Move to Jagran APP

COP26: अतीत के आईने से झांकती सुरक्षित भविष्य की तस्वीर, नेट जीरो से बड़ी सफलता की है आस

भारत जैसे विकासशील और विशाल देश से इस प्रकार की घोषणा ने काप26 में जैसे एक नई जान फूंक की। कई अन्य देशों को प्रेरणा मिली जबकि कई अन्य बड़े देशों को पर्यावरण संतुलन के लिए कदम उठाने की बात सोचने पर विवश होना पड़ा।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Sun, 14 Nov 2021 09:18 PM (IST)Updated: Sun, 14 Nov 2021 09:18 PM (IST)
COP26: अतीत के आईने से झांकती सुरक्षित भविष्य की तस्वीर, नेट जीरो से बड़ी सफलता की है आस
काप26 कांफ्रेंस में 197 देशों के बीच हुई चर्चा

नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। ग्लासगो शहर में कांफ्रेंस आफ पार्टीज(काप)26 एक अतिरिक्त दिन विमर्श करके समाप्त हो चुकी है। पूरी दुनिया की निगाहें इस कांफ्रेंस पर लगी थीं। वजह है तेजी से गर्म होती धरती के पर्यावरण में हो रहा बदलाव। कहीं बेमौसम बारिश, कहीं जानलेवा गर्मी तो कहीं डरा देने वाली बर्फबारी। संयुक्त राष्ट्र की काप26 कांफ्रेंस का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर लगाम लगाना था, 197 देशों के बीच इस पर चर्चा हुई, बहस हुई, विमर्श हुआ और अंतत: ग्लासगो समझौते की नींव पड़ी। इसके पहले 1997 में क्योटो और 2015 में पेरिस समझौते हुए थे। काप26 के संदर्भ में समझना जरूरी है कि आखिर इस सम्मेलन से क्या हासिल हुआ, क्या रह गया और आने वाले वर्षो में क्या लक्ष्य होंगे और क्या चुनौतियां सामने आ सकती हैं। आइए इस एक्सप्लेनर से समझें कि काप26 की उपलब्धियां और निहितार्थ क्या हैं:

loksabha election banner

अब पेरिस से आगे की बात

वर्ष 2015 में पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर महत्वपूर्ण समझौता हुआ था। अब इसकी जगह ग्लासगो समझौता लेगा। पेरिस समझौते ने विश्व को जलवायु परिवर्तन से निपटने का खाका दिया था। अब छह साल बाद ग्लासगो ने तमान खींचतान के बाद आखिरकार धरती को बचाने की मुहिम तेज और सही दिशा में करने के लिए रास्ता दिखाया है। धरती मां के बड़े (विकसित देश), मंझले (विकासशील देश) व छोटे (पिछड़े देश) सभी बेटों को एकजुट करने का काम काप26 ने किया है। मतभेद के बावजूद, नोकझोंक व शिकायतों के बाद भी आखिरकार धरती मां के सभी बेटे पर्यावरण को बचाने के अभियान की गंभीरता, जरूरत और शीघ्रता को लेकर राजी हो गए हैं।

धीमी ही सही शुरुआत तो है

माना जा रहा था कि ग्लासगो में जब विश्व के देशों के राष्ट्राध्यक्ष, नेता और फिर उनके प्रतिनिधि के तौर मंत्री व अधिकारी बैठेंगे तो कुछ 'कंक्रीट' हल निकलेगा। हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ, लेकिन फिर भी यह कहा जा सकता है कि कांफ्रेंस बिना किसी परिणाम के समाप्त नहीं हुई। अपेक्षा से कम, लेकिन धीमी शुरुआत का संकल्प काप26 में ले लिया गया है। लीड्स विश्वविद्यालय व युनिवर्सिटी कालेज लंदन (यूसीएल) में ग्लोबल चेंज साइंस के प्रोफेसर सिमोन लुइस और यूसीएल अर्थ सिस्टम साइंस के प्रोफेसर मार्क मैसलिन का कहना है कि ग्लासगो एक निर्णायक फैसले वाली कांफ्रेस तो नहीं रही लेकिन आगे बढ़ने का साफ रास्ता जरूर दिखाती है। मेजबान के तौर पर यूनाइटेड किंगडम ग्लोबल वार्मिग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के आंकड़े पर रोक लेने का एजेंडा जीवित रखना चाहती थी, लेकिन काप26 के अंतिम दिन हुए समझौते से साफ है कि फिलहाल 1.5 डिग्री वाली बात मुख्य एजेंडा नहीं है। ग्लासगो में जिस तरह से देशों ने उत्सर्जन में कमी की बातें की, उससे साफ है कि ग्लोबल वार्मिग को सीमित रखने का आंकड़ा 1.5 नहीं 2.4 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहेगा। पेरिस में ग्लोबल वार्मिग को 1.5 डिग्री सेल्यिस पर सीमित रखने का समझौता हुआ था। पेरिस में कहा गया था कि विश्व को रहने लायक बना रहने के लिए धरती का तापमान दो डिग्री से अधिक नहीं बढ़ने देना चाहिए।

नेट जीरो से बड़ी सफलता की आस

काप26 में कई देशों ने नेट जीरो उत्सर्जन के लिए दीर्घ अवधि के लक्ष्यों की घोषणा की। इनमें भारत भी शामिल था जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 20270 तक नेट जीरो लक्ष्य पाने की घोषणा की। भारत जैसे विकासशील और विशाल देश से इस प्रकार की घोषणा ने काप26 में जैसे एक नई जान फूंक की। कई अन्य देशों को प्रेरणा मिली जबकि कई अन्य बड़े देशों को पर्यावरण संतुलन के लिए कदम उठाने की बात सोचने पर विवश होना पड़ा। भारत ने अगले दस साल में नवीकरणीय ऊर्जा के अधिकतम प्रयोग से इस दिशा में तेज शुरुआत की बात कही। इससे 2030 तक भारत का कार्बन उत्सर्जन एक खरब टन तक कम हो जाएगा। अभी यह 2.5 खरब टन है। प्रभाव यह रहा कि विश्व की जीडीपी के नब्बे फीसदी वाले देशों ने इस सदी के मध्य तक नेट जीरो उत्सर्जन तक पहुंचने की शपथ ली है। यह बड़ी बात है जिसकी शुरुआत भारत ने की। हालांकि एक बड़ी चिंता यह है कि नेट जीरो उत्सर्जन के दीर्घावधि लक्ष्यों और इस दशक में उत्सर्जन को कम करने की योजनाओं में बड़ा अंतर है।

कथनी है, करनी नहीं

ग्लासगो समझौता एक और बात की तरफ इंगित करता है, जयवायु के लिए देशों की योजना। काप की भाषा में इसे नेशनल डिटरमाइंड कांट्रिब्यूशंस (एनडीसी) पुकारा जाता है और ये 1.5 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिग की हकीकत से कोसों दूर हैं। अगर अगले साल देश एनडीसी में बदलाव करते हैं तो सुखद होगा। दरअसल पेरिस समझौते के तहत हर पांच साल में देशों को नई जलवायु योजना बनाने की बात कही गई थी और इसी कारण ग्लासगो बहुत अहम बैठक थी। अगले साल इन योजनाओं में बदलाव से ग्लोबल वार्मिग से लड़ाई मानव जाति के नियंत्रण में बनी रहेगी, भले ही धीमी गति से।

जीवाश्म ईंधन पर पहली बार बात

काप26 की बड़ी सफलता रही जीवाश्म ईंधन पर कांफ्रेंस में चर्चा होना और समझौते में इसका जिक्र होना। कोयले के प्रयोग और जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी को समाप्त करने के मुद्दे पर भारत की आपत्ति के बाद इसे 'फेज आउट' से 'फेज डाउन' कर दिया गया। कुछ देशों ने आपत्ति की, लेकिन भारत समेत विकासशील देशों की बात भी महत्वपूर्ण रही कि विकास को भी देखना होगा। पूर्व में सऊदी अरब व अन्य देश जीवाश्म ईंधन के जिक्र को समाप्त काप से हटवा देते थे। इसी संदर्भ में कार्बन बाजार के नियमों से जुड़ी कई बड़ी कमियां पेरिस समझौते में खत्म कर दी गई थीं, लेकिन कार्बन बाजार वाले देशों और कंपनियों के पास अब भी खेल करने के रास्ते खुले हुए हैं। काप26 के समझौते के इतर भी देशों को अधिक स्पष्ट व सख्त नियम बनाने होंगे।

धनी देश अब भी गैर जिम्मेदार

काप26 में एक चीज में बदलाव नहीं आया और वह है विश्व के धनी देशों का गैर जिम्मेदार रवैया। विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जल स्तर में परिवर्तन और चक्रवात से होने वाले नुकसान की भरपाई की मांग करते रहे हैं, लेकिन धनी देशों ने उनकी उपेक्षा ही की है। अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की अगुआई में विकसित देशों ने इस प्रकार के नुकसान की जिम्मेदारी लेने से इन्कार करते हुए 'ग्लासगो हानि एवं क्षति सुविधा' बनाने के नए विचार को वीटो करते हुए खारिज कर दिया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.