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कांग्रेस के लिए सत्ता पाना अब भी दूर की कौड़ी, पार्टी को नवनिर्माण की जरूरत

कांग्रेस के लिए सत्ता अभी दूर की कौड़ी है, पर दरकती नींव को यदि मजबूती देने में कांग्रेस यहां से आगे बढ़ती है तो यह उसकी सबसे बड़ी सफलता होगी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 20 Mar 2018 10:44 AM (IST)Updated: Tue, 20 Mar 2018 10:44 AM (IST)
कांग्रेस के लिए सत्ता पाना अब भी दूर की कौड़ी, पार्टी को नवनिर्माण की जरूरत
कांग्रेस के लिए सत्ता पाना अब भी दूर की कौड़ी, पार्टी को नवनिर्माण की जरूरत

नई दिल्ली [सुशील कुमार सिंह] कांग्रेस ने 2019 में भाजपा से मुकाबले के लिए शीघ्र यूपीए-3 खड़ा करने के संकेत दिए हैं। गौरतलब है कि जब-जब कांग्रेस भारत की राजनीति से दरकिनार हुई है तब-तब इस हथियार का प्रयोग किया है। 2004 में 14वीं लोकसभा चुनाव में राजग के खिलाफ कांग्रेस ने 145 सदस्यों समेत वामदलों व अन्य को मिलाकर डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए-1 के माध्यम से सत्ता को कब्जाया था। स्पष्ट है कि देश की जनता सत्ता से बेदखल करने के लिए वोट देने में कहीं अधिक चैकन्नी रही है और यह बात कांग्रेस से बेहतर शायद ही कोई जानता हो। भले ही विरोधी एकता के अभी आसार दूर-दूर तक न दिख रहे हों, पर कांग्रेस समान विचारधारा वाले दलों की व्यावहारिकता को देखते हुए इस दिशा में पहल कर चुकी है और स्वयं की ताकत और रणनीति बेहतर करने के लिए भी कदम बढ़ा चुकी है। सरकारें हमेशा यह समझती हैं कि कमजोर विरोधी उनके लिए कैसे नासूर बन सकते हैं।

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चार राज्यों में सिमटी कांग्रेस

ध्यान रहे सत्ताधारी जब चुनाव में जाते हैं तो जनता को अपने पांच साल के कार्यो से संतुष्ट करना होता है, जबकि विरोधी उनकी खामियों को उभारने पर पूरा दम लगाते हैं। जाहिर है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में ऐसा ही पलटवार कांग्रेस समेत सभी विरोधी कर सकते हैं। ऐसे में मोदी सरकार को अपना रिपोर्ट कार्ड अव्वल दर्जे का बनाना ही होगा, क्योंकि तब बात मात्र बातों से नहीं बनेगी, वायदों और इरादों को जताने से भी नहीं बनेगी, बनेगी तो केवल हकीकत दिखाने से। कांग्रेस का परचम कभी पूरे देश में लहराता था अब वह महज 4 राज्यों में सिमट कर रह गई है। 2014 से चुनाव-दर-चुनाव तमाम दमखम के साथ कांग्रेस ने उम्मीद जगाने का काम किया, पर विजेता भाजपा बनती रही।

कांग्रेस धराशायी

70 साल के स्वतंत्र भारत के इतिहास में लगभग छह दशक सत्ता की चाकरी करने वाली कांग्रेस इस तरह धराशायी होगी किसी की कल्पना में नहीं रहा होगा। सिलसिलेवार तरीके से भाजपा कांग्रेस शासित राज्यों को अपने कब्जे में करते हुए उसके लिए इन दिनों मुसीबत की वजह बन गई है। भाजपा से पार पाने को लेकर कांग्रेस की ओर से रणनीति भी गढ़ी जा रही है साथ ही कार्यकर्ताओं में जोश भी भरा जा रहा है। बीते 13 मार्च को जहां यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भाजपा विरोधियों को डिनर डिप्लोमेसी के माध्यम से एकजुट होने का प्लेटफॉर्म तैयार करने की कोशिश की तो वहीं दिल्ली में कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन के माध्यम से तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को सत्ता के विरुद्ध डटकर मुकाबला करने की सीख भी दी गई। गौरतलब है कि कांग्रेस महाधिवेशन में राहुल गांधी बदलाव का संदेश देने में कितना सफल रहे हैं इसका पता तो आगामी चुनाव में चलेगा, पर इस अधिवेशन के माध्यम से यह संकेत जरूर दे दिया गया है कि कांग्रेस देश की पुरानी पार्टी है, भले ही ताकत घटी हो, पर उसमें हौसला अभी बाकी है।

दरकती नींव को मजबूती देने की कवायद

हालांकि कांग्रेस के लिए सत्ता अभी दूर की कौड़ी है, पर दरकती नींव को यदि मजबूती देने में कांग्रेस यहां से आगे बढ़ती है तो यह उसकी सबसे बड़ी सफलता होगी। जिस तरह चुनाव में कांग्रेस का घर टूटा है और वह पूरे भारत में सिमटी है उससे तो यही लगता है कि नवनिर्माण की उसे कहीं अधिक जरूरत है। महाधिवेशन उसी दिशा में उठाया गया कदम हो सकता है। जिस रूप में कांग्रेस डैमेज हुई है उससे यह भी साफ है कि अकेले न तो वह आम चुनाव मैनेज कर पाएगी और न ही दमखम से भरी भाजपा को चुनौती दे पाएगी। शायद यही वजह है कि सियासी प्रयोगशाला में कांग्रेस अन्य दलों को भी साथ लेने तथा खुद की भी जमीन मजबूत करने की कोशिश कर रही है। फिलहाल बदले तेवर और राहुल गांधी की अध्यक्षता में नई-नवेली कांग्रेस किस किनारे लगेगी यह 2019 के चुनाव में ही पुख्ता हो पाएगा। अभी तक के नतीजे तो कांग्रेस की नींव हिलाने वाले ही रहे हैं।

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