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थैलेसीमिया पर राष्ट्रीय नीति की जरूरत पर हो रहा है विचार

वकील रीपक कंसल ने जनहित याचिका दाखिल कर थैलेसीमिया रोगियों की दिक्कतें बताते हुए उनके इलाज का उचित प्रबंध किये जाने की मांग की है।

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 25 Sep 2017 09:02 AM (IST)Updated: Mon, 25 Sep 2017 09:02 AM (IST)
थैलेसीमिया पर राष्ट्रीय नीति की जरूरत पर हो रहा है विचार
थैलेसीमिया पर राष्ट्रीय नीति की जरूरत पर हो रहा है विचार

नई दिल्ली, माला दीक्षित। थैलेसीमिया पर राष्ट्रीय नीति बनाने पर विचार हो रहा है। सरकार ने राष्ट्रीय नीति बनाने की जरूरत पर विचार करने के लिए 12 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। ये समिति नीति और दिशा निर्देशों का ड्राफ्ट तैयार करेगी और चार महीने में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी।

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सरकार ने इस बात की जानकारी थैलेसेमिया रोग की रोकथाम और इलाज के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने ताजा हलफनामे में दी है। वकील रीपक कंसल ने जनहित याचिका दाखिल कर थैलेसीमिया रोगियों की दिक्कतें बताते हुए उनके इलाज का उचित प्रबंध किये जाने की मांग की है।

सरकार ने कहा है कि गत माह 8 अगस्त को गंगा राम अस्पताल के जेनरिक विभाग के मुखिया डाक्टर आईसी वर्मा की अध्यक्षता में 12 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है। डाक्टर वर्मा पूर्व में एम्स के हीमैटोलाजी विभाग के मुखिया रह चुके हैं। इसके अलावा एनआइआइएच की निदेशक कंजाक्षा घोष, टीएमसी कोलकाता के निदेशक डाक्टर मम्मन चांडी, सीएमसी वैलूर के हीमैटोलाजी के मुखिया डाक्टर विक्रम मैथ्यू, संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस की प्रोफेसर डा. सोनिया नित्यानंद, एम्स दिल्ली में हेमैटोलॉजी की मुखिया प्रोफेसर रेनू सक्सेना, प्रोफेसर अरुण सिंह, डाक्टर आरके जैना, डाक्टर तूलिका सेठ, डाक्टर मीनू बाजपेई, डाक्टर वीपी चौधरी, तथा विनिता श्रीवास्तव समिति में सदस्य हैं।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि नेशनल हेल्थ मिशन 2016 में हीमोग्लोबिन, थैलेसीमिया, रक्ताल्पता संबंधी बीमारियों की रोकथाम के लिए समग्र दिशानिर्देश हैं। राज्यों की ओर से आये प्रस्तावों के मुताबिक, केंद्र फंड मुहैया कराता है। इन दिशानिर्देशों में गर्भवती महिलाओं की जांच और कक्षा आठ के सभी बच्चों की एक बार रक्ताल्पता की जांच शामिल है। राज्यों को मदद देने के अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय की थैलेसीमिया पीडि़त गरीब बच्चों को मुफ्त में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की योजना है। थैलेसीमिया की गंभीरता को देखते हुए इसे कानून 2016 के तहत विकलांगता में शामिल किया गया है।

कहा है कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है इसलिए राज्यों का दायित्व है कि वे ऐसे रोगियों को इलाज उपलब्ध कराएं। केंद्र ने कहा है कि बीमारियों को लेकर राज्यों की अपनी प्राथमिकताएं होती हैं। किसी की प्राथमिकता में थैलेसेमिया आता है किसी में नहीं आता। दुनिया की दस प्रमुख बीमारियां जिससे सबसे ज्यादा मौतें होती हैं, उनमें थैलेसीमिया नहीं है। केंद्र नेशनल हेल्थ मिशन के तहत राज्यों को फंड देता है। पिछले चार सालों में 195 करोड़ रुपये राज्यों को दिये गये हैं। रोगों में रक्त संबंधी बीमारियां जिसमें थैलेसेमिया भी शामिल है, आती हैं। सरकार का कहना है कि वह कामन हेल्थ कवरेज देती है किसी रोग विशेष के लिए फंड देना मुश्किल होगा।

गत शुक्रवार को इस मामले पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की पीठ के समक्ष सुनवाई हुई थी, जिसमें सरकार की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने थैलेसीमिया के इलाज और सुविधाओं के बारे में किये जा रहे उपायों का ब्योरा देने वाले इस हलफनामे का जिक्र किया था। कोर्ट ने सुनवाई 23 अक्टूबर तक टालते हुए सरकार के जवाब पर याचिकाकर्ता को सुझाव देने को कहा है। याचिका में कहा गया है कि थैलेसेमिया का इलाज महंगा है और दवाइयां नहीं मिलती, इसलिए हर राज्य के प्रत्‍येक जिले में इसके इलाज का प्रबंध हो और दवाइयां उपलब्ध कराई जाएं।

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