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तंत्र के गण: तिकड़ी से हारा भ्रष्ट तंत्र, कुलपति भी पहुंचे सींखचों के पीछ

डॉ. अनिल पुरोहित दीपक गुप्ता और अरविंद भट्ट की तिकड़ी ने डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में साल 2010 से 2013 के बीच में की गई भर्तियों में गड़बड़ियां और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया था

By Nitin AroraEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 09:38 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 09:41 AM (IST)
तंत्र के गण: तिकड़ी से हारा भ्रष्ट तंत्र, कुलपति भी पहुंचे सींखचों के पीछ
तंत्र के गण: तिकड़ी से हारा भ्रष्ट तंत्र, कुलपति भी पहुंचे सींखचों के पीछ

सागर, चैतन्य सोनी। सागर के डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के साथ ही यहां साल 2012-13 में प्रोफेसर से लेकर तमाम स्तर के पदों पर भर्तियों में सारे नियम ताक पर रख दिए गए। 189 पदों पर भर्तियां की गईं। इनमें भाई-भतीजावाद से लेकर भारी भ्रष्टाचार, बिना योग्यता के भर्तियां, बिना विज्ञापित पदों के प्रोफेसर, एसोसिएट व असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्तियां कर ली गई थीं।

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सागर के व्हिसिल ब्लोअर्स की तिकड़ी ने इस मामले को आरटीआई के माध्यम से उजागर किया था। मामला राष्ट्रपति, एमएचआरडी, सीएजी और सीबीआइ तक पहुंचाया गया। नतीजा, सीबीआइ ने छापेमारी कर मामले की पड़ताल के बाद 10 एफआइआर कीं। सागर का डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय है, जहां के प्रथम कळ्लपति को भी सीबीआइ ने सींखचों के पीछे घसीटा है, वे फिलहाल जमानत पर हैं।

आरटीआइ एक्टिविस्ट और व्हिसिल ब्लोअर डॉ. अनिल पुरोहित, दीपक गुप्ता और अरविंद भट्ट की तिकड़ी ने डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में साल 2010 से 2013 के बीच में की गई भर्तियों में गड़बड़ियां और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया था। अनिल पुरोहित ने मई 2013 में आरटीआइ लगाई थी। उन्हें 50 हजार रुपये से अधिक राशि खर्च करने के बाद इसकी जानकारी मिल सकी थी। इस तिकड़ी ने एक के बाद एक आरटीआइ लगाईं और कागजों के अंदर से भ्रष्टाचार के खेल को बाहर निकाला। सीबीआइ को शपथ-पत्र पर शिकायत की गई।

इसमें बताया गया कि साल 2010 में विवि में प्रोफेसर, एसोसिएट व असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्तियों के लिए विज्ञापन निकाला था। इसमें असिस्टेंट प्रोफेसर के 89 पदों के लिए रिक्तियां निकाली गई थीं, जबकि इसके विरुद्ध 157 पदों पर भर्तियां कर ली गईं। विवि में हुई कुल 189 पदों पर भर्तियों में उन विभागों में भी वरिष्ठ शिक्षकों को नियुक्ति दे दी गई, जिनमें कोई पद ही विज्ञापित नहीं किया गया था।

इसमें पत्रकारिता विभाग, शिक्षा विभाग, इकोनॉमिक्स विभाग, हिस्ट्री, फिलॉसफी विभाग शामिल थे। डॉ. अनिल पुरोहित, दीपक गुप्ता और अरविंद भट्ट ने आरटीआइ के तहत निकाली गई जानकारी को एकत्रित कर विवि प्रशासन, भर्ती कमेटी और तत्कालीन कुलपति डॉ. एनएस गजभिये के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सीबीआइ ने अक्टूबर 2013 में सागर विश्वविद्यालय में छापेमारी शुरू कर दस्तावेज जब्त किए, पड़ताल प्रारंभ की तो भर्ती घोटाले और भ्रष्टाचार की परतें उधड़ने लगीं। सीबीआइ दर्जनों दफा सागर आई और छापेमारी करते हुए जांच-पड़ताल की।

इसमें केंद्रीय विवि के कुलपति से लेकर भर्ती कमेटी, नियुक्ति कमेटी से लेकर तमाम अधिकारी लपेटे में आते गए। मई 2014 में पहली एफआइआर दर्ज की गई। उसके बाद कुल 10 एफआइआर दर्ज की गईं। मामले में कुलपति को सीबीआइ मुख्यालय भी तलब किया गया, वे जेल भी गए। फिलहाल जमानत पर हैं। आरटीआइ एक्टिविस्टों की तिकड़ी की मेहनत के बाद सीबीआइ के अलावा राष्ट्रपति स्तर तक हुई शिकायत के बाद इसे पिटीशन मानते हुए जांच समिति गठित की गई थी।


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