Move to Jagran APP

Coronavirus: यह वायरस जितना जुदा है उतनी ही इसकी वैक्सीन भी होगी अलग

Coronavirus vaccine दुनियाभर में 40 शोधकेंद्रों और कंपनियों की लैबों में कोरोना वायरस की वैक्सीन और संक्रमण को खत्म करने लिए दवा पर काम चल रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 30 Mar 2020 10:58 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2020 02:53 PM (IST)
Coronavirus: यह वायरस जितना जुदा है उतनी ही इसकी वैक्सीन भी होगी अलग
Coronavirus: यह वायरस जितना जुदा है उतनी ही इसकी वैक्सीन भी होगी अलग

नई दिल्ली, जेएनएन। Coronavirus vaccine: कोरोना वायरस (कोविड-19) जिस तेजी से फैला उतनी ही तेजी से इसकी वैक्सीन और दवा बनाने पर पूरी दुनिया में काम शुरू हो गया। अमेरिका में एक कंपनी ने तो बकायदा इंसानों पर ड्रग ट्रायल शुरू कर दिया है। यह वायरस जितना जुदा है उतनी ही इसकी वैक्सीन भी अलग होगी। ह्यूमन ट्रायल शुरू हो चुके हैं लेकिन, 18 माह में पहली वैक्सीन का व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो जाएगा। तब तक सतर्कता और स्वच्छता के जरिये ही कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी।

prime article banner

दुनियाभर में 40 शोधकेंद्रों और कंपनियों की लैबों में कोरोना वायरस की वैक्सीन और संक्रमण को खत्म करने लिए दवा पर काम चल रहा है। यूरोप में तो इसके लिए नियमों में ढील देकर शोधकर्ताओं को प्राइवेट कंपनियों के साथ मिलकर शोध करने को कहा गया है। फिर भी माना जा रहा है कि पहली वैक्सीन व्यावसायिक रूप से 18 माह में उपलब्ध हो सकेगी।

अनोखी होगी वैक्सीन : दुनियाभर के शोधकर्ता के सामने कोरोना की सेल को तोडऩे की चुनौती है। शोधकर्ता उसका जैविक खोल तोड़ना चाहते हैं, यानी की उसके खतरनाक जैविक पदार्थ के लिए इंसान को तैयार किया जाएगा। कोरोना के स्पाइक्स एस-प्रोटीन से बने हैं, इन पर शोधकर्ताओं की विशेष नजर है, चिपकने की ताकत को वे खत्म करना चाहते हैं। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता जोनाथन हैनी भी इसी प्रयास में लगे हुए हैं। उन्होंने अपनी प्राइवेट लैब में ताकतवर कंप्यूटरों की मदद से कोरोना के जैविक पदार्थ के कई डुप्लीकेट भी बना डाले हैं, हालांकि वह मानते हैं कि अभी चुनौती तगड़ी है।

अनोखा है कोरोना वायरस : कोरोना वायरस अनोखा है। इसमें सिर्फ प्रोटीन और आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) ही है। आरएनए एक जैविक पदार्थ होता है। इसके स्पाइक इसे खास बनाते हैं, जो इसे किसी भी सतह से चिपकने में मदद करते हैं। अपने स्पाइक की वजह से ही यह सिंथेटिक चीजों पर पांच दिन तक बना रहता है।

चीन ने दिखाई फुर्ती : चीन पर हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान में फैले कोरोना वायरस संक्रमण की जानकारी समय से नहीं देने का आरोप है। इजरायल व अमेरिका का आरोप है कि उसने जैविक हथियार के रूप में कोरोना को तैयार किया। चीन के वैज्ञानिकों ने तेजी से कोरोना का आरएनए कोड तोड़ दिया और पूरी दुनिया को बता भी दिया, ताकि शोध का काम तेजी से हो सके। 30 जनवरी को चीन के शोधकर्ताओं ने डब्ल्यूएचओ को बताया कि 29,903 न्यूक्लियस बेस हैं। इनके कोड चीन ने दुनियाभर में सार्वजनिक किए। इसी कारण दुनिया में हांगकांग से लेकर अमेरिका तक में 43 वैक्सीन का निर्माण लगभग अंतिम चरण में है।

नियमों का जाल : इंसान के शरीर में जैविक वैक्सीन डालने के लिए अभी कोई स्पष्ट नियम नहीं हैं। ऐसे में विभिन्न देशों और डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) को प्रॉटोकॉल बनाना होगा। डॉ. हैनी मानते हैं कि यह बड़ी चुनौती है। भले ही इंसानों पर ट्रायल शुरू हो गया है लेकिन, व्यवसायिक प्रोडक्शन में नियमों की अस्पष्टता और लाइसेंस की शर्तें रोड़ा अटकाएंगी। इसलिए बहुत तेजी से काम करने पर भी 18 माह का वक्त कम से कम लग जाएगा।

20 साल के मुकाबले 20 माह : दुनियाभर के शोधकर्ताओं के निशाने पर खतरनाक पोलियो वैक्सीन 20वीं शताब्दी के शुरुआत में ही आ गई थी। पहली वैक्सीन 1955 में जोनास साल्क और 1960 में एल्बर्ट ब्रूस ने पोलियो की वैक्सीन विकसित कर ली। इनका बड़े स्तर पर व्यावसायिक उत्पादन नहीं हो पाता था। यह हालत 1980 तक रही। इसके बाद वैज्ञानिकों ने वैक्सीन के बड़े स्तर पर उत्पादन का तरीका खोजा। जापानी बुखार हो या टीबी, इनकी वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल से मास उत्पादन तक जाने में 20-20 साल से अधिक का वक्त लग जाता था। हालांकि कोरोना के खिलाफ जंग हम 18 माह में जीत लेंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.