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'ओल्ड इज गोल्ड' साबित हो सकती है स्‍वदेशी कोवैक्सीन, जानें क्‍यों इस टीके पर जताया जा रहा इतना यकीन

कोरोना के खिलाफ भारत बायोटेक की कोवैक्सीन ओल्ड इज गोल्ड साबित हो सकती है। इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की सिफारिश का फैसला काफी अहम साबित हो सकता है। अब तक हुए अध्‍ययन के आंकड़े बताते हैं कि वैक्सीन लंबे समय तक कारगर साबित हो सकती है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 02 Jan 2021 11:37 PM (IST)Updated: Sun, 03 Jan 2021 09:36 PM (IST)
'ओल्ड इज गोल्ड' साबित हो सकती है स्‍वदेशी कोवैक्सीन, जानें क्‍यों इस टीके पर जताया जा रहा इतना यकीन
कोरोना के खिलाफ भारत बायोटेक की 'कोवैक्सीन' 'ओल्ड इज गोल्ड' साबित हो सकती है।

नीलू रंजन, नई दिल्ली। कोरोना वायरस पर गठित विषय विशेषज्ञ समिति द्वारा भारत बायोटेक की 'कोवैक्सीन' के इमरजेंसी इस्तेमाल की सिफारिश का फैसला काफी अहम साबित हो सकता है। इसे वैक्सीन विकास की पुरानी तकनीक के आधार पर बनाया गया है, जो कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित वैक्सीन के मुकाबले लंबे समय तक कारगर साबित हो सकती है। दरअसल 'कोवैक्सीन' को कोरोना के लाइव वायरस को केमिकल के माध्यम से निष्क्रिय कर तैयार किया गया है।

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वायरस को निष्क्रिय कर तैयार की गई वैक्सीन 

इसके लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) की पुणे स्थित इकाई इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने कोरोना का लाइव वायरस उपलब्ध कराया था। इसे हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक की लेबोरेटरी में कल्चर किया गया। हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक की लेबोरेटरी में कल्चर किए गए लाइव वायरस को केमिकल के माध्यम से निष्क्रिय कर वैक्सीन तैयार की गई। इसमें पूरा का पूरा निष्क्रिय वायरस वैक्सीन के रूप में लोगों को दिया जाता है। वैक्सीन निर्माण की यह सबसे पुरानी तकनीक है।

ओल्ड इज गोल्ड साबित हो सकती है कोविशील्ड

जाहिर है कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में 'कोवैक्सीन' 'ओल्ड इज गोल्ड' साबित हो सकती है। इसके इतर सीरम इंस्टीट्यूट की 'कोविशील्ड' नए प्लेटफार्म पर बनाई गई वैक्सीन है। इसे रूस की वैक्सीन स्पुतनिक-5 की तरह चिंपैंजी में सर्दी-जुकाम के लिए जिम्मेदार एडोरना वायरस के स्ट्रेन पर कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को स्थापित कर तैयार किया गया है। मॉडर्ना और फाइजर की वैक्सीन भी कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को टारगेट करने के लिए तैयार की गई हैं।

वैक्सीन को लेकर कोई समस्या नहीं

अभी तक स्पाइक प्रोटीन को टारगेट करने वाली इस तरह की वैक्सीन को लेकर कोई समस्या नहीं है, लेकिन ब्रिटेन में कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में हुए म्यूटेशन ने भविष्य में इन वैक्सीन की उपयोगिता पर सवालिया निशान जरूर लगा दिया है। अभी तक स्पाइक प्रोटीन में बहुत ज्यादा म्यूटेशन नहीं हुए हैं, इसलिए सभी वैक्सीन कारगर बनी हुई हैं, लेकिन ज्यादा म्यूटेशन की स्थिति में ऐसी वैक्सीन की उपयोगिता खत्म होने की आशंका बढ़ जाती है।

सभी स्ट्रेन के खिलाफ बनाती है एंटीबॉडी

वहीं पुराने फार्मूले पर आधारित कोवैक्सीन कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन समेत पूरे स्ट्रेन के खिलाफ एंटीबॉडी तैयार करती है। ऐसे में शरीर पूरे वायरस से लड़ता है, न कि सिर्फ उसके एक भाग के खिलाफ। वैज्ञानिक अनुसंधान में यह साबित हो चुका है कि वायरस के पूरे स्ट्रेन को बदलने में करीब 10 साल का समय लग जाता है। ऐसे में कोवैक्सीन कोरोना के खिलाफ 10 साल तक कारगर रह सकती है। 


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