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गुजरात की तर्ज पर मध्य प्रदेश में गोबर व पराली से बनेगी सीएनजी और जैविक खाद

सीएम शिवराज ने रविवार को अपने आवास पर उच्च स्तरीय बैठक में इसकी प्रारंभिक स्वीकृति दी। बैठक में भारत बायोगैस के अध्यक्ष भरत पटेल ने कहा कि इन दोनों स्थानों पर बायो सीएनजी और जैविक खाद की योजना बनाई जाएगी और तीन से पांच साल तक उसे चलाया जाएगा।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 11:12 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 11:15 PM (IST)
गुजरात की तर्ज पर मध्य प्रदेश में गोबर व पराली से बनेगी सीएनजी और जैविक खाद
लगभग 25 टन ठोस और सात सौ लीटर जैविक खाद का उत्पादन होगा।

भोपाल, राज्य ब्यूरो। मध्य प्रदेश में गुजरात की तर्ज पर गोबर और पराली (नरवाई) से बायो सीएनजी और जैविक खाद बनाई जाएगी। इसके लिए आगर के सालरिया गो-अभयारण्य और कामधेनू रायसेन को चुना गया है। यहां भारत बायोगैस एनर्जी, गुजरात के माध्यम से प्रोजेक्ट बनाए जाएंगे और उस पर काम होगा।

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार को अपने आवास पर उच्च स्तरीय बैठक में इसकी प्रारंभिक स्वीकृति दी। बैठक में भारत बायोगैस के अध्यक्ष भरत पटेल ने कहा कि इन दोनों स्थानों पर बायो सीएनजी और जैविक खाद की योजना बनाई जाएगी और तीन से पांच साल तक उसे चलाया जाएगा। सालरिया गो-अभयारण्य में गोबर, पराली, घास और कचरा से प्रतिदिन लगभग तीन हजार किलोग्राम बायो सीएनजी का उत्पादन किया जाएगा। साथ ही लगभग 25 टन ठोस और सात सौ लीटर जैविक खाद का उत्पादन होगा।

तीन टन ठोस और लगभग एक हजार लीटर जैविक खाद बनाने की है योजना

रायसेन में पराली और गोबर के मिश्रण से बायोगैस खाद बनाने के मॉडल प्लांट लगाए जाने की योजना बनाई जा रही है। इसमें प्रतिदिन 400 किलोग्राम बायो सीएनजी, तीन टन ठोस और लगभग एक हजार लीटर जैविक खाद बनाने की योजना है। इन उत्पादों की देश और विदेश में ब्रांडिंग और मार्केटिंग भी की जाएगी। क्षेत्र के लोगों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। बैठक में पशुपालन मंत्री प्रेम सिंह पटेल, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया, भारत बायोगैस पदाधिकारी और वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। 

अक्षय पात्र की भी सेवाएं लेंगे बैठक में

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश की कुछ गो-शालाओं के संचालन के लिए अक्षय पात्र संस्था, गुजरात की सेवाएं ली जाएंगी। संस्था ने गुजरात में इस क्षेत्र में अच्छा काम किया है। गो-शालाओं के संचालन में समुदाय की अधिक से अधिक भागीदारी के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। गो-अभयारण्य सालरिया में अभी चार हजार गोवंश हैं, जबकि क्षमता दस हजार है। वहां भविष्य में संख्या बढ़ाई जाएगी।


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