कोराना काल में भी प्रासंगिक है महाकाल की एक कहानी, कोरोना से डरना नहीं, हमें लड़ना है
covid-19 से दुनियाभर में लाखों मौत हो चुकी हैं। ऐसे में हर किसी की आंख नम है। वर्तमान के ये हालात एक पुरानी कहानी की याद दिलाते हैं।
नई दिल्ली (जेएनएन)। महाकाल एक लोककथा सुनिए। भगवान बुद्ध किसी गांव से गुजर रहे थे। उस गांव में बूढ़ी मां के इकलौते चिराग की मौत हो गई थी। उनका रो-रोकर बुरा हाल था। लोगों ने समझाया भगवान बुद्ध आए हैं, उनसे अनुरोध करो तो बच्चे को जीवित कर देंगे। मां तो मां होती है। पहुंच गई। बुद्ध ने पूछा, बोलो माई क्या कष्ट है। आंखों से गंगा-जमुना की अश्रुधारा निकालते मां ने कहा, भगवन, मेरे लाल को जिला दो। बुद्ध ने लाख समझाया कि ये सृष्टि का नियम है, लेकिन मां तो मां होती है।
हार कर बुद्ध ने कहां, अच्छा माई, हम आपके पुत्र को जीवित कर देंगे लेकिन जाओ एक मुट्ठी सरसों लाओ। याद रहे, सरसों उस घर से होनी चाहिए जिसके यहां किसी की मौत न हुई हो। पुत्र के जीवित हो जाने की लालसा में मां दौड़ी-भागी घर-घर सरसों मांगने लगी, लेकिन कहीं से नहीं मिली। सुबह से शाम हो गई, लेकिन उसे ऐसा एक भी घर नहीं मिला। उसकी आंखें खुल गई। ज्ञान प्राप्त हो गया। लौटी और भगवान बुद्ध के चरणों में गिरकर अपने लोभ पर क्षमा मांगी। यह कहानी कोराना काल में भी प्रासंगिक है।
कोविड-19 महामारी का खौफ सभी को डरा रहा है। अच्छी बात यह है कि भारत में इसका रिकवरी रेट बहुत अच्छा और मृत्युदर बहुत कम है। कोरोना के चलते दुनिया में दैनिक मौतों का औसत (31 दिसंबर से 15 मई तक) 2205 है। अब तक करीब 3.6 लाख लोग मारे जा चुके हैं। इन आंकड़ों को देखकर कोई भी डर सकता है, लेकिन कोरोना से इतर अन्य रोगों और वजहों से रोजाना मौतों के आंकड़ों को क्या कहेंगे जिनकी तुलना में ये पासंग ठहरता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में विभिन्न बीमारियों और वजहों (कोरोना से इतर) से रोजाना डेढ़ लाख मौतें होती हैं। सिर्फ भारत में ऐसी मौतों का रोजाना का आंकड़ा 25 हजार है। ये भयावह तस्वीर हमें बताती है कि कोरोना से डरना नहीं, हमें लड़ना है।
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