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कोरोना संक्रमण की उत्पत्ति पर भ्रम बरकरार, अधूरी कड़ियां बताती हैं लैब से आया यह वायरस

डेढ़ साल से दुनिया महामारी का सामना कर रही है। अब तक इसके स्रोत को लेकर कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला है। एक के बाद एक ऐसे संकेत जरूर मिल रहे हैं जो यह दिखाते हैं कि वायरस प्राकृतिक नहीं है बल्कि प्रयोगशाला में तैयार किया गया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 01 Jun 2021 01:42 PM (IST)Updated: Tue, 01 Jun 2021 01:43 PM (IST)
कोरोना संक्रमण की उत्पत्ति पर भ्रम बरकरार, अधूरी कड़ियां बताती हैं लैब से आया यह वायरस
एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच ही इस प्रश्न पर पूर्णविराम लगा सकती है।

डॉ दिलीप कुमार। विज्ञान एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें प्रत्यक्ष को भी प्रमाण की आवश्यकता होती है। कोविड-19 वायरस के उद्भव की गुत्थी प्रामाणिक तथ्यों के अभाव में और उलझती जा रही है। दिसंबर, 2019 में रहस्यमयी निमोनिया जैसी बीमारी से आज कोविड-19 की वैश्विक महामारी तक के सफर में इस वायरस की उत्पत्ति पर विज्ञान जगत इसके नेचुरल ओरिजिन की अवधारणा को लेकर एकमत रहा है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में आए तथ्यों ने विज्ञान जगत को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कोविड-19 वायरस के वुहान लैब से निकलने की थ्योरी को खारिज नहीं किया जा सकता।

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पिछले सालभर से वायरस के लैब से निकलने की अवधारणा को खारिज कर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति के चीफ मेडिकल एडवाइजर और वायरोलॉजिस्ट डॉ. एंथनी फासी ने भी अपने पिछले इंटरव्यू में वायरस के स्रोत की स्वतंत्र जांच की मांग को स्वीकार किया है और माना है कि बिना उचित तथ्यों के हम वायरस के लैब से आने की संभावना को नकार नहीं सकते।

वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी इंटेलीजेंस ने अपनी जांच में पाया कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में काम करने वाले तीन वैज्ञानिक नवंबर, 2019 में निमोनिया जैसी बीमारी की वजह से अस्पताल में भर्ती हुए थे। यह कोविड-19 का पहला मरीज मिलने से एक महीने पहले की घटना है। स्वतंत्र जांच की मांग को लेकर चीन का नकारात्मक रवैया और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा की गई आधी-अधूरी जांच ने पहले से ही वायरस की उत्पत्ति पर संदेहास्पद स्थिति पैदा कर दी है।

इस वायरस के वुहान लैब से निकलने की अवधारणा के दो महत्वपूर्ण बिंदु हैं: पहला, अभी तक हमें इस वायरस का स्ट्रेन किसी भी अन्य जीव की प्रजाति में देखने को नहीं मिला है और दूसरा, इस वायरस का संक्रमण और प्रसार का पैटर्न एक आइडियल इंफेक्टिव वायरस से मिलता है, जो प्राकृतिक रूप से संभव नहीं लगता। जीनोमिक संरचना के मामले में कोविड-19 के वायरस के सबसे करीब जो कोरोना वायरस है, उसमें उतनी ही समानता है, जितनी समानता मनुष्य और ओरांगउटान (वनमानुष) में होती है। जाहिर है कि कोई ओरांगउटांन सीधे मनुष्य नहीं बन सकता है। ऐसे में उस करीबी कोरोना वायरस से कोविड-19 का वायरस बनने के बीच भी प्राकृतिक रूप से कोई कड़ी होनी चाहिए, जो अब तक नहीं मिली है। यह तथ्य अपने आप में वायरस के प्राकृतिक होने की दलील को खारिज करता है। अभी तक कोविड-19 के पहले मरीज का वुहान के वेट मार्केट से कोई संबंध स्थापित न हो पाना भी वायरस के नेचुरल ओरिजिन की थ्योरी को कठघरे में खड़ा करता है।

एक विज्ञानी के नजरिये से इस वायरस की उत्पत्ति का पता लगाना हमारे लिए कई कारणों से जरूरी है। अगर हमें वायरस के लैब से निकलने का प्रमाण मिलता है, तो आने वाले समय में इस तरह की रिसर्च फंडिंग और उससे जुड़े सुरक्षा निर्देशों को और सख्त बनाया जा सकता है। अगर यह वायरस वुहान लैब से आया है, तो इस तथ्य को छुपाने के लिए चीन को नैतिक रूप से जिम्मेदारी लेनी होगी और वैश्विक वैक्सीन की मांग को पूरा करने के लिए आगे आना होगा। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच ही इस प्रश्न पर पूर्णविराम लगा सकती है।

[वायरोलॉजिस्ट, बेलर कालेज ऑफ मेडिसिन, ह्यूस्टन]


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