Coronavirus: न्याय प्रक्रिया पर भी कोरोना का कहर, देश की अदालतों में बढ़ेगा मुकदमों का ढेर
बंदी के दौरान लगातार मुकदमे दाखिल हो रहे हैं जबकि निपटाए नहीं जा रहे जिससे अदालतों में मुकदमों का ढेर और बढ़ जाएगा जिसे निपटाना बड़ी चुनौती होगा।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। देश भर की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं। बार-बार यह मुद्दा बनता है, लेकिन हर तरफ लाचारी है। ऐसे में कोरोना ने भी कहर ढा दिया है। न्याय में देरी और बढ़ेगी।
देश की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित
आंकड़ों के मुताबिक अदालतों में लगे मुकदमों के ढेर को खत्म करने के लिए ढांचागत संसाधन के साथ न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की जरूरत बताई गई थी। देश भर की अदालतों में आज की तारीख में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमें लंबित हैं। जिला अदालत का एक जज औसतन एक साल में 746 मुकदमें निपटाता है। अगर कुछ पीछे जाकर आंकड़ो पर निगाह डालें तो मुकदमों के ढेर और उसे निपटाने का गणित समझ आएगा। दिसंबर 2017 में देश की अधीनस्थ अदालतों में कुल 2.87 करोड़ मुकदमें लंबित थे। इसके बाद जनवरी 2018 से लेकर दिसंबर 2018 तक जिला अदालतों में 1.5 करोड़ नये मुकदमें दाखिल हुए। अगर दोनों को मिला दिया जाए तो दिसंबर 2018 में जिला अदालतों में कुल मुकदमों की संख्या 4.37 करोड़ हो जाती है। जनवरी 2018 से लेकर दिसंबर 2018 तक यानी एक साल में कुल 1.33 करोड़ मुकदमे निपटाए गए परिणाम स्वरूप दिसंबर 2018 में कुल बचे लंबित मुकदमों की संख्या 3.04 करोड़ थी।
अधीनस्थ अदालतों में जजों की कमी के चलते मुकदमों के निस्तारण में गिरावट
जिला अदालतों में कुल 22750 जजों के मंजूर पद हैं, लेकिन इस दौरान काम सिर्फ 17891 जजों ने किया बाकी पद खाली थे। आंकड़े बताते हैं कि एक जज ने वर्ष भर में औसतन 746 मुकदमें निपटाए। मुकदमें निपटाने की ये दर 89 फीसद थी और इस दर को सौ फीसद करने के लिए 2279 जजों की और आवश्यकता थी। यानी अगर अधीनस्थ अदालतों में जजों के सभी पद भर दिये जाएं तो मुकदमों की निस्तारण की सौ फीसद दर प्राप्त की जा सकती है, लेकिन बाकी लंबित 3.04 करोड़ मुकदमें अगले पांच साल मे निपटाने के लिए जिला अदालतों में 8152 और जजों की जरूरत है।
लंबित मुकदमों का ढेर खत्म करने के लिए चाहिए आठ हजार से ज्यादा अतिरिक्त जज
मोटे तौर की गई इस गणना से साफ है कि अगर मंजूर पदों पर पूरी क्षमता से काम किया जाए तो हर साल दाखिल होने वाले मुकदमों को निपटाने की सौ फीसद दर तो हासिल हो सकती है, लेकिन लंबित मुकदमों का ढेर इससे नहीं खत्म होगा उसके लिए आठ हजार से ज्यादा अतिरिक्त जज चाहिए होंगे तब भी सारे मुकदमें खत्म होने में पांच साल लगेंगे।
लॉकडाउन से मुकदमों की सुनवाई प्रभावित
इस स्थिति की अगर आज की स्थिति से तुलना की जाए तो पूरे देश में मुकदमों की सुनवाई पूर्ण बंदी से पहले से ही लगभग रुकी हुई थी। अदालतें सिर्फ अर्जेन्ट मामले सुन रही थीं, लेकिन उस समय भी मुकदमे दाखिल होने बंद नहीं हुए थे फिजिकल तौर पर मुकदमे दाखिल होना लॉकडाउन के बाद प्रभावित हुआ है।
बंदी के दौरान मुकदमे दाखिल हो रहे हैं, निपटाए नहीं जा रहे, मुकदमों का बढ़ेगा बोझ
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट सहित बहुत सी अदालतों में ईफाइलिंग की सुविधा है यानी बंदी के दौरान भी लगातार मुकदमे दाखिल हो रहे हैं जबकि निपटाए नहीं जा रहे जिसका नतीजा होगा कि अदालतों में मुकदमों का ढेर और बढ़ जाएगा जिसे निपटाना बड़ी चुनौती होगा। कोराना का असर जहां आर्थिक और अन्य पहलुओं पर पड़ेगा वहीं न्याय की रफ्तार पर भी पड़ेगा।
कहां कितने मुकदमे
सुप्रीम कोर्ट 60,469
उच्च न्यायालयों 4643373
जिला अदालतों 32182309
जिला अदालतों में कुल लंबित मुकदमों में 10166396 मामले एक साल से लंबित और 81343 मुकदमें 30 साल से लंबित हैं।