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मप्र में सपा-बसपा से तालमेल कर कांग्रेस दे सकती है चौंकाने वाले नतीजे

ग्वालियर, विंध्य और बुंदेलखंड में यदि पिछले चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच के मतों के अंतर को बसपा-सपा को मिले वोट से पाट दिया जाए तो भाजपा घाटे में दिखाई पड़ती है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 22 Jul 2018 09:56 PM (IST)Updated: Sun, 22 Jul 2018 10:46 PM (IST)
मप्र में सपा-बसपा से तालमेल कर कांग्रेस दे सकती है चौंकाने वाले नतीजे
मप्र में सपा-बसपा से तालमेल कर कांग्रेस दे सकती है चौंकाने वाले नतीजे

नई दुनिया, भोपाल। समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव के सुझाव पर अमल करते हुए यदि कांग्रेस फ्रांस की फुटबाल टीम की तरह व्यवहार कर गई तो मध्य प्रदेश की सियासत के रंग कुछ और ही देखने को मिलेंगे। पिछले सप्ताह भोपाल आए अखिलेश ने कांग्रेस को सलाह दी थी कि जिस तरह फीफा व‌र्ल्ड कप में फ्रांस ने कई देशों से अपने खिलाड़ी चुने थे, उसी तरह कांग्रेस को भी करना चाहिए। उनका इशारा चुनाव पूर्व गठबंधन की ओर था, जिसकी तैयारी कांग्रेस की ओर से जोर-शोर से जारी है।

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कांग्रेस का बसपा और सपा के साथ टिकट के बंटवारे पर चर्चा शुरू कर चुकी है ताकि ग्वालियर-चंबल संभाग, बुंदेलखंड और विंध्य की 90 सीटों के नतीजे पलटे जा सकें। मध्य प्रदेश के ये वे हिस्से हैं जो उत्तर प्रदेश से सटे हुए हैं। वहां की सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था इन इलाकों पर गहरा असर रखती है।

आंकड़ों पर गौर करें तो यह साबित भी होता है कि ग्वालियर, विंध्य और बुंदेलखंड में यदि पिछले चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच के मतों के अंतर को बसपा-सपा को मिले वोट से पाट दिया जाए तो भाजपा घाटे में दिखाई पड़ती है। इन तीनों क्षेत्रों में विधानसभा की कुल 90 सीटें आती हैं। सबसे ज्यादा 34 सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग की हैं। 2013 के विधानसभा चुनावों में यहां वोट और सीटों के मामले में भाजपा, कांग्रेस से आगे है।

भाजपा ने 17 लाख 81 हजार 598 वोट पाकर 20 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस ने 15 लाख 12 हजार 20 वोट पाकर 12 सीटें पाई थीं। दोनों पार्टियों के बीच वोटों का फासला महज पौने तीन लाख का था, लेकिन सीटों का फासला आठ का रहा। फर्ज कीजिए कांग्रेस के वोट में अगर बसपा के सात लाख वोट मिल जाते तो स्थिति क्या होती? 2008 में तो स्थितियां और भी खराब थीं। तब बसपा के साथ ही सपा भी कुछ सीटों पर ठीक-ठाक स्थिति में थी। इसी अंचल में 2008 में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा पिछड़ी हुई थी। कांग्रेस 50 हजार मतों से भाजपा से आगे थी। भाजपा को कुल नौ लाख 50 हजार और कांग्रेस को नौ लाख 99 हजार वोट मिले थे। तब बसपा के वोट छह लाख से ज्यादा थे।

बसपा-सपा से टिकट बंटवारे पर बात शुरू

ऐसी ही स्थिति विंध्य की भी है। वहां भी यदि कांग्रेस, बसपा और सपा मिल जाती है तो नतीजे चौंकाने वाले होंगे। 2013 में पूरे राज्य में सपा ने दमदारी से चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन इस बार सपा भी पूरी ताकत लगाती दिख रही है। 2013 के चुनाव में विंध्य में कांग्रेस और भाजपा के बीच वोटों का अंतर लगभग चार लाख का था। जबकि बसपा ने छह लाख से ज्यादा मत पाए थे। बुंदेलखंड में भी स्थितियां कमोबेश ऐसी ही हैं। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो पार्टी ने अखिलेश यादव के फ्रांस टीम वाले उदाहरण को गंभीरता से लिया है और उसी के अनुरूप रणनीति बनाना शुरू कर दिया है। बसपा और सपा से टिकट बंटवारे पर बातचीत शुरू हो चुकी है। अखिलेश यादव ने भोपाल आकर सकारात्मक संकेत भी दिए हैं।


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