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इलेक्ट्रो-फ्रीक्वेंसी-वाइब्रेंशन टेक्नोलॉजी से हारेगा कोरोना वायरस, जानें कैसे करती है काम

Coronavirus Outbreak बायोकेमिकल मॉडल ने जहां कोरोना वायरस के खिलाफ रासायनिक पदार्थों को लड़ाई का आधार बनाया है वहीं एक वैकल्पिक पद्धति भी सामने आई है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 06 Apr 2020 10:27 AM (IST)Updated: Mon, 06 Apr 2020 03:17 PM (IST)
इलेक्ट्रो-फ्रीक्वेंसी-वाइब्रेंशन टेक्नोलॉजी से हारेगा कोरोना वायरस, जानें कैसे करती है काम
इलेक्ट्रो-फ्रीक्वेंसी-वाइब्रेंशन टेक्नोलॉजी से हारेगा कोरोना वायरस, जानें कैसे करती है काम

नई दिल्ली, जेएनएन। Coronavirus Outbreak: पूरी दुनिया में कोरोना वायरस को हराने को लेकर शोध किए जा रहे हैं। बायोकेमिकल मॉडल (आधुनिक चिकित्सा पद्धति) ने जहां कोरोना वायरस के खिलाफ रासायनिक पदार्थों को लड़ाई का आधार बनाया है, वहीं एक वैकल्पिक पद्धति भी सामने आई है। पदार्थों की तरंगों की आवृत्ति के आधार पर ईएफवी (इलेक्ट्रो-फ्रीक्वेंसी-वाइब्रेंशन) मॉडल आया है। इसमें दावा किया गया है कि कुछ दिनों तक 61 मिनट का समय खर्च करके कोई भी संक्रमित व्यक्ति कोरोना वायरस से मुक्ति पा सकता है। वो भी बिना किसी दवा के। सिर्फ 21 मिनट तक कुछ अनुनाद आधारित आवाजें सुननी होगी

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क्या है इलेक्ट्रो-फ्रीक्वेंसी-वाइब्रेंशन : साउंड थेरेपिस्ट इक्वांक आनखा ने इस मॉडल को प्रस्तावित किया है। उन्होंने मशहूर वैज्ञानिक निकोला टेस्ला के सिद्धांत को आधार बनाया है। टेस्ला ने कहा था, ‘यदि आप यूनिवर्स के रहस्य जानना चाहते हैं तो ऊर्जा, तरंग और आवृत्ति पर फोकस कीजिए।’ इसी आधार पर इक्वांक का मानना है कि हर पदार्थ की अपनी आवृत्ति होती है, जिस पर उसकी तरंगें अनुनाद करती हैं। शोध में पाया गया कि कोरोना के जीनोम, पॉलिमर्स और प्रोटीन एक खास आवृत्ति पर अनुनाद करते हैं। मानव शरीर की भी अपनी आवृत्ति होती है और अनुनाद भी।

मिला आधार : अमेरिका में गिलाड साइंसेज की दवा रेमडेसिर को कोरोना के खिलाफ कारगर माना गया है। पहला मानव ट्रायल भी सफल रहा है। अनुनाद मॉडल के शोधकर्ताओं ने माना कि रेमडेसिर के अणु भी कोरोना की तरह ही तीन आवृत्तियों पर अनुनाद करते हैं। इसके अलावा अभी कोरोना के इलाज में इस्तेमाल की जा रहीं क्लोरोक्वीन की आवृत्ति भी कोरोना की आवृत्ति के ही आसपास है।

कैसे करती है काम : हमारा शरीर इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक पल्स पर काम करता है। हमारा दिल जब सही आवृत्ति पर नहीं धड़कता है तो एक इलेक्ट्रो- मैग्नेटिक डिवाइस पेसमेकर लगाई जाती है, जो सही इलेक्ट्रॉनिक पल्स भेजकर दिल को सही आवृत्ति पर काम करने को कहती है। हमारे शरीर की भी अपनी आवृत्ति और अनुनाद होते हैं। कोई भी वायरस, जो मूलत: एक कोशिका होती है, अपनी आवृत्ति और अनुनाद हमारे शरीर पर थोप देता है। अपने अनुनाद के जरिये ही वायरस जहर फैलाता है और शरीर को कमजोर करता है। ईएफवी मॉडल मानता है कि कोरोना के तीन मूल हिस्सों जीनोम (जैविक पदार्थ, पॉलिमर्स और प्रोटीन के जोड़ को बाहर से विरोधी आवृत्ति का अनुनाद देकर तोड़ा जा सकता है। यदि वायरस का जोड़ ही टूट जाएगा तो वायरस अपने आप निष्प्रभावी होकर मर जाएगा।

तीन आवृत्तियों से होता है जोरदार वार : शोधकर्ताओं ने जीनोम, पॉलिमर्स और प्रोटीन के तीन अलग-अलग आवृत्ति व अनुनाद खोज निकाले हैं। इनकी काट के लिए भी तीन आवृत्ति के अनुनाद पहचाने गए हैं। हेडफोन के जरिये साउंड वेब संक्रमित मरीज को भेजी जाती है, जो ब्रेनवेव ट्रांसमिशन के सिद्धांत को पालन करते हुए शरीर में फैल जाती है। यह आवाज साइनसोएडल टोन होती है। यह प्रकृति की मूल आवृत्तियां व अनुनाद हैं। आइसोक्रोनिक आवाजों को संगीत में ढाला जाता है, जिसे हम लोग सुन सकें। इस दौरान इंसान की दिमागी गतिविधियों पर सेंसर के जरिये निगाह रखी जाती है। साथ ही ईसीजी और एलएफटी (लीवर फंक्शन टेस्ट) किया जाता है, ताकि संक्रमित व्यक्ति के स्वास्थ्य की जानकारी मिल सके।

तीन डोज और 61 मिनट : हर दिन महज 61 मिनट का समय संक्रमित मरीज का इस थेरेपी में लगता है। सात-सात मिनट तक हेडफोन के जरिये रोधी आवृत्ति व अनुनाद की इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक तरंगें दिमाग को भेजी जाती है। हर बार इन आवाजों को काम करने का मौका देने के लिए 20-20 मिनट का ब्रेक दिया जाता है, ताकि शरीर बाहर से भेजे गए इस इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक कोड को समझ सके और उस पर प्रतिक्रिया कर सके।

ईएफवी के फायदे : चिकित्सा का यह मॉडल किसी प्रकार का साइड इफेक्ट पैदा नहीं करता है। इससे शरीर में किसी तरह का जहर पैदा नहीं होता है, जैसा आधुनिक चिकित्सा मॉडल में दवाओं के असर के कारण होता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि इस मॉडल से किसी तरह का नुकसान संक्रमित व्यक्ति को नहीं होता है।


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