एनजीटी मामलों पर स्वत:संज्ञान ले सकता है या नहीं, तय करेगा कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में एएसजी की दलील एनजीटी को स्वतसंज्ञान लेने का अधिकार नहीं।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट इसकी समीक्षा करने के लिए तैयार हो गया है कि क्या राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को किसी मामले पर स्वत:संज्ञान लेने का अधिकार है? पर्यावरण संबंधी मामलों से निपटने के लिए 2010 में एनजीटी की स्थापना की गई थी।
जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने शुक्रवार को कहा कि पर्यावरण क्षरण के मामलों से निपटने वाले न्यायाधिकरण को स्वत:संज्ञान लेने का अधिकार होना चाहिए। वह इस मुद्दे पर सुनवाई करना चाहेगा।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने पीठ को बताया कि एनजीटी को किसी मामले पर स्वत:संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है।
इस पर पीठ ने पूछा, 'क्या एनजीटी के स्वत:संज्ञान के अधिकार के मुद्दे का निर्धारण किया गया है?'
नाडकर्णी ने बताया कि सिर्फ संवैधानिक अदालतों-सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को ही किसी मामले पर स्वत:संज्ञान लेने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि एनजीटी उन्हीं मामलों पर कार्रवाई कर सकता है या फैसला सुना सकता है, जिसे उसके सामने लाया जाता है।
पीठ ने इस मामले में अदालत की मदद करने के लिए वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर को न्याय मित्र नियुक्त करते हुए मामले की अगली सुनवाई की तारीख छह अगस्त निर्धारित कर दी।
नाडकर्णी महाराष्ट्र में ठोस कचरा प्रबंधन से संबंधित मुद्दे पर एनजीटी द्वारा स्वत:संज्ञान लेने के मामले में पैरवी कर रहे थे। एनजीटी ने इस मामले में नगर निगम पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। उन्होंने कहा कि बांबे हाई कोर्ट इस मामले की निगरानी कर रहा है और एनजीटी को इस पर स्वत:संज्ञान नहीं लेना चाहिए।