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उपभोक्ता बोले- विज्ञापन में माइलेज ज्यादा दिखाया और गाड़ी ने दिया कम, SC का डीलर के पक्ष में फैसला, पढ़ें- टिप्पणी

शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में दावा किया कि फोर्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने 31.4 किमी प्रति लीटर के औसत माइलेज का दावा करते हुए अखबारों में एक भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित किया था जबकि गाड़ी का वास्तविक माइलेज 15-16 किमी प्रति लीटर था।

By Nitin AroraEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 10:22 AM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 10:22 AM (IST)
उपभोक्ता बोले- विज्ञापन में माइलेज ज्यादा दिखाया और गाड़ी ने दिया कम, SC का डीलर के पक्ष में फैसला, पढ़ें- टिप्पणी
उपभोक्ता बोले- विज्ञापन में माइलेज ज्यादा दिखाया और गाड़ी ने दिया कम, SC का डीलर के पक्ष में फैसला

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के एक आदेश को रद कर दिया, जिसने एक कार डीलर को एक भ्रामक विज्ञापन को लेकर सेवा में कमी के चलते 7.43 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि डीलरों का हित वाहन निर्माता से अलग नहीं है।

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शिकायतकर्ता ने देहरादून स्थित एबी मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड से फोर्ड फिएस्टा (डीजल) कार खरीदी थी। उन्होंने अपनी शिकायत में दावा किया कि फोर्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने 31.4 किमी प्रति लीटर के औसत माइलेज का दावा करते हुए अखबारों में एक भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित किया था, जबकि गाड़ी का वास्तविक माइलेज 15-16 किमी प्रति लीटर था।

उन्होंने जिला उपभोक्ता फोरम में एक शिकायत दर्ज की, जिस पर सुनवाई के बाद डीलर निर्माता को वाहन की वापसी कर उन्हें 7,43,200 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। इसके अलावा मुकदमे की लागत के रूप में 10,000 रुपये की राशि देने का आदेश भी दिया गया। इसके बाद फोर्ड इंडिया ने राज्य आयोग में अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। बाद में एनसीडीआरसी ने पुनरीक्षण याचिका को मंजूर कर लिया।

शीर्ष अदालत एनसीडीआरसी के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा, एनसीडीआरसी ने रिकार्ड किया है कि कथित भ्रामक विज्ञापन 20 जून, 2007 को जारी हुआ था जबकि वाहन नौ मार्च, 2007 को खरीदा गया था। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उपभोक्ता विज्ञापन से भ्रमित हुआ था। चूंकि डीलरों का हित वाहन निर्माता से अलग नहीं है, इसलिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ता मंचों द्वारा पारित आदेश उन डीलरों के खिलाफ कायम नहीं रह सकता, जिनका हित वाहन निर्माता के साथ जुड़ा है।

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