प्राइम टीम, नई दिल्ली। बीते साल देश के बिजली घरों में आया कोयला संकट आपको याद ही होगा। कई संयंत्रों में तब दो से सात दिन तक उत्पादन करने लायक कोयला ही बचा था, जबकि नियमानुसार बिजली संयंत्रों में कम से कम 15 दिन बिजली उत्पादन करने लायक कोयले का भंडार होना चाहिए। नतीजतन हमें बीते साल बिजली में बहुत कटौती देखनी पड़ी थी। राहत की बात ये है कि इस साल हालात नहीं बिगड़ेंगे। दरअसल, मार्च में कोयले का उत्पादन बढ़ने और अप्रैल में अप्रत्याशित बारिश से बिजली की मांग घटने से से पर्याप्त मात्रा में कोयले का बफर इकट्ठा हो गया है। अब कितनी भी गर्मी पड़े हमारे थर्मल पावर प्लांटों को कोयले की कमी नहीं पड़ेगी।

पिछले साल मार्च में कोयले का उत्पादन 0.2% घट गया था, जबकि अप्रैल में बिजली की मांग 14.7% बढ़ गई थी। इसका नतीजा ये निकला था कि अप्रैल 2022 के अंत तक देश के 135 थर्मल पावर प्लांटों में सिर्फ आठ दिनों की जरूरत पूरी करने लायक कोयले का स्टॉक रह गया था। कई संयंत्रों में तो सिर्फ दो दिन की जरूरत का कोयला बचा था। रेलवे की स्पेशल माल गाड़ियां और ट्रक चलवाकर किसी तरह संयंत्र चलाए गए थे, इसके बावजूद कई संयंत्र अपनी क्षमता से नीचे उत्पादन करने को मजबूर हो गए थे। लेकिन, इस साल आपूर्ति की स्थिति काफी बेहतर रही है।

इस वर्ष मार्च में कोयले का उत्पादन सालाना आधार पर 12% तक बढ़ते हुए 107.8 मिलियन टन की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। अप्रैल में फिर कोयला उत्पादन में 8.63% की उछाल दर्ज हुई। इसी दौरान अप्रैल में बारिश हो गई और मौसम ठंडा होने की वजह से बिजली की मांग 1.1% घटकर 133 बिलियन यूनिट (बीयू) रह गई।

अप्रैल में कोयले की कुल सप्लाई 11.6% बढ़कर 80.35 मीट्रिक टन और बिजली संयंत्रों को सप्लाई 6.6% बढ़कर 65.41 मीट्रिक टन हो गई। घरेलू आपूर्ति में वृद्धि, और वित्तवर्ष 2024 की पहली छमाही में कुल जरूरत का 6 फीसदी आयातित कोयला इस्तेमाल करने के सरकारी आदेश से इस बार ताप विद्युत संयंत्रों में कोयले का पर्याप्त बफर हो गया है।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुताबिक, केंद्र सरकार के सक्रिय प्रयासों और अप्रैल में बारिश ने यह सुनिश्चित किया है कि हीटवेव के पूर्वानुमान के बावजूद इस गर्मी में बिजली की मांग को पूरा करने के लिए बिजली संयंत्रों में कोयले की पर्याप्त उपलब्धता बनी रहेगी।

अन्य ऊर्जा स्रोतों की बात करें तो अप्रैल 2023 में हाइड्रो उत्पादन में 19% की गिरावट आई, जबकि न्यूक्लियर और सौर उत्पादन में क्रमशः 11% और 15% की वृद्धि हुई। कुल बिजली उत्पादन में न्यूक्लियर और सौर उत्पादन की हिस्सेदारी बढ़कर 9% हो गई, जो पिछली गर्मियों में 8% तक गिर गई थी।

देश की सबसे बड़ी बिजली निर्माता कंपनी एनटीपीसी के पूर्व उप निदेशक संजय सिंघाल कहते हैं, देश में कुल बिजली उत्पादन में कोयला आधारित बिजली की हिस्सेदारी अब भी लगभग 50 फीसदी है। गर्मी में जब बिजली की मांग बढ़ती है तब कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता और बढ़ जाती है। ऐसे में यदि कोयले का संकट नहीं है तो बिजली का संकट भी नहीं होगा।

क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस के निदेशक हेतल गांधी के मुताबिक, मई में बिजली की मांग 142-144 बीयू तक पहुंच जाएगी। इसमें से 76-78% जरूरत कोयला आधारित बिजली से पूरी होगी। पीक डिमांड को पूरा करने के लिए थर्मल पावर प्लांट्स को 77-79 मिलियन टन कोयले की जरूरत होगी। हम उम्मीद करते हैं कि कोयले की घरेलू आपूर्ति 68-70 मीट्रिक टन होगी, जिसमें अधिकांश कोल इंडिया से आएगा। इसके अलावा, लगभग 3-5 मिलियन टन आयातित कोयला यह सुनिश्चित करेगा कि स्टॉक 13-15 दिनों की सीमा में बना रहे।