COVID-19: आसान हुई पृथ्वी के कंपन की पहचान, लॉकडाउन के बाद शोर-शराबे पर विराम
लॉकडाउन से नहीं भूकंप में कमी नहीं आई है बल्कि अब पृथ्वी के कंपन को सुनना आसान हो गया है क्योंकि बाकि के शोर-शराबे पर रोक है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। भूकंप की तीव्रता की निगरानी करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि लॉकडाउन के कारण सर्वत्र शांति फैली है और इसमें पृथ्वी के हल्के कंपन की भी आवाज को रिकॉर्ड करना आसान हो गया है। कोविड-19 के कारण दुनिया भर में एहतियात के तौर पर लॉकडाउन और क्वारंटाइन की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। इसके कारण लोगों के कारण होने वाले शोर-शराबे पर पूरी तरह विराम लग गया है और दुनिया में इतनी शांति है कि हल्की तीव्रता वाले भूकंप को भी आसानी से पहचाना जा सकता है।
बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के प्रोफेसर सिस्मोलॉजिस्ट कुशल राजेंद्रन ने बताया कि मानवीय गतिविधियों के कम होने के कारण अब सिस्मिक सेंसर भूकंप के हल्के झटकों को भी माप सकता है। उन्होंने बताया कि ट्रैफिक, समुद्री लहरों व अन्य शोर शराबे से दूर इन सिस्मिक स्टेशनों को दूर बनाया गया है। ये इतने संवेदनशील हैंं कि 500 मीटर के दायरे के भीतर होने वाली पदचाप को भी रिकॉर्ड कर सकते हैं।
सिस्मिक तरंगों व कंपनों को मापने वाला यंत्र सिस्मोमीटर कहलाता है। इससे पृथ्वी की सतह की कंपन, इंसानी गतिविधियों, उद्योगों और ट्रैफिक की कंपनों की भी निगरानी की जा सकती है।
सिस्मोमीटर के आंकड़ों के अनुसार, ट्रैफिक में भरी कमी दर्ज की गई है। इस दौरान पृथ्वी के वाइब्रेशन को लंदन के साथ पेरिस, ब्रसेल्स, लॉस एंजलिस और ऑकलैंड में भी महसूस हुआ। रॉयल ऑब्जर्वेट्री ऑफ बेल्जियम के भूगोलविद थॉमस लीकोक ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जो पृथ्वी के वाइब्रेशन में बदलाव को रिकॉर्ड करता है। पूरी दुनिया में इसका इस्तेमाल विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इंसानों के साथ हवा ओर समुद्र भी आवाज करते हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि इंसानों से होने वाले शोर को यदि पृथ्वी की कंपन की आवाजों से अलग कर देखा जाए तो भूकंप की भविष्यवाणी आसान हो सकती है। बेल्जियम के सिस्मोलॉजिस्ट थॉमस लिकॉक ने बताया कि क्रिसमस के करीब ऐसा ही अनुभव होता है जब शोर थम जाता है। भारत में मित्रा भी इसी तरह के सिस्मिक आंकड़ों पर काम कर रहे हैं।