जाता है और बाकी 60 फीसद के लिए दूसरी डोज जरूरी होती है। सीधे शब्दों में कहें तो संक्रमण के खतरे के खिलाफ मजबूत सुरक्षा चक्र बनाने के लिए दोनों डोज का लगना जरूरी है। हर व्यक्ति का यह प्रयास रहना चाहिए कि तय शेड्यूल के मुताबिक सही समय पर दूसरी डोज लग जाए।
अभी बूस्टर डोज की जरूरत नहीं : दो डोज के बाद वैक्सीन की बूस्टर डोज को लेकर भी लगातार चर्चा उठती रहती है। भारत में टीकाकरण की प्रक्रिया पर विशेषज्ञों की पूरी टीम नजर रखे हुए है। फिलहाल बूस्टर डोज की जरूरत महसूस नहीं की गई है। यदि समय के साथ ऐसा लगेगा, तो निश्चित तौर पर सरकार उस संबंध में निर्देश जारी करेगी।
चाकचौबंद है व्यवस्था : देश में टीकाकरण के लिए सरकार की तरफ से चाकचौबंद व्यवस्था बनाई गई है। टीके की पहली डोज लगने के बाद जैसे ही दूसरी डोज का समय आता है, अलर्ट मैसेज आने लगता है। ऐसे में यह उम्मीद की जाती है कि हर व्यक्ति तय समय के भीतर टीके की दूसरी डोज लगवा लेगा। चूक जाएं तो क्या करें? इस मजबूत व्यवस्था के बावजूद यह संभव है कि कोई व्यक्ति तय समय पर दूसरी डोज लेने से चूक जाए। किसी भी कारण से दूसरी डोज से चूकना कोरोना के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर सकता है। यदि तय समयसीमा के भीतर दूसरी डोज न लग पाए, तो इस स्थिति में एंटीबाडी टेस्ट किया जा सकता है। यदि शरीर में बिल्कुल एंटीबाडी न बची हो, तो उन्हें फिर से तय प्रक्रिया के तहत दोनों डोज लेनी चाहिए।
महामारी से लड़ाई में खुद को कमजोर न होने दें : किसी भी स्थिति में तय प्रक्रिया के तहत टीके की दोनों डोज नहीं लगवाना महामारी के खिलाफ जंग में अपने पक्ष को कमजोर करने जैसा है। किसी भी क्षेत्र में यदि कुछ लोग टीका नहीं लगवाएंगे या फिर दूसरी डोज में आनाकानी करेंगे, तो संक्रमण का खतरा बना रहेगा। खतरा केवल संक्रमण फैलने तक ही सीमित नहीं है। जितने ज्यादा लोग संक्रमित होंगे, वायरस के नए वैरिएंट बनने का खतरा भी उतना ही ज्यादा होगा। नया वैरिएंट कितना घातक होगा, यह कोई नहीं जानता है। खतरे को कम करने का एकमात्र तरीका यही है कि नए वैरिएंट विकसित न होने दिए जाएं।