Move to Jagran APP

कोरोनावायरस ने मुंह की खाई, श्रमिक से मालिक बन गए दो भाई

शहर में खुद फैक्ट्री में काम कर रोजी पा रहे थे लेकिन लॉकडाउन में काम छिन गया तो गांव आकर न केवल खुद को मजबूत किया बल्कि गांव लौटे प्रवासियों को भी रोजगार से जोड़ा।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 09 Jul 2020 12:52 PM (IST)Updated: Thu, 09 Jul 2020 07:11 PM (IST)
कोरोनावायरस ने मुंह की खाई, श्रमिक से मालिक बन गए दो भाई
कोरोनावायरस ने मुंह की खाई, श्रमिक से मालिक बन गए दो भाई

हरदोई [पंकज मिश्रा]। कोरोना काल में हरियाणा से बेरोजगार होकर लौटे हरदोई, उप्र के दो भाइयों ने गांव में अपना कारोबार खड़ा कर दिया। शहर में खुद फैक्ट्री में काम कर रोजी पा रहे थे, लेकिन लॉकडाउन में काम छिन गया तो गांव आकर न केवल खुद को मजबूत किया, बल्कि गांव लौटे प्रवासियों को भी रोजगार से जोड़ा। लॉकडाउन में जब लोग काम के लिए परेशान थे, उसी दौरान उन्होंने बंद पड़ी अपनी बेकरी को चालू कर नई शुरुआत की।

loksabha election banner

आज करीब दो सौ अन्य परिवारों का भी सहारा बन गए हैं। अब धीरे-धीरे उनका कारोबार बढ़ता जा रहा है, जिसमें लोग जुड़ते जा रहे हैं। हरदोई की सवायजपुर तहसील क्षेत्र के मत्तीपुर गांव निवासी अवधेश सिंह नहीं चाहते थे कि उनके बेटे कुलदीप और शिवम परदेस में नौकरी करने जाएं। लेकिन गांव में रोजगार की कमी के चलते वर्ष 2017 में दोनों बेटे हरियाणा चले गए।

वहां बल्लभगढ़ में पंखा बनाने वाली फैक्ट्री में काम करने लगे। दिन में काम और बचे हुए समय में कमर्शियल वाहन चलाकर जीविका चलाते थे। बेटों को गांव बुलाने के लिए अवधेश सिंह ने 2019 में गांव में ही बेकरी खोली। लेकिन दोनों नहीं आए। क्षेत्र में कोई बेकरी नहीं थी, जिसके चलते ब्रेड, रस्क, बिस्कुट आदि की मांग तो थी।

लेकिन पिता अकेले कारोबार संभाल नहीं पाए और आठ माह में ही बेकरी बंद हो गई। कोरोना काल में लॉकडाउन में फैक्ट्रियां बंद हुईं तो कुलदीप और शिवम भी बेरोजगार होकर गांव लौट आए। अब बंद पड़ी बेकरी में हाथ आजमाने के अलावा उनके पास रोजी का फौरी विकल्प शेष न था। तो ठहरी जिंदगी को गति देने के लिए बंद पड़ी बेकरी को चालू किया। पिता ने भी सहयोग किया। बेकरी चलाने के लिए कच्चा माल, मैदा, रिफाइंड, चीनी, यीस्ट आदि मिल ही गया और ब्रेड बनाना शुरू कर दिया।

मत्तीपुर गांव में ही हरियाणा, पानीपत, रोहतक, दिल्ली आदि शहरों से कई प्रवासी आए थे। इनमें कई हुनरमंद भी थे। शुरुआत में 10-12 लोगों को जोड़कर काम शुरू किया। लॉकडाउन में गांवों के लोग कस्बा, शहर जा नहीं पाते थे तो उन्हें घर बैठे ब्रेड, रस्क, बिस्कुट उपलब्ध कराना शुरू कर दिया। फेरी लगाकर सब्जी आदि बेचने वाले प्रवासी भी जुड़ गए और लॉकडाउन में काम चल पड़ा। कुलदीप और शिवम बताते हैं कि करीब 200 परिवार उनके कारोबार से जुड़े हैं। जो हुनरमंद हैं वह बेकरी में काम करते हैं। बाकी साइकिल, मोटरसाइकिल से ब्रेड गांवों में पहुंचाते हैं।

अब लॉकडाउन समाप्त हो गया है तो माल गांवों से लेकर कस्बों और शहरों तक भेजते हैं। लॉकडाउन में कच्चा माल महंगा मिलता था। उस समय भी 500- 700 रुपये बच जाते थे। कुलदीप बताते हैं कि इस समय 700 से 1000 रुपये रोजाना बचते हैं। जो बेकरी में काम करते हैं उन्हें भी 500 रुपये रोजाना मिलते हैं। जो साइकिल, मोटरसाइकिल से गांवों में ब्रेड, रस्क आपूर्ति करते हैं उन्हें भी रोजाना 200 रुपये बच जाते हैं। बाकी दिन उन्हें अपने घर या अन्य काम करने का समय मिल जाता है। जो काम में जुड़े हैं वे बाहर न जाने की बात कह रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.