कांग्रेस की उम्मीद व विश्वास के बीच प्रधानमंत्री मोदी का डर अहम फासला
कांग्रेस संघर्ष के इस मुकाम तक पहुंचने के बाद भी अंतिम दिनों में चुनावी बाजी पलटने की मोदी की राजनीतिक क्षमता के डर के साये से बाहर नहीं निकली है।
संजय मिश्र, अहमदाबाद। गुजरात के चुनाव में कांग्रेस की उम्मीद और विश्वास के बीच अब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डर का अहम फासला है। सियासी जमीन पर बीते दो दशक में अपने हिसाब से सबसे दमदार चुनाव लड़ रही कांग्रेस संघर्ष के इस मुकाम तक पहुंचने के बाद भी अंतिम दिनों में चुनावी बाजी पलटने की मोदी की राजनीतिक क्षमता के डर के साये से बाहर नहीं निकली है।
अयोध्या के विवादास्पद राममंदिर-बाबरी ढांचे के कानूनी विवाद की सुनवाई टालने की वरिष्ठ पार्टी नेता और वकील कपिल सिब्बल की सुप्रीम कोर्ट में दी गई दलील के ताजा प्रकरण ने कांग्रेस की इस आशंका को और बढ़ाया है।
सिब्बल के सुप्रीम कोर्ट में जाहिर रुख के सहारे कांग्रेस पर निशाना साधने के पीएम मोदी के बुधवार से शुरू किए गए सियासी प्रहार को इसीलिए कांग्रेस बेहद गंभीरता से लेते हुए चुनाव को इसके सियासी तूफान से बचाने के लिए बेहद सतर्कता से मैदान में उतर गई है। सूबे के सभी नेताओं-कार्यकर्ताओं को सिब्बल के रुख को पार्टी का नहीं बल्कि एक वकील का नजरिया बताने का तूफानी संदेश लोगों के बीच देने के लिए लगा दिया गया है। अहमदाबाद में कैंप कर रहे कांग्रेस के मुख्य मीडिया रणनीतिकार रणदीप सुरजेवाला औपचारकि प्रेस कांफ्रेंस करने से लेकर अनौपचारिक बातचीत में सिब्बल के बयान से कांग्रेस का कोई सरोकार नहीं होने का संदेश देने की कोशिश में जुटे रहे।
सिब्बल प्रकरण के इस अचानक झोंके को मोदी और भाजपा सियासी तूफान न बना सकें पार्टी साफ तौर पर यह सुनिश्चित करने की हर कोशिश करती दिखी। धार्मिक रुप से अति संवेदनशील माने जाने वाले गुजरात के मौजूदा चुनाव में कांग्रेस भावनात्मक मुददों को चुनावी मसला बनने से रोकने में अब तक कामयाब रही है और यह पार्टी की एक रणनीतिक कामयाबी मानी जा रही है।
कांग्रेस और इस चुनाव के बीच केवल मोदी का अंतर मान रही पार्टी भावानात्मक मुददे का प्लेट सजाकर उन्हें देने की कोई जोखिम लेना नहीं चाहती। इसीलिए अहमदाबाद शहर ही नहीं आस-आस के ग्रामीण इलाके में कांग्रेस कार्यकर्ता अनौपचारिक रुप से सिब्बल को लेकर नाराजगी का इजहार करते दिखे। कुछ कार्यकर्ता और नेता यह कोसते हुए दिखे कि वकालत और राजनीति में संवेदनशील मसलों के सियासी असर को सिब्बल जैसे पार्टी नेता आखिर कब समझेंगे।
गुजरात में मोदी के मायावी रुप का सियासी असर होने की बात कांग्रेस नेता-कार्यकर्ता ही नहीं आम लोग भी करते हैं और इसीलिए भाजपा के साथ चुनाव में टक्कर का मुकाबला होने की बात के बाद भी चुनाव नतीजे को लेकर कांग्रेस खेमे में अब भी पक्का विश्वास नहीं है।
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा कार्यकर्ता ही नहीं उसके पुख्ता वोटरों के लिहाज से भी इस चुनाव में कांग्रेस और उनके बीच मोदी ही अंतर रह गये हैं। जैसा कि अहमदाबाद एयरपोर्ट पर टैक्सी चलाने वाले भाजपा के कट्टर समर्थक बाबूभाई गजेडा कहते हैं कि इस बार चुनाव में कांग्रेस मुकाबला तो बहुत कर रही है। उसके मुददे भी लोगों में असर कर रहे हैं पर नरेंद्र भाई मोदी आखिर में सब कुछ बदल देंगे यह भरोसा पार्टी कैडर को है। शहर के ही खानपुर में आटो चलाने वाले 80 वर्षीय मोइनुददीन भाई पहले तो राजनीति में कोई रुचि नहीं होने की बात कहते हैं पर कुरदे जाने पर कहते हैं कि कांग्रेस भले दम लगा रही पर मोदी फैक्टर को मात देने को लेकर भरोसा करना आसान नहीं।
वैसे चुनावी बिसात पर सामाजिक समीकरण सजाने से लेकर मुददों की फेहरिस्त से भाजपा की सत्ता की बादशाहत को चुनौती देने के लिहाज से कांग्रेस ने मौजूदा चुनाव में अपने हिसाब से सारे दांव चल दिए हैं मगर इसके बाद भी चुनावी बाजी उन्हीं के नाम होगी इसको लेकर मोदी फैक्टर की वजह से ही पार्टी नेता अंदरुनी तौर पर भी दावा करने में हिचकते दिखे। गुजरात चुनाव की देख रेख में लगाए गए कांग्रेस के एक वरिष्ठ केंद्रीय नेता ने भी अनौपचारिक चर्चा में कहा इसमें कोई शक नहीं कि चुनाव हम बेहद मजबूती से लड रहे मगर आखिर में नतीजे का पलडा और फासला दोनों मोदी के आखिरी आठ दिनों के सियासी अभियान से तय होगा।
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