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देशभर में नए निजी विद्यालय के लिए सहकारिता माडल को अपनाना अनिवार्य बनाया जाए

Online Education देशभर में आनलाइन पढ़ाई जीवन का हिस्सा बन गई है। हालांकि कोरोना काल में पढ़ाई का यह विकल्प अवश्य प्रयोग में आया लेकिन इसके लंबे समय तक जारी रहने के दुष्परिणाम भी अब सामने आ रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 26 Oct 2021 12:02 PM (IST)Updated: Tue, 26 Oct 2021 12:02 PM (IST)
देशभर में नए निजी विद्यालय के लिए सहकारिता माडल को अपनाना अनिवार्य बनाया जाए
देशभर में विकसित हो शिक्षा का सहकारी माडल

राकेश पांडे। मनुष्य के विकास की पहली सीढ़ी शिक्षा को माना जाता है। बेहतर शिक्षा व्यवस्था की स्थापना से न केवल मानव को उन्नत बनाया जा सकता है, बल्कि मानवीय जीवन को भी बेहतर और सुसंस्कृत बनाया जा सकता है। शिक्षा की शुरुआत प्राथमिक शिक्षा से होती है और इसकी मजबूत बुनियाद पर ही उच्चतर और तकनीकी शिक्षा के महल को खड़ा किया जा सकता है। कोरोना काल में प्राथमिक समेत उच्चतर शिक्षा पूरी तरह बाधित रही है। इन परिस्थितियों के बीच सहकारिता के आधार पर शिक्षण संस्थानों के विकास और संचालन की दिशा में सोचा जाना चाहिए। साथ ही इस बारे में सकारात्मक कदम बढ़ाने की दिशा में सार्थक पहल करने की जरूरत है।

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अनेक राज्य सरकारों ने शिक्षण संस्थानों में जनभागीदारी और सहकारिता को सुनिश्चित करने के मद्देनजर विद्यालय स्तर पर विद्यालय शिक्षा संचालन समिति के गठन का प्रविधान किया है, किंतु यह स्वयं में अक्षम होने के साथ ही कारगर व्यवस्था नहीं है। इससे लोभवश विद्यालयों में गैर जिम्मेदार लोगों का हस्तक्षेप बढ़ा है जो विद्यालयी शिक्षा को सुदृढ़ करने की जगह उसे निर्बल बना रहा है। यदि बिहार के संदर्भ में देखें तो शिक्षण संस्थानों के आरंभ का आधार सहकारिता और परस्पर भागीदारी रहा है।

किसी ने अपनी जमीन दे दी, किसी ने विद्यालय निर्माण में मदद की, तो किसी ने शिक्षकों को गांव में रहने की व्यवस्था कर दी, तो किसी ने उनके खानपान की व्यवस्था कर दी। ग्रामीणों की सहभागिता द्वारा निर्मित संस्थानिक भवन और स्थापित संस्थान उनके ममत्व से जुड़े होते थे। बच्चों के अध्यापन के लिए गांव की प्रबुद्ध जनता सुयोग्य शिक्षकों का चुनाव करती थी। शिक्षकों को वेतन देने के लिए ग्रामीण जनता आसपास के गांवों से सहयोग राशि के तौर पर अनुदान की मांग करती थी। पिछली सदी के सातवें दशक तक बिहार में शिक्षण व्यवस्था परस्पर सहभागिता के आधार पर संचालित होती रही। इसकी वजह से शैक्षणिक संस्थाओं के संचालन व उनकी शिक्षा गुणवत्ता, पारदर्शिता और लोगों की भागीदारी की स्थिति काफी उन्न्त थी।

कोरोना के दौर में बहुत कुछ बदल गया है। अधिकांश लोगों की आर्थिक गतिविधियों पर व्यापक असर पड़ा है जिससे उनकी आमदनी प्रभावित हुई है। लेकिन इस काल में भी अधिकांश निजी विद्यालयों द्वारा शुल्क में किसी तरह की छूट नहीं दी गई। ऐसी स्थिति में समाज के मध्यमवर्गीय परिवारों की तरफ से आवाज उठने लगी है कि शिक्षा के क्षेत्र में सहकारिता आधारित व्यवस्था की गुंजाइश की तलाश की जाए। निजी विद्यालयों की प्रबंधन समितियों में सरकार, अभिभावकों और समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लोगों को शामिल किया जाए जो शिक्षा के सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के आदर्श को समाहित करता है। हमारे संविधान में भी सभी के लिए नि:शुल्क और अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने की बात कही गई है।

ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में सहकारी और परस्पर भागीदारी की व्यवस्था के साथ शैक्षणिक संस्थाओं के संचालन को सहकारिता के अधीन करने की व्यवस्था की पहल होनी चाहिए, ताकि शिक्षा उच्च कोटि के सुरक्षित आमदनी और मुनाफादायी व्यवस्था से निकलकर आमजन के बीच पहुंच को सुनिश्चित कर सके। इसके लिए ऐसे तमाम निजी विद्यालयों को सहकारिता मंत्रलय द्वारा अधिसूचित कर जनभागीदारी और सहभागिता के आधार पर संचालित करने की दिशा में पहल की जानी चाहिए जिनका रवैया कोरोना आपदा काल में कल्याणकारी नहीं दिखा है। कम से कम इतना तो किया ही जाना चाहिए कि देशभर में अब जो भी नए निजी विद्यालय शुरू किए जाएं, उनके लिए सहकारिता माडल को अपनाना अनिवार्य बनाया जाए।

[शिक्षक]


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