Move to Jagran APP

Coronavirus के बढ़ते प्रकोप के बीच कैसे होगा वेंटिलेटर का इंतजाम, पढ़ें- विशेष रिपोर्ट

Coronavirus Outbreak सरकार और निजी क्षेत्रों ने अपनी ओर से वेंटिलेटरों की उपलब्धता बढ़ाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। फिलहाल देश में क्या है वेंटिलेटर की स्थिति डालते हैं एक नजर।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 04 Apr 2020 09:29 AM (IST)Updated: Sat, 04 Apr 2020 09:39 AM (IST)
Coronavirus के बढ़ते प्रकोप के बीच कैसे होगा वेंटिलेटर का इंतजाम, पढ़ें- विशेष रिपोर्ट
Coronavirus के बढ़ते प्रकोप के बीच कैसे होगा वेंटिलेटर का इंतजाम, पढ़ें- विशेष रिपोर्ट

नई दिल्ली, जेएनएन। Coronavirus Outbreak: कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण अस्पतालों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। संक्रमित लोगों की जान बचाने के लिए बुनियादी जरूरतों के अभाव ने गंभीर चुनौतियां खड़ी कर दी है। इनमें वेंटिलेटर सबसे अहम माना जा रहा है। लेकिन इसकी कमी चिंता का सबब बन रही है। सरकार और निजी क्षेत्रों ने अपनी ओर से वेंटिलेटरों की उपलब्धता बढ़ाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। फिलहाल, देश में क्या है वेंटिलेटर की स्थिति, डालते हैं एक नजर।

loksabha election banner

इस तरह जानिए वेंटिलेटर : वेंटिलेटर एक ऐसी मशीन है, जो खुद से सांस लेने में असमर्थ लोगों को कृत्रिम रूप से सांस देने में सहायक है। इसमें कंप्रेस्ड ऑक्सीजन का अन्य गैसों के साथ इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा 21 फीसद ही होती है। इसके जरिए रोगियों को जरूरी मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाती है, जो फेफड़े को सांस छोड़ने में मदद करती है।

कोविड-19 मरीजों के लिए जरूरी : विशेषज्ञों के अनुसार, कोविड-19 पीड़ित रोगियों में कभी-कभी इंटरस्टीशियल निमोनिया होता है। इसका वायरस फेफड़ों के भीतर वायु नलिकाओं में सूजन पैदा करता है, जिसे ब्रॉकियोल्स कहते हैं। इस क्षेत्र में सूजन का मतलब है कि हवा अंदर-बाहर नहीं हो सकती है। चूंकि फेफड़ों में वायु विनिमय का क्षेत्र छोटा पड़ जाता है, इसलिए रोगियों को सांस लेने में ज्यादा जोर लगाना पड़ता है, जो ज्यादा समय तक करना संभव नहीं होता है। जब रोगी प्रति मिनट 40-45 की दर से सांस नहीं ले पाता है तो उसे वेंटिलेटर की जरूरत होती है, जो उसके फेफड़े को ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचाता है। इसके सहारे रोगी को ठीक होने का समय मिल जाता है, जिससे वह फिर से सांस लेने की स्थिति में आ सकता है।

जरूरत से बहुत कम वेंटिलेटर : देश के सरकारी अस्पताल 14,220 आइसीयू वेंटिलेटर युक्त हैं। इसके अतिरिक्त कोविड-19 के रोगियों के लिए बनाए गए विशेष अस्पतालों में करीब 6,000 वेंटिलेटर हैं। जबकि विशेषज्ञों के मुताबिक, कोरोना संक्रमण के हालात बिगड़ने की स्थिति में 15 मई तक देश में एक लाख से लेकर 2.2 लाख वेंटिलेटर की जरूरत हो सकती है। हालांकि दिल्ली के अपोलो अस्पताल के रेस्परेटरी मेडिसिन के सीनियर कंसलटेंट डॉ. राजेश चावला मानते हैं कि अभी वेंटिलेटर की कमी नहीं है, क्योंकि कोरोना के कुछ ही रोगियों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। अधिकांश तो ऑक्सीजन पर ही होते हैं। लेकिन हालात यदि इटली जैसे हो जाएं, तब तो किसी भी देश को समस्या हो सकती है। इटली में गुरुवार तक 110574 लोग संक्रमित हुए और 13155 लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन भारत की स्थिति फिलहाल ठीकठाक दिखती है।

इस तरह बनता है वेंटिलेटर : वेंटिलेटर ऑक्सीजन की आपूर्ति अलग-अलग तरीकों से करते हैं। मैक्स वेंटिलेटर बनाने वाली एबी इंडस्ट्रीज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अशोक पटेल बताते हैं कि वेंटिलेटर के अवयव (कंपोनेंट) उसके प्रकार पर निर्भर करते हैं। यह सिर्फ सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर तकनीक का संयोजन नहीं है बल्कि इसमें वायु शास्त्र होता है, जो गैसों को हैंडल करता है। साथ ही सुरक्षा मानकों को बनाए रखने की भी जरूरत होती है।

क्षमता बढ़ाने की जरूरत : औद्योगिक सूत्रों के अनुसार, देश में इस्तेमाल होने वाले महज 10 फीसद वेंटिलेटर भारत में निर्मित हैं। महामारी के कारण मांग बढ़ने के बावजूद आपूर्ति की वैश्विक चेन प्रभावित हुई है। आयात धीमा होने से भारतीय निर्माताओं पर दबाव बढ़ा है कि सीमित क्षमता के बावजूद उत्पादन बढ़ाया जाए। फिलहाल प्रतिमाह करीब छह हजार वेंटिलेटर निर्माण की क्षमता है। हालांकि एबी इंडस्ट्रीज का कहना है कि वह अगले दो महीनों में उसका उत्पादन 350-400 प्रतिमाह बढ़ा सकता है। बेंगलुरु स्थित कंपनी एसकैनरी टेक्नोलॉजीज का दावा है कि वह एक लाख वेंटिलेटर बनाने का इरादा रखता है, जबकि अभी एक बैच में सिर्फ 5000 की क्षमता है। शेष उत्पादन वह अन्य के सहयोग से करेगी।

तीन तरह के वेंटिलेटर : एयर फ्लो डिलीवरी तंत्र के आधार पर वेंटिलेटर तीन प्रकार के होते हैं- बेलो ड्रिवन या पिस्टन वेंटिलेटर, टरबाइन और एक्सटर्नल कंप्रेस्ड एयर ड्रिवन वेंटिलेटर। कोरोना रोगियों के लिए आइसीयू सेटिंग वाला न्यूमेटिक एक्सटर्नल कंप्रेस्ड एयर ड्रिवन वेंटिलेटर आदर्श है। टरबाइन वेंटिलेटर इससे कम प्रभावी होता है। इसमें कम कंपोनेंट होते हैं, जिन्हें बढ़ाया जा सकता है। इन रोगियों का फेफड़ा अपेक्षाकृत सख्त तथा एयर पैसेज फूला हुआ होता है। ऐसी हालत में गैस का कम फ्लो मददगार नहीं होगा। इसलिए अधिक दबाव और हाई फ्लो की जरूरत होती है। सही समय पर इलाज होने से फेफड़े की कोशिकाएं स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त नहीं होती है।

कंपोनेंट की है समस्या : अब सवाल कच्चे माल का भी है। एबी इंडस्ट्रीज के पटेल बताते हैं कि वेंटिलेटर का कम से कम 40 फीसद कंपोनेंट अमेरिका, फ्रांस तथा जर्मनी जैसे देशों से आता है। इनमें सेंसर्स तथा डिस्प्ले जैसे कई अहम कंपोनेंट शामिल हैं। एसकैनरी के प्रबंध निदेशक विश्वप्रसाद अल्वा कहते हैं, ‘सामान्य परिस्थितियों में सरकार के पास महामारी तथा आपदा प्रबंध प्रकोष्ठ होता है, जिससे चालू हालत में वेंटिलेटर का स्टोर करने की अपेक्षा होती है। लेकिन हमारी सरकार ने कई पत्राचार और बैठकों के बाद भी ऐसा नहीं किया। हम उनसे 2012-2013 से बात कर रहे हैं। पिछली सरकारों ने भी कुछ नहीं किया।’

ऐसे निपटेंगे हालात से : रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाला एक सार्वजनिक उपक्रम भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (बीईएल) 3000 वेंटिलेटर बनाने की प्रक्रिया में है। स्वास्थ्य मंत्रालय का उपक्रम लाइफकेयर लिमिटेड ने भी 20 हजार वेंटिलेटर के लिए निविदा निकाली है। ट्रेन 18 का निर्माता आइसीएफ, चेन्नई भी वेंटिलेटर बनाने की कोशिश कर रहा है। वहीं, निजी क्षेत्र में एसकैनरी वेंटिलेटर के डिजाइन को सरल बनाने की दिशा में बीईएल तथा महिंद्रा एंड महिंद्रा के साथ मिलकर काम कर रहा है और टाटा के साथ भी सहयोग शुरू कर सकता है।

डिजाइन सरल होने से आयातित कंपोनेंट की बाधा से भी पार पाया जा सकता है। इसके साथ ही मारुति सुजुकी इंडिया ने भी नोएडा की एक कंपनी एजीवीए हेल्थकेयर के साथ मिलकर द्रुतगति से उत्पादन बढ़ाकर 10 हजार प्रतिमाह करने की घोषणा की है। इसके दीगर, सेंसर तथा डिस्प्ले जैसे इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट के आयात के विकल्प खोजने के भी प्रयोग हो रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.