Move to Jagran APP

हार के बाद कांग्रेस में हड़कंप

चार राज्यों के नतीजों के बाद कांग्रेस में अब शीर्ष स्तर तक हड़कंप है। पार्टी में बदलाव की कवायद में जुटे उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व और उनकी कार्यशैली को लेकर सवाल मुखर होने लगे हैं। आम चुनावों से पहले पूरी तरह राहुल के हाथ में पार्टी की कमान जाने तैयारियों को भी करारा झटका लगा है। अभी तक पूरा खुला

By Edited By: Published: Mon, 09 Dec 2013 11:48 PM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2013 12:14 AM (IST)
हार के बाद कांग्रेस में हड़कंप

राजकिशोर, नई दिल्ली। चार राज्यों के नतीजों के बाद कांग्रेस में अब शीर्ष स्तर तक हड़कंप है। पार्टी में बदलाव की कवायद में जुटे उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व और उनकी कार्यशैली को लेकर सवाल मुखर होने लगे हैं। आम चुनावों से पहले पूरी तरह राहुल के हाथ में पार्टी की कमान जाने तैयारियों को भी करारा झटका लगा है। अभी तक पूरा खुला हाथ होने के बावजूद राहुल गांधी कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाने में नाकाम रहे कि पार्टी उनके काबू में है। यही कारण है कि खुद को इन विधानसभा चुनावों से बिल्कुल अलग रखे रहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनकी पुरानी टीम को राहुल के बचाव के लिए खुद मैदान में उतरना पड़ा है।

loksabha election banner

विधानसभा चुनाव से संबंधित अन्य खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सोमवार को सोनिया के आवास पर नतीजों को लेकर हुई मंथन बैठक में भी राहुल गांधी के बचाव के रास्ते तलाशे जाते रहे। बैठक में मौजूद सभी महासचिवों और पदाधिकारियों को इन परिणामों को स्थानीय मुद्दों का असर बताने और सामूहिक नेतृत्व पर ही फोकस रखने को कहा गया। अब संकेत हैं कि बेहद तेजी से संगठन में पकड़ बनाने की टीम राहुल की कवायद भी फिलहाल ठंडी पड़ सकती है और 'ओल्ड गार्ड' यानी टीम सोनिया फिर से आम चुनावों के पहले फ्रंट सीट पर होगी।

सोनिया के सक्रिय होने के संकेत तभी नजर आ गए थे, जब हार के नतीजों के बाद मीडिया के सामने राहुल अपनी मां के पीछे खड़े दिखे थे। रविवार को लंबे अरसे बाद सोनिया के विश्वस्त सलाहकार और पुराने नेता भी नतीजों से बचाव के लिए मीडिया के सामने आए थे। इनमें अरसे से नहीं दिख रहे अहमद पटेल और जनार्दन द्विवेदी जैसे नेता शामिल थे। उत्तर प्रदेश चुनावों में भी हार के बाद सोनिया ही मीडिया का सामना करने आईं थीं और पूरा दोष कांग्रेस संगठन और नेताओं पर मढ़ा था। उसके बाद राहुल गांधी की कांग्रेस में उपाध्यक्ष पद पर जोर-शोर से ताजपोशी कर पार्टी में जोश भरने की कोशिश की गई थी।

साल की शुरुआत में पूरे धूम-धड़ाके से उपाध्यक्ष बनाए गए राहुल गांधी अब 2013 खत्म होते-होते अपनों की ही नजरों से उतर गए हैं। पूरी तरह से पार्टी की कमान अपने हाथों में ले रहे राहुल की रीति-नीति के साथ-साथ उनकी नेतृत्व क्षमता और कार्यप्रणाली भी गंभीर सवालों के घेरे में है। मसलन इन चुनावों में भी भाजपा के चेहरे नरेंद्र मोदी ने 58 रैलियां की, वहीं राहुल ने मात्र 22 सभाएं ही कीं। यहां तक कि राहुल ने अब आम आदमी पार्टी से सीखकर बदलावों की जो बात कही है, उसकी भी पार्टी में तीखी प्रतिक्रिया है। एक नेता ने कहा भी, 'यदि 10 साल राजनीति में रहने के बाद 125 साल पुरानी पार्टी के नेता को साल भर पुरानी पार्टी से सीखना है तो बेहतर है कि कांग्रेसी कार्यकर्ता ही अरविंद केजरीवाल के साथ सीखने चले जाएं।'

पीएम प्रत्याशी के दांव पर उत्साह नहीं

नतीजों का बचाव करते हुए सोनिया ने फिर वही पुराना कार्ड खेलने के संकेत दिए। उन्होंने आम चुनावों से पहले प्रधानमंत्री उम्मीदवार तय करने के संकेत दिए। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर कांग्रेस प्रवक्ताओं ने राहुल को पीएम उम्मीदवार घोषित करने की मांग भी शुरू कर दी है, लेकिन अंदरखाने पार्टी नेता मान रहे हैं कि इससे अब शायद ही माहौल में कोई असर पड़े।

युवाओं के बीच राहुल कोई प्रभाव नहीं डाल सके, यह कांग्रेस के भीतर अब सभी मान चुके हैं। केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने युवा नेतृत्व को आगे लाने की जरूरत बताकर संगठन की भीतरी सोच को भी उजागर कर दिया है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.