मस्तिष्क की सेहत बिगाड़ रहा है कोरोना वायरस, सामने आ रही न्यूरो की समस्या
Neurological Problem मुंबई के वॉकहार्ट हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत माखीजा ने बताया कि कोरोना संक्रमण के साथ-साथ कई तरह की न्यूरो संबंधी समस्याएं देखने को मिल रही हैं जिनकी अनदेखी भविष्य में बन सकती है बड़ी समस्या...
नई दिल्ली, जेएनएन। Neurological Problem कोविड-19 के संक्रमण का पहला प्रभाव श्वसनतंत्र पर पड़ता है। इसके बाद यह शरीर के अन्य अंगों को अपनी चपेट में लेता है, लेकिन इसके संक्रमण से मुक्ति पाने के बाद ऐसे मामले भी प्रकाश में आ रहे हैं कि यह मस्तिष्क संबंधी बीमारियों का कारण बन रहा है। ठीक होने के बाद स्ट्रोक का शिकार होना, नसों में शिथिलता, लकवा, चेहरे का टेढ़ापन और एक आंख का ठीक से न खुलना आदि परेशानियां शामिल हैं। जानें क्या कहते है मुंबई के वॉकहार्ट हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत माखीजा।
हालांकि इससे प्रभावित होने वाले अधिसंख्य बुजुर्ग हैं। जिन्हें पहले से ही एलर्जी, अस्थमा, टीबी या फिर श्वसन संबंधी अन्य बीमारियां रही हैं। जबकि कुछ मामलों में वे मरीज भी देखे जा रहे हैं, जो किसी हार्ट डिजीज या न्यूरो संबंधी बीमारी का लंबे समय से इलाज ले रहे हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि पूर्ण रूप से स्वस्थ युवा व्यक्ति के फेफड़े भी कोरोना संक्रमण में बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और यदि कोई बुजुर्ग संक्रमित हुआ है तो जाहिर है कि उस पर इसका असर अधिक पड़ता है।
ऐसे में ठीक होने के बाद भी मस्तिष्क को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। इससे मस्तिष्क प्रभावित होता है और न्यूरो संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जैसे लकवा, स्ट्रोक, सूंघने की क्षमता का कम होना, शरीर के किसी अंग का सुन्न पड़ना या नसों में इस तरह की शिथिलता का पैदा होना कि बिना सहारे चल पाना मुश्किल भरा हो और ये लक्षण हर उम्र के रोगियों में पाए जा रहे हैं।
जो लोग पहले से ही न्यूरो संबंधी बीमारी से ग्रसित हैं और कोरोना की चपेट में आए हैं, उनके लिए इस तरह की समस्या का कारण मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों में दी जाने वाली दवाएं भी हैं। मस्तिष्क की बीमारियों में दी जाने वाली अधिसंख्य दवाएं ऐसी होती हैं, जो मरीज के मूल रोग को तो समाप्त या नियंत्रित करती हैं, लेकिन इम्युनिटी पर बुरा असर डालती हैं। यदि कोरोना से ठीक होने के बाद न्यूरो संबंधी कोई समस्या हो तो इसे टालें नहीं, बल्कि प्रारंभिक अवस्था में ही चिकित्सक से परामर्श लें। रोग की स्थिति बिगड़ने पर यह बड़ी समस्या बन सकती है।