कोरोना संक्रमण से बचने के लिए मास्क पहनना प्रभावकारी है या नहीं? पढ़े विशेषज्ञ की राय
Coronavirus आइए आज हम कुछ दावों के बारे में जानते हैं कि उनकी हकीकत क्या है और जान लेते हैं कि कोरोना संक्रमण से किस तरह बच सकते हैं किसे संक्रमण का ज्यादा खतरा है?
नई दिल्ली। Coronavirus: कोरोना वायरस आज दुनिया में महामारी का कारण बना है। लंदन की एक वेबसाइट द गार्जियन के अनुसार इस वायरस को लेकर, इसकी प्रकृति, इसके संक्रमण से बचाव, उपचार तक कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। कुछ वैज्ञानिक तर्कों के साथ तो कुछ अनुभवों पर। सोशल मीडिया में तमाम ऐसे दावे भी हैं जो भ्रामक हैं। आइए आज हम कुछ दावों के बारे में जानते हैं कि उनकी हकीकत क्या है और जान लेते हैं कि कोरोना संक्रमण से किस तरह बच सकते हैं, किसे संक्रमण का ज्यादा खतरा है? संक्रमण के बाद क्या करना चाहिए?
दावा: कुछ ही महीनों में इसका टीका तैयार हो जाएगा
हकीकत: चीनी शोधकर्ताओं द्वारा वायरस के अनुवांशिक अनुक्रम जारी करने से वैज्ञानिकों को नए कोरोना वायरस का टीका तैयार करने के काम में मदद मिली है। यह सही है कि वैज्ञानिक इस दिशा में काफी तेजी से काम कर रहे हैं। कुछ टीमों ने तो जानवरों पर इसका परीक्षण भी किया है। हालांकि बाजार में टीका उतारना अब भी एक लंबी प्रक्रिया है। वैज्ञानिक पूरी तरह संतुष्ट हो जाएं कि इसका टीका बगैर साइड इफेक्ट के हो। ऐसे में कहा जा सकता है कि अगर एक वर्ष में भी टीका तैयार हो जाए तो उसे जल्दी ही कहेंगे।
दावा: मास्क पहनना प्रभावकारी नहीं है
हकीकत: यह गारंटी नहीं है कि मास्क पहनभर लेने से कोरोना वायरस अटैक नहीं कर सकते हैं। वायरस आंखों के जरिए भी शरीर के अंदर प्रवेश कर सकता है। इतने ही बहुत छोटे कण जिन्हें एरोसोल कहा जाता है, वे मास्क को भेदने में सक्षम होते हैं। हां, इतना जरूर है कि मास्क ड्रापलेट्स को रोकने में सक्षम है जो कि वायरस संक्रमण का मुख्य माध्यम है। एक अध्ययन के मुताबिक मास्क पहनने वाले लोग न पहनने वाले से पांच गुना ज्यादा सुरक्षित रहते हैं।
अगर आपके किसी संक्रमित के संपर्क में आने की गुंजाइश बनती है तो मास्क संक्रमण की आशंका को कम करता है। अगर किसी को कोरोना है या उसके संक्रमित होने की आशंका है तो वह मास्क पहनकर दूसरों के लिए खतरा कम करता है। स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए मास्क जरूरी है। इसी तरह घर में अगर कोई मरीज है तो उसकी देखभाल करने वाले को भी मास्क पहनना चाहिए। आदर्श स्थिति तो यही है कि मरीज और देखभाल करने वाले दोनों को मास्क पहनना चाहिए। हां, बेवजह लोगों को पहनने की जरूरत नहीं हैं।
दावा: कम उम्र वाले निश्चिंत रहें
हकीकत: अधिकांश ऐसे लोग जो बुजुर्ग नहीं है और उन्हें कोई बीमारी नहीं है, वे कोरोना की वजह से गंभीर रूप से पीड़ित नहीं होते हैं। लेकिन अगर व्यक्ति बीमार है तो उसे सामान्य फ्लू की तुलना में श्वसन संबंधी गंभीर दिक्कत हो सकती है। वे लोग जो वायरस की रोकथाम में जुटे हैं जैसे स्वास्थ्यकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, पुलिस- प्रशासन के लोग उनके लिए संक्रमण की आशंका बनी रहती है। स्वस्थ युवा अगर क्वारंटाइन के निर्देशों का सही ढंग से पालन करें तो वे स्वयं तो सुरक्षित रहेंगे ही इसके संक्रमण को रोकने में मददगार होंगे।
दावा: यह सर्दी के फ्लू से ज्यादा खतरनाक है
हकीकत: अगर कोई कोरोना का मरीज होता है तो उसकी स्थिति सर्दी के फ्लू से ज्यादा बदतर नहीं होगी लेकिन कोरोना की मृत्यु दर और इसकी समग्र रूपरेखा इसको ज्यादा घातक बनाती है। जब यह संक्रमण तेजी से फैले और उस समय संक्रमण के हल्के-फुल्के मामलों पर अगर ध्यान नहीं दिया जाए तो मृत्यु दर काफी ज्यादा प्रतीत होती है।
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ ब्रूश एलवर्ड का कहना है कि कोविड-19 के साथ ऐसा नहीं है। एलवर्ड ने ही चीन में एक अंतरराष्ट्रीय मिशन का नेतृत्व किया था जो कि वायरस की भयावहता और उससे निपटने में चीन के कदमों का अध्ययन करने गए थे। उन्होंने यह भी कहा कि अगर जांचों का दायरा और बढ़ाया जाता है तो इसकी मृत्यु दर घटकर 1 फीसद के आसपास होगी। यह भी सामान्य फ्लू की तुलना में 10 गुना ज्यादा मृत्युकारक होगी। इस तरह अनुमान के मुताबिक प्रति वर्ष दुनियाभर में 2.9 लाख से 6.5 लाख लोगों की मौत का कारण बन सकता है।
दावा: यह अधिक घातक तनाव में बदल रहा है
हकीकत: समय के साथ सभी वायरस म्यूटेट करते हैं, कोविड-19 का वायरस भी इनसे जुदा नहीं है। एक वायरस कितना घातक हो सकता है और उसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह मानव शरीर में पहुंचकर कितनी तेजी से फैलता है और बार-बार प्रभावी ढंग से इस प्रक्रिया को दोहराता है। यह जरूरी नहीं कि जो वायरस तीव्र गति से लोगों की मृत्यु का कारण बनता है या उन्हें बीमार करता है, वे सबसे खतरनाक होते हैं। कई बार ऐसे वायरस अक्षम हो जाते हैं और उनके संक्रमण की संभावना कम होती है।
चीनी वैज्ञानिकों ने वायरस के अनुवांशिक विश्लेषण के लिए वुहान और अन्य शहरों के 103 मरीजों से नमूना लिया तो दो शाखाएं मिलीं जिसे क्रमश: एल और एस नाम दिया गया। हालांकि इनमें एल हिस्सा ज्यादा प्रचलन में था। नमूनों का करीब 70 फीसद। जबकि वायरस की एस शाखा वायरस के पैतृक संस्करण में पायी गई। इस शोध से साबित होता है कि वायरस की एल शाखा ज्यादा आक्रामक थी।
दावा: संक्रमित के साथ 10 मिनट रहने पर ही आप भी चपेट में आएंगे
हकीकत: फ्लू के लिए कुछ स्वास्थ्य संस्थानों ने गाइडलाइंस दी है जिसके तहत एक्सपोजर को इस तरह से परिभाषित किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति 10 मिनट से छींक या खांस रहा है और आप उससे छह फीट से कम दूरी पर हैं तो आप संक्रमित हो सकते हैं। हालांकि ऐसा भी हो सकता है कम समय के संपर्क या संक्रमित सतह से आप वायरस की चपेट में आ जाएं।