नई शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले से हिंदी को हटाने का सरकार के फैसले का कमेटी ने किया विरोध
नई शिक्षा नीति के मसौदे में कमेटी ने त्रिभाषा फॉर्मूले में हिंदी अंग्रेजी के साथ एक स्थानीय भाषा को पढ़ाए जाने की सिफारिश की थी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फॉर्मूले से हिंदी की अनिवार्यता खत्म किए जाने के सरकार के फैसले का विरोध शुरू हो गया है। विरोध के ये सुर नई शिक्षा नीति बनाने वाली कमेटी के बीच से ही उठे हैं। कमेटी के दो वरिष्ठ सदस्यों ने बगैर सहमति त्रिभाषा फॉर्मूले से हिंदी को हटाने पर विरोध जताया है। सरकार ने पिछले दिनों तमिलनाडु सहित कुछ राज्यों में उठे विरोध को देखते हुए त्रिभाषा फॉर्मूले से हिंदी को हटा लिया था। हालांकि मसौदे पर अभी राय ली जा रही है और इसकी अंतिम तिथि 30 जून है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने वाली कमेटी में शामिल वरिष्ठ सदस्य डॉ. कृष्ण मोहन त्रिपाठी ने कहा है कि नई शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले में हिंदी को लंबी चर्चा और संवैधानिक पहलुओं को देखते हुए शामिल किया गया था। हालांकि कमेटी के कई सदस्य पहले से ही इसके विरोध में थे, लेकिन वह तथ्यों के आधार पर हुई चर्चा में इसे खारिज नहीं कर पाए।
आखिर में उन्हें नई शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले में हिंदी को शामिल करना ही पड़ा। पर सरकार को सौंपे गए नीति के अंतिम मसौदे में बगैर किसी चर्चा के बदलाव किया जाना समझ से पूरी तरह से परे है।
'दैनिक जागरण' से चर्चा में डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि इस त्रिभाषा फॉर्मूले को 1986 में लोकसभा से मंजूरी दी गई थी। हमने सिर्फ इसे आगे बढ़ाया था। उन्होंने बताया कि इस संबंध में मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को पत्र लिखकर विरोध भी जताया है।
इसी बीच, नई शिक्षा नीति तैयार करने वाली कमेटी में शामिल एक अन्य वरिष्ठ सदस्य डॉ. आरएस कुरील ने भी 'दैनिक जागरण' से बातचीत में नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले से हिंदी को हटाए जाने पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि हिंदी को बढ़ावा देने को लेकर सरकार को दोहरा मापदंड नहीं रखना चाहिए। किसी एक राज्य के कुछ लोगों के विरोध के बाद इसे हटाया जाना ठीक नहीं है।
हिंदी देश के बड़े हिस्से में और बड़ी जनसंख्या के बीच बोली जाने वाली भाषा है। देश की अखंडता को मजबूती देने के लिए हिंदी को त्रिभाषा फॉर्मूले में शामिल होना जरूरी है। वैसे पिछली शिक्षा नीति के मसौदे में भी त्रिभाषा फॉर्मूले को शामिल किया गया था। उन्होंने कहा कि सरकार बदलाव करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन उसे इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा करानी चाहिए।
मालूम हो कि नई शिक्षा नीति के मसौदे में कमेटी ने त्रिभाषा फॉर्मूले में हिंदी, अंग्रेजी के साथ एक स्थानीय भाषा को पढ़ाए जाने की सिफारिश की थी। बाद में कुछ राज्यों के विरोध के बाद त्रिभाषा फॉर्मूले को शिथिल करते हुए हिंदी की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है।
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