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धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन करना संविधान प्रदत्त अधिकार : आर्ट आफ लिविंग

संवैधानिक अधिकारों से जुड़े मामलों में केवल सुप्रीमकोर्ट या हाईकोर्टो में ही विचार हो सकता है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Tue, 31 Oct 2017 09:23 PM (IST)Updated: Tue, 31 Oct 2017 09:23 PM (IST)
धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन करना संविधान प्रदत्त अधिकार : आर्ट आफ लिविंग
धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन करना संविधान प्रदत्त अधिकार : आर्ट आफ लिविंग

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आध्यात्मिकगुरु श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट आफ लिविंग ने एनजीटी के समक्ष कहा है कि धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों पर रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि ये आयोजन 'गरिमा के साथ रहने' के संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का हिस्सा हैं।

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आर्ट आफ लिविंग (एओएल) की ओर से यह तर्क पिछले साल यमुना तट पर आयोजित सांस्कृतिक समारोह से पर्यावरण को हुए नुकसान पर एनजीटी द्वारा जुर्माना लगाए जाने के मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया। एओएल की ओर से पेश याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस तरह के आयोजनों को संविधान के अनुच्छेद 21 में उल्लिखित जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण के तहत गारंटी प्रदान की गई है। ट्रिब्यूनल ने इस अधिकार को बाधित किया है।

याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अन्य कई अनुच्छेदों का भी उल्लेख करते हुए कहा कि कुंभ, छठ अथवा एओएल के विश्र्व सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन करना और उनमें भाग लेना उनका अधिकार है। पर्यावरण के नाम पर इन आयोजनों पर औचित्यपूर्ण अंकुश ही लगाए जा सकते हैं। संवैधानिक अधिकारों से जुड़े मामलों में केवल सुप्रीमकोर्ट या हाईकोर्टो में ही विचार हो सकता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट 2010 एनजीटी को इस तरह का अधिकार नहीं देता।

एनजीटी के आदेश के खिलाफ आर्ट आफ लिविंग की ओर से उक्त याचिकाएं प्राजन्य चौधरी, अनिल कपूर तथा आनंद माथुर की ओर से दाखिल की गई थीं। इनमें एनजीटी द्वारा यमुना के डूब क्षेत्र में मार्च 2016 में आयोजित तीन दिवसीय सांस्कृतिक उत्सव के आयोजन पर सवाल उठाने के एनजीटी के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी गई है।

एओएल के वकील अनिरुद्ध शर्मा ने कहा कि संविधान व्यक्तियों को विश्व सांस्कृतिक उत्सव जैसे आयोजन करने का अधिकार प्रदान करता है। इन पर किसी भी तरह का प्रतिबंध या अंकुश उस अधिकार का उल्लंघन है। हालांकि एओएल की ओर से याचिका वकील पीयूष सिंह तथा नितेश रंजन की ओर से दाखिल की गई थी।

मामले की अगली सुनवाई 2 नवंबर को होगी।

पिछली सुनवाई में एओएल ने जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर की अध्यक्षता वाली समिति की ओर से पेश सेटेलाइट इमेज पर यह कहते हुए संदेह जताया था कि उपग्रह से ली गई तस्वीरों से यमुना के किनारे पर्यावरण को हुई क्षति का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता। समिति ने 28 जुलाई को दी रिपोर्ट में गूगल की 15 सितंबर, 2015 की सेटेलाइट तस्वीर के आधार पर आयोजन के बाद यमुना तट की स्थिति की तुलना की थी।

एओएल का कहना था कि 2000-2015 के दौरान की गूगल की अनेक सेटेलाइट तस्वीरें उपलब्ध हैं। लेकिन समिति ने केवल उस तस्वीर को आधार बनाया जो मानसून चरम दिनों में ली गई थी। वर्ष के उन दिनों में भारी बारिश हुई थी। ऐसे में उस तस्वीर को आधार बनाना सवाल खड़े करता है। विशेषज्ञ समिति ने स्वयं 28 नवंबर 2016 की रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि आयोजन से पहले उसे आयोजन स्थल की स्थिति के बारे में कुछ पता नहीं था। विशेषज्ञ समिति ने यमुना की पर्यावरणीय स्थिति बहाल करने के लिए एओएल पर 42.02 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने का सुझाव एनजीटी को दिया था। एओएल ने इसका विरोध किया था।

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