सरबजीत ने कहा था, आना मेरे देश, नौकरी दिलाऊंगा
'चार साल पहले लाहौर की कोट लखपत जेल में सरबजीत से पहली मुलाकात हुई थी। पहले वह चौंका, फिर बोला, तुम यहां कैसे आ गए। पूरे चार साल उसके साथ जेल के वार्ड संख्या-6 में रहा। रिहाई हुई और जेल से बाहर निकलने लगा तो उसने कहा, फिर आना मेरे देश (पंजाब) में। मेरी भी रिहाई होने वाली है। वहां आकर तुम्ह
अरुण कुमार झा, मधुबनी। 'चार साल पहले लाहौर की कोट लखपत जेल में सरबजीत से पहली मुलाकात हुई थी। पहले वह चौंका, फिर बोला, तुम यहां कैसे आ गए। पूरे चार साल उसके साथ जेल के वार्ड संख्या-6 में रहा। रिहाई हुई और जेल से बाहर निकलने लगा तो उसने कहा, फिर आना मेरे देश (पंजाब) में। मेरी भी रिहाई होने वाली है। वहां आकर तुम्हें अच्छी नौकरी दिलाऊंगा।' यह कहना है मधुबनी के खुटौना प्रखंड के चतुभरुज पिपराही गांव निवासी अली हसन खान के।
वह लाहौर की कोट लखपत जेल से 15 जून 2012 को रिहा हुए थे। उनकी कहानी भी सरबजीत से मिलती-जुलती है। मजदूरी करने अमृतसर गए 2009 में अली ने एक दिन घर आने के लिए रेलवे लाइन पकड़ी तो पाकिस्तान जा पहुंचे। सरबजीत व हसन के मामलों में अंतर बस यही है कि सरबजीत का शव पाकिस्तान से आया जबकि हसन अली रिहा होकर। हसन ने बताया कि सरबजीत काफी शांत रहता था। उसकी जेल में किसी से अदावत नहीं थी।
हसन को भी मिली थी यातना
अली को जेल भेजने से पहले कम यातना नहीं सहनी पड़ी। सब उसे भारतीय जासूस समझ रहे थे। पाकिस्तानी पुलिस की गिरफ्त में चार दिनों तक उसकी बेरहमी से पिटाई व पूछताछ होती रही थी। पिटाई का असर यह है कि खाना तक ठीक से हजम नहीं होता। शरीर में दर्द की टीस उभरती रहती है।
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