संविधान पीठ समलैंगिक संबंधों सहित चार अहम मामलों पर करेगी सुनवाई
समलैंगिक यौन संबंधों सहित चार प्रमुख मामलों पर संविधान पीठ सुनवाई करेगी। समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखने पर होगी सुनवाई।
नई दिल्ली (प्रेट्र)। समलैंगिक यौन संबंधों सहित चार प्रमुख मामलों को सुनने के लिए संविधान पीठ का पुनर्गठन किया गया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली संविधान पीठ में आरएफ नरीमन, एएम खानविल्कर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा होंगी। सभी मामलों पर 10 जुलाई से सुनवाई शुरू होगी। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखने का फैसला बहाल कर दिया था।
दरअसल, वर्ष 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने दरकिनार कर दिया था। इस पर समलैंगिक संबंधों का समर्थन करने वाले समुदायों ने फैसले की पुनर्समीक्षा करने के लिए याचिका दायर करने के साथ ही क्यूरेटिव याचिका भी दायर की थी।
क्यूरेटिव (उपचारात्मक) याचिका की सुनवाई नहीं होने पर खुली अदालत में सुनवाई के संबध में याचिका दायर की गई थी। इसको सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी थी। इसके बाद धारा-377 को अपराध की श्रेणी में नहीं रखने के संबंध में कई और याचिकाएं दायर की गई।
क्या होती है धारा-377
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 अप्राकृतिक अपराध को संदर्भित करती है और कहती है कि जो भी स्वेच्छा से किसी भी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है, उसे आजीवन कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई जा सकती है।
इन मामलों को भी सुनेगी संविधान पीठ
यह पीठ समलैंगिक संबंधों के अलावा सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक, व्यभिचार पर सिर्फ पुरुष को दोषी ठहराने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा-497 और किसी भी जनप्रतिनिधि को सिर्फ चार्जशीट फाइल होते ही अयोग्य करार देने संबंधी मामले पर भी सुनवाई करेगी।